काली सिद्ध कौड़ी अपार धन प्राप्ति हेतु -


-जय महाकाल -


अपार धन प्राप्ति हेतु सिद्ध काली कौड़ी -






मित्रों जब समुद्र मंथन हुआ था तब उसमे से १४ रत्नो की प्राप्ति सृष्टि में हुई थी। ... जिसमे पंच जन्य शंख निकले थे उसी रत्नो में से  एक प्रकार हैं , जो कौड़ी के स्वरुप में हैं। जो निम् लखित हैं

चौदह (14) रत्नों की प्राप्ति-

समुद्र मंथन  के बाद जो चौदह (14) रत्नों की प्राप्ति हुई थी जो   निम्नलिखित  हैं:-
श्री, मणि, रम्भा, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज
धेनु, धनुष, शशि, कल्पतरु, धन्वन्तरि, विष, वाज
अर्थात
  1. हलाहल (विष)
  2. कामधेनु
  3. उच्चे: श्रवा (अश्व)
  4. ऐरावत हाथी
  5. कौस्तुभ मणि
  6. कल्पद्रुम
  7. रंभा
  8. लक्ष्मी
  9. वारुणी (मदिरा)
  10. चन्द्रमा
  11. पारिजात वृक्ष
  12. पांचजन्य शंख
  13. धन्वन्तरि (वैद्य)
  14. मृत

.. इसमें अलग अलग रंग की कौड़िया भी प्राप्त हुई जैसे , सफ़ेद , पिली , लालभूरि , और बहोत ही दुर्लभ काली कौड़ी  जो पुराने ज़माने में लोग इसका धन के स्वरुप इस्तेमाल करते थे । ...(. एक पुराने कहावत के अनुसारआज भी कहा जाता हैं  की इसकी औकात २ कौड़ी की नहीं हैं। ).. तो मित्रों ये वही कौड़ी हैं , जो धन के संचय में बहोत उपयोगी हैं। जिसे की माँ  लक्ष्मी का स्वरूप माना गया हैं  ... जिसमे विशेषत अति दुर्लभ काली कौड़ी का महत्व हैं.। .. इस कौड़ी के कुछ ख़ास तांत्रिक प्रयोग हैं ...... जो निम्न लिखित हैं। ..

(अलग अलग रंग की कौड़ियों के अलग अलग प्रयोग - )

एक समुद्री जीव हैं जो कौड़ी नामक हैं, जिसके  शरीर के ऊपर का आवरण मजबूत होता हैं। .....
उस समय में इसका व्यापक प्रयोग मुद्रा के चलन के रूप में होता था।

 समय के साथ-साथ मुद्रा का स्वरुप बदलता चला गया।  कई दशक पूर्व तक इसका चलन चौसर, चौपड़ आदि खेलों में पासे के रूप में खूब होता था। बच्चों  को कौड़ी से खेलते हुए प्रायः देखा जाता था।
समुद्री जीवों के संरक्षण नियमों के कारण धीरे-धीरे कौड़ी आज प्रायः दुर्लभ हो गयी हैं  ।

तांत्रिक प्रयोगों में हो रहे व्यापक प्रयोग के कारण भी अच्छी श्रेणी की कौड़ियों की कमी होने लगी।

सौभाग्य  से उच्च श्रेणी की कौड़ियाँ आसानी से प्राप्त हो जाएं तो आप भी सरल उपायों द्वारा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं। ..

कुछ कौड़ियो के तांत्रिक प्रयोग -

* लाल कपड़े में एक बड़ी पीली कौड़ी बांधकर अपने कैश बॉक्स में अभिमंत्रित कर रख लें, तोह  आशातीत धन लाभ होने के आसार बढ़ जाते हैं। ..

* ७ पीली कौड़ी, सात हल्दी की अखण्डित गांठ को लेकर अभिमंत्रित करके एक पीले रंग के कपड़े में बांधकर घर में स्थापित कर लें। वहाँ सदैव प्रेम, स्नेह और भाग्योदय का वातावरण बना रहता हैं |

* काले रंग कौड़ी काले  कपड़े में बांधकर उसे मन्त्रित कर के   अपने शत्रु के घर में दबा दें।तो वह मित्रता से व्यवहार करने लगेगा।

* बालक यदि नींद में  सपने में  डर जाताहो  तो उसके सिरहाने एक पीली बड़ी कौड़ी हिरन की झिल्ली में बांध कर  रख दें। तो बालक नींद में डरना बंद हो जाता हैं ।

 * पूनम की रात में किये जाने वाला तांत्रिक काली और पिली कौड़ी का खास प्रयोग -पूनम की रात नौ लाल रंग के गुलाब के फूल, नौ पीली बड़ी कौड़ी  और ९ काली कौड़ियां  के साथ एक - एक गुलाब पुष्प ( शाबरी मंत्र से अभिमंत्रित कर ) लाल रंग के कपड़े में बांधकर अपनी दुकान, कार्यस्थल पर रख देने से  आप देखेंगे कि आपकी  आय में दिन ब दिन बढ़ोत्तरी होने लगी है। 

* एक काली कौड़ी तथा मालती पुष्प की जड़ पीले कपड़े में बांध करके उसे मन्त्रित कर  ताबीज़ की तरह गले में धारण कर लेंने से क़र्ज़ से मुक्ति एवं धन लाभ में आशातीत लाभ होता हैं। ...  

