सुलेमानी  पीर एवं जिन्न , साधना के ख़ास इतर

जय महाकाल -


सुलेमानी  पीर एवं जिन्न साधना के ख़ास इतर  -





- जन्नत उल फ़िरदोस - 











- जन्नत उल मर्हाब -

--.इतरो के प्रकार ---



  . असली गुलाब इत्तर                           .    असली खस इत्तर                         . कालीजाफरानी इत्तर 


  . असली चमेली अर्क                           . असली मोगरा इत्तर                         . शाही दरबारी इत्तर 


 . असली संदल इतर                            
.  जन्नत ऐ जाफरान  -                        . जन्नत ऐ फिरदौस 


.   जाफरानी काला इतर  -                    .  काला भुत जाफरानी  -                   . अरेबियन मस्क 

.    असली मुश्क़ इतर  -                        .    अर्क  ए इतर चमेली  -                    . अरेबियन सेफ्रोन 

.    दरबारी इतर -                                  . अम्बर मुश्क इतर  -

 . गुलशन ऐ गुलाब  -                               . चन्दन अर्क . -

.  जन्नत ऐ जाफरान  -                            .   जाफरानी काला इतर  -

.  काला भुत जाफरानी  -                       . असली मुश्क़ इतर  -




 - विशेष ध्यान -



हमारे यहाँ सभी प्रकार इतर असली फूलोंके अर्क से बनाया जाता हैं , इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल या आधुनिक सेंट इस्तेमाल नहीं किया जाता , जो दाम हैं वो भी किफायती रखा गया हैं। .... ताकि हर साधक को इसका लाभ मिल सके  ...
ये सभी प्रकार के खास इतरो के असली अर्क  हमारे पास उपलब्ध हैं अगर किसी साधक को मंगवाना हो तो मंगवा सकतें हैं ..डाक के जरिये साधक तक भेज दिया जायेगा ..






संपर्क    +91 9207 283 275





अवधूत निरंजन नवनाथ जाप मंत्र

जय महाकाल 



अवधूत निरंजन  नवनाथ जाप मंत्र 








मित्रों नाथ सम्प्रदाय के जनक योगी मछिन्द्रनाथ और उनके गुरु श्रीदत्तनाथजी , और इन सब के गुरु योगी औघड्नाथजी  इनके आर्शीवाद से नाथों का अवतरण धरती पर हुआ
.. महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग 11वीं शताब्दी अनुमानित।।  के एक विशिष्ट महापुरुष थे... . । गोरखनाथजी  के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे.. । इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर जगभर  इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी,अथवा  अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।.. 


ॐ अवधूनाथ गोरष आवे, सिद्ध बाल गुदाई |
घोड़ा चोली आवे, आवे कन्थड़ वरदाई || १ ||
सिध कणेरी पाव आवे, आवे औलिया जालंधर |
अजै पाल गुरुदेव आवे, आवे जोगेसर मछंदर || २ ||
धूँधलीमल आवे, आवे गोपिचन्द निजततगहणा |
नौनाथ आवो सिधां सहत महाराजै !

जय अलख - आदेश आदेश आदेश ..!

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