प्रेत साधना- Pret Sadhna


जय महाकाल -


साधक दोस्तों जिस प्रकार ईश्वर हैं तो ये भी मानकर चलना होगा के भूत भी होते हैं किसी को दीखते हैं 
बहोत से लोगों को नहीं दीखते हैं मगर तंत्र जगत में हर चीज को देखने की माया उपलब्ध हैं अर्थात 
साधना सिद्धि के माध्यम से देखा जा सकता हैं जिस तरह आप अपने इष्ट की सेवा करते हैं ठीक वैसे ही 
भूतों की साधना कर के उनको प्रत्यक्ष कर के उनसे काम भी लिए जा सकते हैं 
 जिस साधक के  हृदय में विश्वास नहीं और गुरु पे श्रद्धा नहीं उसे  मंत्र कभी सिद्ध नहीं हो सकते।

pret sadhna


- प्रेत बीजोक्त मंत्र -

शान्ति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥
मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥
 रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।


 इस साधना को  अमावस्या के बाद आपको ११ दिनों के  लिये  रात्रिकाल मे समय देना है समय रात्री मे १०:४० बजे का होगा,और एक वट-वृक्ष को ढूंढ कर जहाँ कोई आता जाता ना हो। वहाँ करनी हैं अन्यथा शमसान में या फिर एकांत कमरे में कर  सकते हो। ....  साधना के  लिए .........काले भेड़ का  आसान काले वस्र   साधना मे आवश्यक है, गुरु से सिद्ध की हुई काली हकीक की  माला , कला भूत नामक इत्तर की  व्यवस्था पहेले से ही करके रख लीजियेगा ... ,साधना से पूर्व ही गुरुमंत्र  दिशा आसान  बांध लेना हैं , तत्त  पश्चात्  नरमुंड की खोपड़ी में अंकोल के तेल का दीपक जला कर  मूल  मंत्र का जाप अधिक से अधिक कर लेना है....  क्यू की यह साधना अत्यधिक उग्र एवं  तीव्र  मानी जाती है,कमजोर हृदय वाले साधक गलती से भी इस साधना को करनेका प्रयास न करे अन्यथा हानि होने की सम्भावना अधिक हैं। ..  गुरु  मार्गदर्शन में रहकर इस साधना को करे। ..  

| इस तरह साधना सफल होने  पर सभी प्रकार के भूत प्रेत और पिशाच आपके नियंत्रण में आ जायेगे | सभी प्रकार के भूत प्रेत और पिशाच इत्यादि पर काबू  करने में आप सफल हो जायेगे | और वे सभी आपकी आज्ञा का पालन करेंगे  |और आपका कहा हुआ हर काम पूरी ईमानदारी से करेंगे  |इस मंत्र के प्रभाव से सभी तरह के यक्ष ,पिशाच , भूत तथा अन्य  प्रकार की इतर योनी आपके कहने अनुसार काम करेंगे। ..  अर्थात समझ  लीजिये सर्व कार्य साधन। .. सफल  हैं।    ........ ....... 






-भूत प्रेत मन्त्र - 


      ॐ ह्रौं....क्रौं क्रौं....क्रुं फट फट कट कट.... ....ह्रीं ह्रीं भूत प्रेत भूतिनी प्रेतिनी आगच्छ आगच्छ ह्रां ह्रीं ठ ठ


- विशेष चेतावनी -

इस माध्यम पर दी गयी हर साधना ज्ञान वर्धन जानकारी के उद्देश्य से दी गयी हैं, क्रिपया साधना करनी हो तो गुरु निर्देश में रहकर करे , या स्वयं के जिम्मेदारी पर करे , कोई मानसिक या अन्य हानि के लिए यह माध्यम जिम्मेदार नहीं होगा | 


 
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दस महाविद्या दीक्षा - Das Mahavdya Diksha


जय महाकाल - 


दश महाविद्या गुरु दीक्षा -










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जय महाकाल मित्रों। ... सबसे पहले ये जान  ले की दश  महाविद्या क्या हैं। .. 

दशमहाविद्या।..  अर्थात  महान  विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है।... बस इसके लिए कठिन परिश्रम और एक काबिल गुरु की आवशकता हैं। .. 
महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है।... जैसे की। ... दुर्गा और उसके १० रूप। ... 

