नर्मदेश्वर लिंग की महिमा - 


- जय महाकाल -


नर्मदेश्वर लिंग की महिमा





नर्मदेश्वर  महिमा -


  कहा जाता हैं की नर्मदा नदी का हर कंकर हैं शिव शंकर  ...  धर्मग्रंथों के अनुसार माँ नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था की नर्मदा का हर बड़ा या छोटा  पत्थर बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा. अतः नर्मदा के हर पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर सीधे ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है...
यहाँ  बात महादेव  की हो रही है जहाँ  समस्त  सौंदर्य, सारा सरोवर  ही नर्मदा नदी का ऋणी है अतः नर्मदा माई  के गुणगान के बिना लिंग स्थापना  अधूरी हैं  पुण्य सरिता माता नर्मदा के बारे में. कहा जाता हैं की। .... 

 मध्य प्रदेश  और  गुजरात राज्य  में बहने वाली एक प्रमुख नदी है. मैकाल पर्वत के अमरकंटक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है. मध्य प्रदेश के अनुपपुर जिले में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है तथा तेरह सौ किलोमिटर का सफर तय करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच भरुच के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है.. कहते हैं, किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था. साधको  के लिए अमरकंटक बहुत हीमहत्वपूर्ण   स्थान कहा जाता  है. नर्मदा नदी को ही उत्तरी और दक्षिणी भारत की सीमारेखा मणि  जाती  है....

देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है. नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊँचाई से गिरती है. अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं....
भारत की नदियों में नर्मदा माई  का अपना महत्व है. न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है, कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है. नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है,... माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं..,


नर्मदा, समूचे विश्व मे दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है. इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक  के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया. महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया. इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है.. --

अकाल पड़ने पर ऋषियों द्वारा नर्मदा की  तपस्या की गयी  उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की. तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (  नर्मदा के  तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही जगद्पिता  शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है...

नर्मदा में स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. प्रात:काल उठकर नर्मदा का कीर्तन करता है, उसका सात जन्मों का किया हुआ पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है. नर्मदा के जल से तर्पण करने पर पितरोंको तृप्ति और सद्गति प्राप्त होती है. नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं. नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है. वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं. इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनो सुलभ हो जाते हैं....

धर्मग्रन्थों में नर्मदा में प्राप्त होने वाले लिंग ( नर्मदेश्वर ) की बडी महिमा बतायी गई है. नर्मदेश्वर लिंग को स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना गया है. इनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती. आवाहन किए बिना इनका पूजन सीधे किया जा सकता है. कल्याण के शिवपुराणांक में वर्तमान श्री विश्वेश्वर-लिंग को नर्मदेश्वर लिङ्ग बताया गया है. मेरुतंत्रके चतुर्दश पटल में स्पष्ट लिखा है कि नर्मदेश्वरके ऊपर चढे हुए सामान को ग्रहण किया जा सकता है. शिव-निर्माल्य के रूप उसका परित्याग नहीं किया जाता. बाणलिङ्ग(नर्मदेश्वर) के ऊपर निवेदित नैवेद्य को प्रसाद की तरह खाया जा सकता है. इस प्रकार नर्मदेश्वर गृहस्थों के लिए सर्वश्रेष्ठ शिवलिंग है. नर्मदा का लिङ्ग भुक्ति और मुक्ति, दोनों देता है. नर्मदा के नर्मदेश्वरअपने विशिष्ट गुणों के कारण शिव-भक्तों के परम आराध्य हैं. भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं....



कर्पूरगौरं मंत्र- 

|| कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। || 
सदा वसंतम  हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।


-भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्र –

॥ ऊं नमः शिवाय ॥


यह एक ऐसा मंत्र हे जिसमे बंधन नहीं हैं , भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है ।


संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्र –


॥ ॐ  हौं ऊं जूं ऊं सः ॐ  भूर्भुवः ऊं स्वः ॐ  त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ॐ  स्वः ॐ  भूर्भुवः ॐ  सः ॐ  जूं ॐ  हौं ॐ  ॥.. 


-शिवलिंग की महिमा –


भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है। इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है।.. 

मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति।। ॥

अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।.... 

शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं।।।। 


-शिवलिंग पर अभिषेक-

शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है । शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक धारा कहलाता है । जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन च कारयेत।।

अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये ।.... 

हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है... ।


शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह है –. 


