Sadhna ke Niyam गुरु साधना के नियम


|| जय महाकाल आदेश ||


Sadhna ke Niyam गुरु साधना के नियम


गुरु कौन हैं ? गुरु वह हैं व्यक्ति के जीवन में अज्ञान रूपी अन्धकार को मिटाने वाले  शक्ति रूपी तत्त्व वह गुरु हैं जब व्यक्ति को जीवन किस तरह जिया जाये समझ न आये  तब व्यक्ति को सरल जीवन का बोध कराने वाला गुरु होता हैं , जब तुम दृष्टि हिन् होते हो तब दृष्टि देने वाला गुरु होता हैं , साधक को ज्ञान बुद्धि बल सामर्थ्य देने वाले गुरु ही होते हैं, साधक गणो गुरु मिलते हैं बड़े भाग से गुरु को संजोये रखे जीवन में कभी बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा जिसने सच्ची निष्ठा प्रेम से गुरुसेवा की उसका जीवन गुरु आशीर्वाद से धन्य हो जाता हैं इसमें संशय नहीं चारो तीरथ धाम हैं गुरु के चरणों में शक्ति का वरदान हैं गुरु के चरणों में गुरु प्रसाद को कभी न खोये, जीवन को परिवर्तन करने की क्षमता रखते हैं गुरु |





साधक मित्रो से निवेदन हैं ..साधना के प्रति निष्ठां और इमानदारी रखे ..झूट की बुनियाद पर कोई भी रिश्ता कायम नहीं होता ..फिर चाहे वोह गुरु शिष्य का ही क्यूँ नहो ..

हमेशा अपने गुरु से एकनिष्ठ रहे प्रमाणिक रहे .और उनके कृपा दृष्टी के भागिदार बने जब गुरु प्रसन्न होंगे तब तुमको आगे का मार्गदर्शन प्राप्त होगा ..!


जो भी निवेदन करना गुरु से सत्य ही बताये।। ये नहीं की जाना हैं दिल्ली .और कहें बस्ती ..गुरु बना ने से पहले ये जान ले की अपने स्वयम के अंदर गुरु बचन निभाने का सामर्थ्य हैं या नहीं ..उसके पश्चात ही साधना की और पहेल करे ...!

बहोत से साधक गन झूट का सहारा लेकर साधना में गति पाने की नाकाम कोशिश करते हैं ..मगर वो कभी सफल नहीं हो पाते ..


साधना में विरक्ति पाने के लिए बहोत सैंयम की आवशकता होती हैं कई साल महीने लग जाते हैं साधना को सिद्ध करने के लिए ..कोई भी साधना शोर्ट कट से सिद्ध नहीं होती ..ये जान ले ..वोह निर्भर करता हैं की किस प्रकार की साधना हैं ...


एक बार गुरु के सानिध्य में जाने के बाद उसे खंडित न करे अन्यथा .कुछ अनहोनी घटना भी हो सकती हैं ..जब देवता रुष्ट हो जाते हैं तब अपना असर छोड़ देते हैं ..साधना निडर होकर  सम्पूर्ण करने का प्रयास करे ..सत्यता , निष्ठा , एकाग्रता , कठोर परिश्रम , और गुरु से इमानदारी ही आपको एक प्रभावशाली साधक बनकर उभर ने में सहायता करती हैं ...


जय महाकाल आदेश 


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सिद्ध पाठ हनुमान चालीसा श्री तुलसीदास रचित



सिद्ध पाठ  हनुमान चालीसा श्री तुलसीदास रचित 






हनुमान चालीसा 

 


श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा,
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥

महावीर बिक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥

हाथ बज्र और ध्वजा बिराजे,
काँधे मूंज जनेऊ साजे ॥7॥

शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥

विद्यावान गुनि अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर ॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे,
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥

लाय संजीवन लखन जियाए,
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥

रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,
कवि कोविद कहि सकें कहाँ ते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं किन्हा,
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना,
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,
लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं,
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ॥

दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥

राम दुआरे तुम रखवारे,
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी शरना,
तुम रक्षक काहु को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हाँक तै कांपै ॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै,
महाबीर जब नाम सुनावै ॥

नासै रोग हरे सब पीरा,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन करम वचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा,
तिन के काज सकल तुम साजा ॥

और मनोरथ जो कोई लावै,
सोइ अमित जीवन फ़ल पावै ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥

साधु संत के तुम रखवारे,
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस वर दीन्ह जानकी माता ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै,
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंतकाल रघुवरपूर जाई,
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥

और देवता चित्त ना धरई,
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥

संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ,
कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥

जो सत बार पाठ कर कोई,
छूटइ बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ ह्रदय महं डेरा
अति 
पवन तनय संकट हरण्, मंगल मूरति रूप ॥
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥


-विधि -

सर्व सुखों का सार एवं दुःख कष्टों का निवारण बंदी से मुक्ति और ग्रह पीड़ा से 
शांति करन कारक हनुमान चालीसा का विधि विधान से जप करना चाहिए कुछ लोग वैसे ही पाठ 
 करना शुरू कर देते हैं इस लिए पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले गुरु का पाठ अवश्य होना चाहिए उपरांत अगर विस्तृत तरीके से करें तो अति शीघ्र फल की प्राप्ति निश्चित ही होती हैं | 

जय महकाकल | जय श्री राम |


गुरूजी - +91 9207283275 










हनुमान् वडवानल- साधना

जय महाकाल -



हनुमान् वडवानल स्तोत्र 






हनुमान् वडवानल- साधना  मन्त्र 




विनियोगः-


ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य 
श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं,
सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे 
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् 
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं 
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।.. 



ध्यानः-




मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।.

वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।.


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम 
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार 
लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन 
वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार 
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद 
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं
ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल 
सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, 
त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, 
माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस 
भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।.. 




ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं।.
ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते 
श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां 
सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय 
मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।.. 






ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय 
क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय 
निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् 
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।... 




ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय 
पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय
असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।... 


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 यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये 
गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों 
में काम आता है । गुरु का आशीर्वाद अवश्य लीजिये अन्यथा अभीष्ट सिद्धि नहीं होगी  ...  


विधिः-


सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन 
तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ।.. 

https://mantraparalaukik.blogspot.com/


।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।



संपर्क -  09207 283 275





सर्व बाधा मुक्ति शाबर मंत्र


जय महाकाल -


सर्व बाधा मुक्ति शाबर मंत्र -


  ये मंत्र योगी  गुरु गोरखनाथ प्रणित हैं  का शाबर मंत्र 







मंत्र -

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा. 




विधि - किसी भी महीने के पूर्णिमा के दिन ७ अलग अलग   कुओ या किसी अलग  नदी से जल लाकर इस मंत्र का  १०८ बार  उच्चारण करते हुए  उस रोगी को स्नान करवाए तो..  उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया ,ऊपरी परायी।  किया कराई , टोना ,इत्यादि का शमन हो जाता हैं। .. इस क्रिया को ११ दिन तक करनी हैं। .. गोरक्षनाथजी के कृपा से हर बाधा शनैः शनैः  समाप्त हो जाती हैं। .. 

जय महाकाल || आदेश || 


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बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

जय महाकाल -

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग- 

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बजरंग बाण- 

भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग 
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।।।। 
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।।।। 

बजरंग बाण ध्यान

श्रीराम-
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।।

दोहा-

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।। 
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई-

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।।

दोहा

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।



विधि -   गुरु की अनुमति ले कर इस साधना का आरम्भ करे  अन्यथा , ये साधना आप को तकलीफ दायक हो सकती है , इस साधना के कुछ विशेष नियम हैं , उनका पालन किये बगैर इस साधना को करना , हानिकारक हो सकता हैं। .. 




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