शाक्त भक्तों के अनुसार "दस रूपों में समाहित एक सत्य कि व्याख्या है - महाविद्या" जो कि जगदम्बा के दस लोकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या करते है। महविद्याएँ तान्त्रिक प्रकृति की मानी जातीं हैं जो ... 

श्री  देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई। जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे। उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया, द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती पिता के द्वार आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, जब तक कि सती ने स्वयं को एक भयानक रूप मे परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया। जिसे एख भगवन शिव भागने को उद्यत हुए। अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगी। तो शिव जिस दिशा में उस दिशा में माँ का विग्रह रोकता है। इस प्रकार दशो दिशाओं में माँ ने ओ रूप लिए थे वो ही दस महाविद्या कहलाई। तत्पश्चात् देवी दस रूपों में विभाजित हो गयी जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं। वहाँ पहुँचने के बाद माता सती एवं उनके पिता के बीच विवाद हुआ।।।

जानिए - देश देवियों की महिमा - प्रथम कुल काली कुल - .. 

काली देवी - हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो असल में सुन्दरीरूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको ख़ासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको ग्रास बना लेता है। माँ का यह विद्वंश रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवीय प्रकति के है जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई को ख़तम करके अच्छाई को जीत दिलवाने वाला रूप है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेछु है और पूजनीय है।... 

द्वितीय - तारा देवी
संकट का तुरंत करें समाधान दस महाविद्याएं, जानिए कैसे - .तारा : तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है। सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी...
  आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती।।।। 

तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता  यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। .... चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह...तत्काल पूर्ण हो जाती हैं। . ... 
https://mantraparalaukik.blogspot.in/ तृतीया देवीत्रिपुर सुंदरी : षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इसे ललिता, राज राजेश्वरी और ‍त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। .. 
त्रिपुरासुन्दरी दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक हैं। इन्हें 'महात्रिपुरसुन्दरी', षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं। वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं।।।। 
त्रिपुरसुन्दरी के चार कर दर्शाए गए हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है।.. जो इनका आश्रय लेते है, उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना करते हैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान कर देती हैं।... चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है। आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है।.....   एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से पूछा, ‘भगवन! आपके द्वारा वर्णित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइये।’ तब पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को प्रकट किया।.... 
‘‘भैरवयामल और शक्तिलहरी’’ में त्रिपुर सुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है।...  ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। इनकी उपासना ‘‘श्री चक्र’’ में होती है। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाता है- भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं।।..... 