( ॐ  हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः। )



( ॐ  नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च। ) 

इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है।''' 

- सहस्रधारा –

जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है।
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है।
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए।
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास।
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है।
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है।
सुगंधित तेल व इत्र की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति।। 


सहस्राभिषेक –

एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति।।।
एक हजार धतूरे के पुष्प चढ़ाना पुत्रप्रदायक है।..
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढ़ाना प्रसिद्धि दायक।।
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्ति।।
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुकृपा प्राप्ति।।
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है।
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है।. 


-लक्षाभिषेक –

एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है.. ।
एक लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है।..
एक लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग व मोक्ष प्राप्ति।।।
एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति।।।
एक लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है।..
एक लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है।..
एक लाख तुलसीदल चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति।।।
एक लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है।


बेलपत्र –


शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है। अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं। इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है। इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है –

त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुधम।
त्रिजन्म पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥

    उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए।

शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये –

पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये।
रुद्राक्ष की माला हो तो धारण करें।
भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।

शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता।
सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।

शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा तथा चम्पा के फूल न चढायें।
पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।


-शिव को प्रसन्न करने के आसान उपाय-


भगवान शिव को आशुतोष ( तत्काल प्रसन्न होने वाले ) कहा गया है। वे जल व बिल्वपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देवता हैं। शिव महापुराण में कहा गया है कि –

त्रि दलम्‌ त्रि गुणाकारम्‌, त्रि नेत्रम्‌ च त्रयायुधम्‌।
त्रि जन्म पाप संहारम्‌, एक बिल्व शिर्वापणम्॥


||  श्रीसाम्बसदा शिवार्पण शुभम भवतु   ||   

(  विशेष नोट - शिव भक्तो  के लिए नर्मदेश्वर लिंग उपलब्ध हैं   )  



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वीर नरसिंह साधना- vir narsingh sadhna shatru vinash


-जय महाकाल -


- वीर नरसिंह साधना - 




प्राचीन काल में हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार 

 नरसिंह देवता भगवान विष्णु जी के चौथे अवतार थे। जिनका मुँह सिंह का और धड़ मनुष्य का था जो हिंदू धर्म में इसी रूप में पूजे जाते हैं। लेकिन उत्तराखंड में नरसिंह देवता को भगवान विष्णु के चौथे अवतार को नही पूजा जाता, बल्कि एक नवनाथों के पंथ में  सिद्ध योगी नरसिंह देवता को पूजा जाता है। जो की नाथ प्रणाली के तंत्र में वर्णित किया गया हैं   उनका जागरण के रूप में पूजा की जाती हैं।
नरसिंह, नारसिंह या फिर नृसिंह देवता का स्थान उत्तराखंड के गढ़वाल में चमोली जिलें के जोशीमठ में मंदिर स्थित हैं। जो भगवान विष्णु के चौथे अवतार को दर्शाता  हैं।
उत्तरा खंड के लोकदेवता नरसिंह को जगाने के लिए वहां के लोगों में पारंपारिक पूजा किया जाता हैं जिसे जागर कहा जाता हैं  घड़ियाल लगाई जाती है, उसमें उनके ५२  वीरों और ९  रूपों का वर्णन किया जाता है। जिसमें नरसिंह देवता का एक जोगी के रूप में वर्णन किया जाता है। जो की एक झोली, चिमटा, भस्म, कंकण , और तिमर का सोटा जिसे डण्डा  भी कहा जाता हैं , डंडा साथ में लिए रहते है। नरसिंह देवता के इन्ही प्रतीकों को देखकर उनको देवरूप मान कर उनकी पूजा की जाती हैं।
उत्तराखंड के गढ़वाल कुमाऊँ में नाथपंथी देवताओं की पूजा की जाती है, जिनमें यह नौ नरसिंह भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इनकी उत्पत्ति की थी और इनकी उत्पति कोई त्रिफल अथवा  केसर का पेड़ इनमे से एक वृक्ष से इनकी  ९ नाथ नरसिंह की उत्पत्ति हुई थी। भगवान शिव ने केसर के बीज बोए उनकी दूध से सिंचाई की केसर की डाली लगी उसपर ९  फल उगे और वह ९  फल अलग अलग स्थान प्रांतों में  गिरे तब जाकर यह ९ भाई नरसिंह का जन्म हुआ । पहला फल गिरा केदार घाटी में केदारी नरसिंह पैदा हुए, दूसरा बद्री खंड में तो बद्री नरसिंह पैदा हुए, तीसरा फल गिरा दूध के कुंड में तो दूधिया नरसिंह पैदा हुए, ऐसे ही जहां जहाँ वह फल गिरे वहां वहां नरसिंघ अवतार प्रगट  होते गए डौंडियो के कुल में जो फल गिरा तो डौंडिया नरसिंह प्रगट हो गए। 