 * अपने घर का निर्माण करते समय उसके
ईशान्य उत्तर कोने की नीव में मंत्र से अभिमंत्रित  ९९असली पीली कौड़ियां दबा देने से । वास्तु दोष एवं उस जगह में होनेवाले निगेटिव असर , अथवा दुष्परिणाम से सुरक्षा होकर घर सुरक्षित रेहता हैं | इसमें कोई शंका नहीं
 

मित्रों ऐसे बहोत से कौड़ियों के  तांत्रिक प्रयोग हैं जिसे हम आसानी से कर सकते हैं। ... बशर्ते कौड़ियां असली हो , आजकल बाजार में कुछ लोग ( फाइबर प्लास्टिक )की कौड़ियां बेच रहे हैं जो दिखने में हूब हु कौड़ी की तरह दीखता हैं , जिसका आम व्यक्ति को परख नहीं होती। ..  जिसका उपयोग शून्य मात्र हैं। .. तो मित्रों नकली कौड़ियों से बचे। ...

किसी साधक मित्रों को अगर कौड़ियों की आवशकता हो , वो हमसे अवश्य प्राप्त कर सकते हैं। ..




संपर्क  -    +91 9207 283 275 


    सिद्ध हनुमान चालीसा

    ||   जय श्री राम  ||


    सिद्ध हनुमान चालीसा -




    ॥दोहा॥


    श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
    बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

    बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
    बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥


    ॥चौपाई॥

    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

    राम दूत अतुलित बल धामा ।
    अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

    महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
    कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

    कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
    कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
    हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
    काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

    सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
    तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
    बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
    राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
    राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

    सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
    बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

    भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
    रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

    लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
    श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

    रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
    तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

    सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
    अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
    नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

    जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
    कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
    राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

    तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
    लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

    जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
    लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

    प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
    जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

    दुर्गम काज जगत के जेते ।
    सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

    राम दुआरे तुम रखवारे ।
    होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

    सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
    तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

    आपन तेज सह्मारो आपै ।
    तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

    भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
    महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

    नासै रोग हरै सब पीरा ।
    जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

    सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
    मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

    सब पर राम तपस्वी राजा ।
    तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

    और मनोरथ जो कोई लावै ।
    सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

    चारों जुग परताप तुह्मारा ।
    है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

    साधु सन्त के तुम रखवारे ।
    असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

    अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
    अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

    राम रसायन तुह्मरे पासा ।
    सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

    तुह्मरे भजन राम को पावै ।
    जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

    अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
    जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

    और देवता चित्त न धरई ।
    हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

    सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
    जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

    जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
    कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

    जो सत बार पाठ कर कोई ।
    छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

    जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
    होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

    तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
    कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥



    ॥दोहा॥


    पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
    राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप



    विधि -  हनुमान विषयक सभी नियमों का पालन कर के इस चालीसा का पाठ करने से , सभी बाधाओं का शमन और विघ्नो से छुटकारा मिल जाता हैं इसमें कोई संदेह नहीं , ये तब काम करता हैं , जब मनुष्य की भावना और कर्म साफ़ सुथरे हो। ...

    संपर्क  -  +91 9207 283 275




    तिलिस्मानी चिराग

    जय महाकाल - 


    सिद्ध   तिलिस्मानी चिराग -



    जय महाकाल


    मित्रो ये एक  बहोत ही दुर्लभ तंत्र सुलेमानी का  विशेष चिराग हैं , जो की हजरत गौसपाक की कलाम से लिखा गया हैं , जो व्यक्ति  सुलेमानी तंत्र के बारे में जानते हैं ,तांत्रिक साधना करते  हैं। .. उनके लिए  खास कर साबरी सुलेमानी तंत्र  ,हर प्रकार के  मुस्लिम तंत्र  और इल्म की तस्खीर के लिए यह एक बहोत ही नायाब , चिराग हैं जो की विशेष तंत्र प्रणाली से इस नक्श ऐ चिराग को बनाया गया हैं , जो साधक साधना में , मुकम्मल स्थान हासिल करना चाहता हैं उनके लिए , ये चिराग किसी तिलिस्म से कम नहीं , अगर जिज्ञासा हैं तो यह चिराग उन साधको  के लिए , किसी जादू  से कम नहीं , मित्रो ऐसे दुर्लभ वस्तु का संग्रह अवश्य करना चाहिए। ..

    अगर कोई साधक , या आमिल इस नायाब सिद्ध  चिराग को प्राप्त करना चाहता हैं तो हमसे अवश्य प्राप्त कर सकता हैं ,



    संपर्क  -  +91 9207 283 275