चतृर्थ देवी - .भुवनेश्वरी : भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। पुत्र प्राप्ती के लिए लोग इनकी आराधना करते हैं।
आदि शक्ति भुवनेश्वरी मां का... आशीर्वाद मिलने से धनप्राप्त होता है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं।  इसमें कोई संदेह नहीं। ....  
भुवनेश्वरी अर्थात संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी। वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं। ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है। ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी। छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है। यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है। इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है।
भुवनेश्वरी इससे ऊँची स्थिति है। उसमें सृष्टि भर का ऐश्वर्य अपने अधिकार में आया प्रतीत होता है। स्वामी रामतीर्थ अपने को 'राम बादशाह' कहते थे। उनको विश्व का अधिपति होने की अनुभूति होती थी, फलतः उस स्तर का आनंद लेते थे, जो समस्त विश्व के अधिपति होने वाले को मिल सकता है। छोटे-छोटे पद पाने वाले-सीमित पदार्थों के स्वामी बनने वाले, जब अहंता को तृप्त करते और गौरवान्वित होते हैं तो समस्त विश्व का अधिपति होने की अनुभूति कितनी उत्साहवर्धक होती होगी, इसकी कल्पना भर से मन आनंद विभोर हो जाता है। राजा छोटे से राज्य के मालिक होते हैं, वे अपने को कितना श्रेयाधिकारी, सम्मानास्पद एवं सौभाग्यवान् अनुभव करते हैं, इसे सभी जानते हैं। छोटे-बडे़ राजपद पाने की प्रतिस्पर्धा इसीलिए रहती है कि अधिपत्य का अपना गौरव और आनन्द हैं।।। 
यह वैभव का प्रसंग चल रहा है। यह मानवी एवं भौतिक है। ऐश्वर्य दैवी, आध्यात्मिक, भावनात्मक है। इसलिए उसके आनन्द की अनुभूति उसी अनुपात से अधिक होती है। भुवन भर की चेतनात्मक आनन्दानुभूति का आनन्द जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है। गायत्री की यह दिव्यधारा जिस पर अवतरित होती है, उसे निरन्तर यही लगता है कि उसे विश्व भर के ऐश्वर्य का अधिपति बनने का सौभाग्य मिल गया है। वैभव की तुलना में ऐश्वयर् का आनन्द असंख्य गुणा बड़ा है। ऐसी दशा में सांसारिक दृष्टि से सुसम्पन्न समझे जाने की तुलना में भुवनेश्वरी की भूमिका में पहुँचा हुआ साधक भी लगभग उसी स्तर की भाव संवेदनाओं से भरा रहता है, जैसा कि भुवनेश्वर भगवान को स्वयं अनुभव होता होगा।
भावना की दृष्टि से यह स्थिति परिपूणर् आत्मगौरव की अनुभूति है। वस्तु स्थिति की दृष्टि से इस स्तर का साधक ब्रह्मभूत होता है, ब्राह्मी स्थिति में रहता है। इसलिए उसकी व्यापकता और समर्थता भी प्रायः परब्रह्म के स्तर की बन जाती है। वह भुवन भर में बिखरे पड़े विभिन्न प्रकार के पदार्थों का नियन्त्रण कर सकता है। पदार्थों और परिस्थितियों के माध्यम से जो आनन्द मिलता है उसे अपने संकल्प बल से अभीष्ट परिमाण में आकषिर्त-उपलब्ध कर सकता है।.. 
भुवनेश्वरी मनः स्थिति में विश्वभर की अन्तः चेतना अपने दायित्व के अन्तगर्त मानती है। उसकी सुव्यवस्था का प्रयास करती है। शरीर और परिवार का स्वामित्व अनुभव करने वाले इन्हीं के लिए कुछ करते रहते हैं। विश्वभर को अपना ही परिकर मानने वाले का निरन्तर विश्वहित में ध्यान रहता है। परिवार सुख के लिए शरीर सुख की परवाह न करके प्रबल पुरुषार्थ किया जाता है। जिसे विश्व परिवार की अनुभूति होती है। वह जीवन-जगत् से आत्मीयता साधता है। उनकी पीड़ा और पतन को निवारण करने के लिए पूरा-पूरा प्रयास करता है। अपनी सभी सामर्थ्य को निजी सुविधा के लिए उपयोग न करके व्यापक विश्व की सुख शान्ति के लिए, नियोजित रखता है।
वैभव उपाजर्न के लिए भौतिक पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। ऐश्वर्य की उपलब्धि भी आत्मिक पुरुषार्थ से ही संभव है। व्यापक ऐश्वयर् की अनुभूति तथा सामथ्यर् प्राप्त करने के लिए साधनात्मक पुरुषाथर् करने पड़ते है। गायत्री उपासना में इस स्तर की साधना जिस विधि-विधान के अन्तगर्त की जाती है उसे 'भुवनेश्वरी' कहते है।
भुवनेश्वरी के स्वरूप, आयुध, आसन आदि का संक्षेप में-विवेचन इस तरह है-- भुवनेश्वरी के एक मुख, चार हाथ हैं। चार हाथों में गदा-शक्ति का एवं राजंदंड-व्यवस्था का प्रतीक है। माला-नियमितता एवं आशीर्वाद मुद्रा-प्रजापालन की भावना का प्रतीक है। आसन-शासनपीठ-सवोर्च्च सत्ता की प्रतीक है।
https://mantraparalaukik.blogspot.in/ पंचम देवी - छिन्नमस्ता - इस पविवर्तन शील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है। इनका सिर कटा हुआ और इनके कबंध से रक्त की तीन धाराएं बह रही है। इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन है। देवी के गले में...हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है।
माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है। शरीर रोग मुक्त होताते हैं। सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं। यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है।  .... दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनि चक्र है। छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए। इस के कुछ हजार  जप करने पर देवी सिद्ध होकर कृपा करती हैं। जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश  और कन्या भोजन करना अनिवार्य हैं।।।।  . 