यह ९ नाथ पंथी नरसिंह सिद्ध हुए जो गुरु गोरखनाथजी के अधिपत्य में  शिष्य बने जो कि बहुत ही तीक्ष्ण वीर हुए वह  सन्यासी बाबा थे जिनकी लंबी लंबी जटाएं उनके पास खरवा/खैरवा की झोली, ठेमरु का सौंठा (डंडा), नेपाली चिमटा इत्यादि चीजे होती थी। ९  नरसिंह में सबसे बड़े दूधिया नरसिंह कहे जाते है जो सबसे शांत और दयालु स्वभाव के है इनको दूध चढ़ाया जाता है और पूजा में रोट काटा जाता है और सबसे छोटे डौंडिया नरसिंह है जो कि बहुत क्रोध स्वभाव के है इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है और इनको पूजा में बकरे की बलि दी जाती हैं।
इनके अलग अलग जगहों के हिसाब से अलग अलग नाम के स्वरुप भी है परन्तु यह ९ ही है। इनके रूपों के नाम इस प्रकार हैं 

१ )  इंगला बीर नरसिंह -  २ ) पिंगला वीर -   ३)-जतीबीर   -  ४)- थती बीर  -  ५  ) घोर- अघोर बीर  

 ६)- चंड बीर -   ७ )  प्रचंड बीर  - ८ ) दूधिया नरसिंह  ९ ) -डौंडिया नरसिंह




यहाँ के मान्यता अनुसार उनका जागरण होता होता हैं किसी व्यक्ति पर उनकी सवारी भी लायी जाती हैं जागर में  उनकी वीर गाथाओं को गाया जाता है उनकी नगरी जोशीमठ का बखान होता है , पूजा में जागर का मतलब है कि उनकी वीर गाथा गाकर उनका आव्हान करना और उनकी पूजा करना। कहा जाता है की यह ९ भाई नरसिंह तो साथ चलते ही है इनके साथ साथ भैरव भी चलते हैं मसाण, और अन्य नरसिंह देवता के साथ नौ नाग, बारह भैंरो अट्ठारह कलवे,६४जोगिनी,  ५२ बीर, छप्पन कोट कालका की शक्ति चलती है और साथ ही इनको चौरासी सिद्धों का वरदान प्राप्त है।  देवी देवता भी चला करते हैं ।

जब गुरु गोरखनाथ जी केदारखंड आए थे तब ये नौ नरसिंह भाई इनके शिष्य बने तथा बहुत ही शक्तिशाली विद्याएं इन्होने प्राप्त की, जैसे काली विद्या बोक्षानी विद्या, कश्मीरी विद्या और भी बहुत विद्याएं जो आज भी वहां के इलाके में जीवित है, इस विद्या के जानने वाले बहुत कम ही शेष  रह गए है।  नरसिंह देवता बहुत ही घातक एवं उग्र प्रकार के देवता है और कोई दुष्ट शक्ति इनके आगे नहीं टिक पाती। अगर किसी के कुलदेवता नरसिंह देवता हैं और वह  छह पीढ़ी तक नहीं पूज रहें तो सातवीं पीढ़ी के बाद उनका  का सर्वनाश कर देते है। प्राचीन कथा के अनुसार इनका जन्म ब्रह्मा जी के दिव्य नौ श्रीफल से हुआ था। सबसे बड़े दूधिया नरसिंह है और सबसे छोटे डौंडिया नरसिंह हैं। दूधिया नरसिंह दूध, रोट अथवा श्रीफल से शांत होते है। और डौंडिया नरसिंह में बकरे की बलि देने की वहां की प्रथा है। इनको पिता भस्मासुर और माता महाकाली के पुत्र भी बताए जाते है जागर में, जागर में इनको बुलाया जाता है।

- नरसिंह वीर मंत्र -

ॐ नमो आदेश गुरु कूँ | ॐ नमो जय जय नरसिंह तीन लोक १४ भुवन में हाथ चाबी
और ओठ चाबी | नयन लाल लाल | सर्व बैरी पछाड़ मार |
भक्तन का प्राण राख | आदेश आदेश पुरुष को