षष्ठम देवी - त्रिपुर भैरवी - त्रिपुर भैरवी : त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर...संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं।।।। 
माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र...इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका।। में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।
जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य...सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है।  .. देवी कथा : नारद-पाञ्चरात्र के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं। भगवान शिव जब देवी को अपने समक्ष नहीं पाते तो। . तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं। शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारदजी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर के उत्तर में हो सकते हैं। वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी। तब भोले शिवजी की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहां जाते हैं। महर्षि नारदजी जब वहां पहुंचते हैं तो देवी से। . शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया विग्रह 'त्रिपुर-भैरवी' का प्राकट्य होता है।. .. 

अष्टम देवी - धूमावती  : धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चंतता आती है। इनकी साधना या प्रार्थना से आत्मबल का विकास होता है। इस महाविद्या के फल से...देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।
मां धूमावती महाशक्ति...स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है।
इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महाविद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ-लालच से दूर रहें। शराब और मांस को छूए तक नहीं।. ..   .... 

नवम देवी - बगलामुखी - बगलामुखी : माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। बगला मुखी के देश में तीन ही स्थान है। कृष्ण और अर्जुन ने महाभातर के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा की पूजा अर्चना की थी। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।
जिसकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है। इसकी साधना से जहां घोर शत्रु अपने ही विनाश बुद्धि से। .. पराजित हो जाते हैं वहां साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।
बगलामुखी का मंत्र: हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला 'ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' का जाप करना चाहिए। .. .. 
https://mantraparalaukik.blogspot.in/ दशम देवी - मातंगी - मातंगी : मतंग शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है।
यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।
पलास और मल्लिका  पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
मातंगी माता का मंत्र गुरु से  सिद्ध की हुई  स्फटिक की माला से  'ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं।।।।  . 

कमला देवी -  कमला : दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर करती है कमलारानी। इनकी सेवा और भक्ति से व्यक्ति सुख और समृद्धि पूर्ण रहकर शांतिमय जीवन बिताता है।
श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण...कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि, धन, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है। इस महाविद्या की साधना नदी तालाब या समुद्र में गिरने वाले जल में आकंठ डूब कर की जाती है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसांर भर में प्रचारित। . हो जाता है।
कमला माता का मंत्र : गुरु से सिद्ध की हुई  कमलगट्टे की माला से रोजाना जाप  'हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम गुरु से जानकर  साधना को शुरू करना चाहिए। ... 



दश 
महाविद्या की  साधना में रूचि रखने वाले साधक  अवश्य संपर्क करे - 


संपर्क  09207 283 275





शाबर मंत्र गुरु दीक्षा एवं शाबर मन्त्र सिद्धि -

जय महाकाल - 




शाबर मंत्र जगाने की अचूक विधि -
 
जय महाकाल 

मित्रो आज आप लोगो के लिए विशेष पोस्ट दे रहा हूँ , जो की हर साधक जो शाबर मंत्रों को जगाने की इच्छा रखता हैं उन सब के लिए दे रहा हूँ। ..... जो  लाख कोशिश करने के बावजूद भी  शाबर मन्त्र नहीं जगा पा रहे हो । ... मित्रो आज  के इस   इंटरनेट के दुनिया में आप देखेंगे अनेको वेबसाइट और  ब्लॉग हैं , जिस पर अनेको मंत्र दिए हुए हैं। कई लोग नेट पर से मन्त्र   उठा कर बिना सोचे समझे  जाप करना शुरू कर देते हैं , और अंततः  थक हार लेते हैं मगर उनसे मन्त्र सिद्ध नहीं हो पाता । .. और न कोई अनुभूति होती है .. क्यों की अधूरी विधि और  गुरु का मार्गदर्शन ना होने की वजह से  निराशा हाथ आती हैं। . मगर शाबर मंत्र जागृत कैसे होता हैं.. इसका सत्य कोई नहीं लिखता , बहोत ही कम लोगो को इसके बारे में पता होता  हैं। .. जिनको पता हैं वो बताते नहीं। .... ..... मित्रों आज हम आपके लिए इसकी विधि का खुलासा कर रहे हैं। ..


*  मित्रों।।।   सबसे पहले तो बिना गुरु आशीर्वाद  के कोई भी मन्त्र सिद्ध नही होता। . इस लिए गुरु कृपा एवं गुरु सानिध्य अनिवार्य हैं। ....

पर्याय - १) अगर आप कई वर्षों से साधना में हो, और आप पर गुरुकी या अपने इष्ट की कृपा हैं। . तो ये मन्त्र आप सिद्ध कर पाओगे। .. ये आपको दृष्टांत द्वारा पता चल जायेगा। ....

पर्याय -२ ) या फिर आप किसी गुरु के सानिध्य में रह कर साधना शुरू करे .....  जो शाबर मंत्रो के सिद्धि के जानकार हो  .....|

मित्रो शाबर मंत्रो में कई प्रकार है , जैसे की गोपाल शाबर , झुमरी शाबर , डार शाबर , बर्भरी शाबर , इत्यादि   जो की बहोत कम लोगो को इसकी जानकारी हैं... कई लोग समझते हैं के  शाबर मन्त्र स्वयं सिद्ध हैं , उनको जगाने की आवशकता नहीं हैं ,ये सत्य हैं मगर वो अलग प्रकार के मन्त्र हैं जो आसानी से उपलब्ध हैं जो की सर्दी , ज्वर ,तिजारी ज्वर , कुत्ते के विष निवारण , हाजमे का मंत्र , छोटे बालको के नजर झाड़ा मंत्र इत्यादि मंत्रो   को सिद्धि की आवशकता नहीं होती। ... मगर कुछ विशेष शाबर मन्त्र ऐसे होते हैं , जो की विशेष महूरत में खास तिथि में उनको एक मुकम्मल  संख्या में   जाप कर के सिद्ध करना पड़ता हैं तभी वो अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते हैं।  जैसे से की तंत्र बाधा काटना , मुठ चपेट , काटना , चुड़ैल डाकण को बांधना , तीव्र वशीकरण करना , या दुश्मन को तबाह करना , अघोरी क्रियाओं को रोकना, जिन्न  जिन्नातों को भगाना इत्यादि  मंत्रो की विधि ख़ास होती हैं... जो की डार शाबर एवं बर्भर शाबर के तहत आते हैं ,ये गुप्त शाबर मंत्र कहलाते हैं .... जिनको जगाने की आवशकता होती हैं। ..

शाबर मंत्र जगाने की तंत्रोक्त विधि - 
सर्व प्रथम। .. सिद्ध किया हुआ गुरु यंत्र और सिद्ध किया हुआ शाबरी यन्त्र - की स्थापना एक बाजोट पर चावलों की ढेरीपर सिद्धि योग में कर ले। . धुप, दिप ,और नेवैद्य फल फूल रख कर। प्रणाम कर के .निम् मन्त्र से आवाहन करे। ....
*  सर्व प्रथम। .. गुरु गणेश  और शिव का आवाहन करे। ....

* शाबर गुरु मन्त्र -
    
 गुरु सठ  गुरु सठ गुरु हैं वीर , गुरु साहब सुमरो भाँत
     सिंगी टोंरों  बन कहो , मन नाऊ करतार ,
     सकल गुरु की हर भजे,घट्टा पाकर ऊठ जाग
     चेत सम्हार श्री परम् हंस  गुरु साहेब

*  उपरोक्त मन्त्र का यथा शक्ति जाप करे। ...

*   गणेश मन्त्र -  ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम : सिद्धिं मे देहि बुद्धिं
प्रकाशय ग्लूं  ग्लिम ग्लां  फट् स्वाहा||

विधि :-
इस मंत्र का जाप  साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठ कर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का  हलवा अथवा  लड्डू भोग में धरे तथा जप काल में (काले कपूर को अग्नि पर सुलगाये )  यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को  सिद्ध करने की शक्ति प्रदान करता है|

 *   वज्र  क्रोधाय महादन्ताय  दसदिशो बँध बँध हूम्म फट्ट स्वाहा |||

*  शिव आवाहन मन्त्र -    (  हंस : शिव: | सोsहं : हंस : | शिव : सोsहं :| )

     उपरोक्त मन्त्र का यथा शक्ति जाप करे


ओम आदि नाथ ज्योति रूप बसों तुम जानि,सकल पदार्थ तुम् बसे ,बसी जगदम्बा साथ तोहारे,नीली ज्योति रूप तुम्हारा,कारज पूरा आतम शक्ति का ,आशीष सकल गुरु शक्ति का.

इसके बाद वो गुटिका आपके लिए साधना में प्रयुक्त की जा सकती है.इसके साथ उस अद्भुत महायंत्र की स्थापना तो साधक का महा सौभाग्य ही होता है.जिसके बाद साबर साधनाओं में सफलता के द्वार उसके लिए खुल जाते हैं.