-विधि -

मित्रों नरसिंह वीर यह भी एक वीरों में से खतरनाक वीर हैं , जिनकी साधना आसानी से नहीं की जा सकती अगर तुम्हारा कोई गुरु न हो तो , घातक हो सकती हैं यह  साधना। .. अगर ये मन्त्र सिद्ध हो जाता हैं तो इससे भयानक भूत , डायन चुड़ैल , पिशाच ,साकिनी इत्यादि को मार भगा सकते हैं। . मगर उतनी क्षमता आपके अंदर होना जरुरी हैं। .वैसे आम साधक इसे करने जाए तो उनको  भयावह अनुभूति होती हैं इसमें कोई दो राय नहीं । . अच्छे अच्छों के पेशाब निकल जाता  हैं। . .. एकांत मसान में बैठ इसकी साधना एक आसन में बैठ कर ग्रहण के दिन २०१६ की संख्या में जाप करने पर सिद्धि मिलती हैं। . गुरु के निर्देशन में रहकर साधना करे। . ये अनुभूत की हुई साधना हैं। . अपने सूझ बुझ से काम ले। .


संपर्क  -    09207 283 275 




कलुआ वीर मसान जगाने की साधना - 


- जय महाकाल -


कलुआ वीर मसान जगाने की साधना - 





जय महाकाल  दोस्तों | कलुवा वीर एक मसानी साधना हैं , जो की श्मसान में   जा कर  ही  की जाती हैं ,,इस साधना के लिए गुरु का सानिध्य अथवा गुरु दीक्षा अनिवार्य हैं। .अर्थात गुरु का  हाथ सर पे होना आवश्यक हैं। . अन्यथा स्वयं के  हानि का सामना करना पड सकता हैं। ... कलुवा बीर ये भी एक वीरों में से मसानी वीर हैं। .जिसे साधने के बाद हर काम आपका पल भर में सफल हो जाता हैं। .. जैसे  मारण , मोहन , स्तम्भन , उच्चाटन , वशीकरण। .इत्यादि प्रकार के काम चुटकी बजाते ही कर सकते हो इसमें कोई संदेह नहीं। .. बस इसके लिए आपको   कठिन परिश्रम और धैर्य और मजबूत फेफड़े की जरुरत हैं। . साधना अधूरी छोड़ देने पर झटका बैठने का संभव अधिक बना रहता हैं इसमें तो कृपया अपने सूझ बुझ से काम ले। .. इस साधना को कोई बिना सोचे समझे करेगा। . उसके हानि अथवा नुक्सान के जिमीदार प्रकाशक नहीं होंगे। .कृपया ध्यान रहे 



कलुवा वीर मंत्र -

   . .... ......... ..... बाबा। ........ ...... की     मरघटवासी की  दुहाई 
....... वाली की दुहाई। . .. मुर्दे खानेवाली की दुहाई। . पांचो पीरों की दुहाई 
सैय्यद बादशाह की दुहाई।  .. बावरी की मीर साहिबा की दुहाई 
कालका माई की दुहाई। .... .. कोतवाल की दुहाई।।।  बाबा बालक नाथ की दुहाई 
गुरु गोरखनाथ की दुहाई।  ... 
    ....... .......  ..... बाबा की दुहाई     मरघट वाली की दुहाई। ... भैरों काली की दुहाई 
पहलवान की। ...... 



जगाने की  विधि -
सर्व प्रथम आपको अमावस के दिन का चयन करना हैं समय रात ११ से १२ के बिच आपको एकांत स्थान , नदी , तालाब , सरोवर या शमसान। .. में जा कर एक स्थान पर काले भेड के उन के आसन  बिछा कर बैठ जाना हैं जाना हैं। . एक  सरसो के तेल का दिया जलना हैं।  एक देसी पान का पत्ता रखना हैं। .. उस पर २ लौंग। . और ५ बूंदी के लड्डू कलवे बीर के नाम से रखना हैं। ... और २०१६ बार मंत्र   जपना हैं। .. उससे मंत्र चैतन्य हो जायेगा। .. इस वीर से काम लेने  का तरीका इस प्रकार हैं। ... कार्य होने  बाद कलुवा बीर को पूजा अवश्य चढ़ाये 



(  कुछ  कारण वश  इस मंत्र के कुछ अंश सुरक्षित  रखे गए हैं  )




संपर्क  -    09207 283 275