स्व नाभि पर ध्यान केंद्रित करते हुए १ घंटे तक निम्न मंत्र का जप करे,ये मन्त्र अद्भुत चमत्कारी मंत्र है जो आपकी साधना को आपके लिए पूर्ण प्रभावकारी बना देता है-

ओम श्रीं ह्रीं मृत्युन्जये भगवति चैतन्यचन्द्रे हंससंजीवनि स्वाहा
* रविवार को रात में असावरी देवी की विधिवत उपचारों से पूजन  करे कांसे की थाली को आम्र के काष्ट की रक्षा से मांज ले। ...
और प्रत्येक प्रहर के आरम्भ में इस मंत्र को उस थाली में कुमकुम से लिख कर उसे सामने रख कर - मूल मन्त्र का १०८ बार जाप करे
मन्त्र
ॐ असावरी असावरी पूरण करो हमारी कामना,सिद्धि दीजो,रखियो लाज,असावरी मैया की दुहाई.

इस मन्त्र का यथा शक्तिजाप करे और  (वीर माहेश्वर ऊद से हवन में १०८ मन्त्र जाप से आहुति दे) जो मंत्र आप सिद्ध करना चाहते हैं उस मन्त्र का  १०८ बार जाप करे इस प्रकार चारो प्रहर जाप करना हैं। .चौथे प्रहर में जाप के बाद शाबरी देवी का आवाहन करे  ..... (  हे शाबरीदेवी जाग्रतहो,सिद्धि  दो )  ये केहकर लाल खैर की लकड़ी से कासे की थाली को बजाएं ( कासे की थाली हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ) निश्चित ही इस क्रिया से  मन्त्र जाग्रत होकर अपना प्रभाव दिखाते है.... इसमें कोई संदेह नहीं

शाबरी मूल मन्त्र - 

तंत्रोक्त शाबर मंत्र जगाने की विधि  इस प्रकार हैं 

उपरोक्त मन्त्र का पर्व काल में यथाशक्ति जाप कर के सिद्ध कर ले। फिर  ..( वीर माहेश्वर ऊद से अग्नि में १०८ )  बार मन्त्र पढ़ कर आहुति दे। .. ( वीर माहेश्वर ऊद हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ) आहुति के पश्चात् मन्त्र की सिद्धि हो जाएगी। ... जब कभी इच्छित कार्य की सिद्धि करनी हो। .. तब पर्व सिद्धि काल में। .. १०८  मन्त्र जप कर के सिद्ध वीर माहेश्वर ऊद से आहुति देवे। .. इच्छित कार्य सफल हो जायेगा। .. मेरे साधक दोस्तों एक बात ये भी सत्य हैं अगर आप शाबर  मंत्रों की उच्च कोटि की साधना प्राप्त करना चाहते हैं या  एक उच्चतम साधक बनना चाहते हैं तो गुरु का सानिध्य अवश्य प्राप्त करें पश्चात ही आपको साधना की तीव्रता का आभास होगा | जिस प्रकार पुस्तक पढ़ कर कोई विद्वान् नहीं बन सकता ठीक वैसे ही बिना गुरु के ज्ञान अर्जित करना कठिन हो जाता हैं | 

विशेष नोट - शाबर मंत्रो में लगने वाली दुर्लभ सामग्री हमारे यहाँ उपलब्ध हैं इच्छुक साधको को शुल्क के साथ  विधि सामग्री दी जाएगी 

चेतवानी - इस ब्लॉग पर सभी पोस्ट स्वयं लिखित हैं , ब्लॉग के चोरो को चेतवानी हैं। . कॉपी पेस्ट करने का प्रयास ना करे। .. अन्यथा करने वाले को। ... बक्शा नहीं जायेगा। ..


जय महाकाल।   आदेश 


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तांत्रिक बाधा और उसका अचूक उपाय -


जय महाकाल - 


तांत्रिक बाधा और उसका अचूक उपाय -







जय महाकाल , मित्रों



आज आपके लिए एक विशेष पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ , जो की हर एक व्यक्ति के आस पास इर्द गिर्द , यह घटना प्राय : होती रहती हैं , जिसका अंदाजा आम इंसान को नहीं होता , क्यों के  वह शख्स इस मायावी दुनिया से बेखबर होता हैं ,  कलयुग में कुछ लोग इसे अंध विश्वास कहते हैं ,  और जो मानते हैं वो इस खतरे बचे रहते हैं। ...  ....... .......  
 मित्रो आज के युग में , हर क्षेत्र में कॉम्पिटिशन हैं मुकाबला हैं ,और हर इंसान एक दूसरे को टेक ओवर करके आगे जाना चाहता हैं। ... दौलत और  प्रसिद्धि पाना चाहता हैं , फिर वो चाहे व्यापार हो , दुकानदारी हो , कोई अधिकारी पद हो , या जमीन जायदाद का विषय हो  , संपत्ति  बटवारा हो , कोर्ट कचेरी हो , या फिर राज निति हो........ |   कुछ लोग इस हद तक गिर जाते हैं , के ये सब प्राप्त करने के लिए , टोनाह , काला जादू , या अघोर शमशानी क्रियाओं का इस्तेमाल कर के , दूसरे को विनाश के घाट उतार कर , अपनी जित हासिल कर लेते। ......
हैं। ...इस मायावी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग बसे हुए हैं ,जो की चंद रुपयों के लिए वो किसी का भी घात करने से नहीं चूकते  , उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई जिन्दा हैं या मर गया। .... 

मित्रो। ... आपने कभी आजमाया होगा की , अच्छा चलने वाला व्यापार अचानक से   नुक्सान देने लगता हैं , घाटे पे घाटा होने लगता हैं , नौकरी में तरक्की रुक जाती हैं... घर का माहौल अचानक से बिगड़ जाता हैं , पत्नी ठीक से जवाब नहीं देती , पिता जो कभी एक शब्द न बोलने वाले आप पर राशन पानी लेकर चढ़ जाते हैं , भाई अचानक से दुश्मन बन जाता हैं , घर में एक कलेश का वातावरण निर्माण हो जाता हैं , अगर राज निति हैं , तो यकायक प्रति द्वन्द्वी खड़े हो जाता हैं। ... आपके दुश्मन अचानक से बढ़ जाते हैं। ..... मित्रो इस मायावी जगत में कुछ   भी संभव हैं कुछ भी  कराया जा  सकता हैं , जो की आप लोगो के समझसे बाहर हैं , जो वक्त के चलते  इसे समझ लेते हैं। ....वो उसे तुरंत इसका उपाय कर अपने आप को सुरक्षित कर लेते हैं। ... बशर्ते आपको उस  उचित जगह पहुंचने की देर होती हैं ... मित्रो हर वो चीज संभव हैं इस मायावी तंत्र दुनिया में। ... जिससे आप अनजान हैं। ..
मित्रो इन सब घटना में से कोई भी एक क्रम अगर आपके जीवन में अनुभव हो रहा हो तो समझ लीजिये की खतरे की घंटी हैं  , तो इस पर ज्यादा विचार ना करते हुए अपने आपको जरूर सुरक्षित कर लीजियेगा। .. क्यों की तंत्र का असर तुरंत होता हैं , और उससे बचाने वाले बहोत कम ही बचे हुए हैं। जो बचे हुए हैं वो बहोत ही कम लोग उनके पास पहुँच पाते  हैं .... ऐसी बुरी अवस्था में अक्सर लोग पोंगा पंडितो के चक्कर में फस जाते हैं। .. और ये पाखंडी पंडित अपनी दूकान चलाने के चक्कर में  ऐसे लोगो को ठग लेते हैं। ...
मित्रो तंत्र और काला जादू ऐसी मायावी दुनिया हैं , इसको निकाल फेकना इन पोंगा पंडितों के बस की बात नहीं। जिस प्रकार लोहे को काटने के लिए लकड़ी की नहीं लोहे की जरुरत पड़ती हैं  .. ...ठीक वैसा ही इस क्षेत्र में होता हैं। .....   तो मित्रों अगर आप को लगता हैं के  ऐसी अवस्था में घिरे हुए हो। .. तो पोंगा पंडितों से बचे। ... अपना समय और धन बर्बाद होने से बचाये। ..... जिस प्रकार लोहा लोहे को काट ता हैं। .. उसी प्रकार काला तंत्र को काला तंत्र ही नष्ट कर सकता हैं। ..... इसमें कोई संदेह नहीं। ...



( अगर किसी को उपरोक्त प्रकार की  कोई समस्या हैं ,तो अवश्य संपर्क करे )


जय महाकाल





 

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