जय महाकाल
रिद्धि सिद्धि गणपति मंत्र - Riddhi Siddhi Ganpati mantra
जीवन
में पूर्ण वैभववान बनना हर एक व्यक्ति का स्वप्न होता है. हर एक व्यक्ति
एक उत्तम जीवन की आशा में जीता है और सदैव प्रयत्नशील रहता है की उसे किसी
प्रकार से उत्तम और श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति हो. जीवन के हर एक क्षेत्र
में वह पूर्ण विजय को प्राप्त करे और इसके साथ साथ वह उत्तम कार्यों को
सम्प्पन कर अपने तथा अपने परिवार और कुल का गौरव और बढाए. वैभव का अर्थ
पूर्ण आकांशाओ और भौतिक महत्वपूर्णता की प्राप्ति से है. अपने जीवन काल में
व्यक्ति को कई सामजिक कार्यों का निर्वाह करने का उत्तरदायित्व स्वीकार
करने की इच्छा होती है. इसके साथ ही साथ वह यह भी चाहता है की वह तथा उसका
परिवार पूर्ण रूप से सुख का उपभोग करे. इसके अलावा समाज के विकास के लिए भी
कार्य करे. लेकिन यह सब कार्य इतना सहज नहीं हो पता. जीवन में धन की
प्राप्ति आवश्यक है साथ ही साथ वह धन का योग्य स्त्रोत से प्राप्त हो यह भी
आवश्यक है. इसी के साथ उस धन का हम पूर्ण रूप से उपभोग कर सके. हमारी
कीर्ति कायम रहे तथा हमारे प्रयत्नों में हमें सफलता मिले. इसके अलावा
हमारे सभी कार्यों से हमारे तथा हमारे परिवार का गौरव बढे. लेकिन यह सहज
नहीं हो पता है. वस्तुतः कोई व्यक्ति धन की समस्या से पीड़ित है तो कोई उस
धन के योग्य उपभोग की. किसी को धन का स्थायी स्त्रोत नहीं मिलता तो कही पर
परिवार में धन को ले कर क्लेश होता है. इन सब उल्जनो में व्यक्ति अपने मूल
चिंतन से दूर होने लगता है, ये सब विसंगिता उसको अपनी महत्वता और जीवन
निर्वाह के उत्तम चिन्तनो को दूर कर एक बोजिल जीवन जीने के लिए बाध्य कर
देती है. एसी स्थिति में व्यक्ति का जीवन विविध कष्टों के आवरण में ढक जाता
है. वस्तुतः इस प्रकार की परिस्थिति से साधक को बचना चाहिए तथा बाहर
निकालना चाहिए. साधक को पूर्वजो की साधना पध्धातियो को अपना कर एसी
परिस्थिति में साधनात्मक चिंतन संग उस समस्या का समाधान की खोज करनी चाहिए.
वैभव प्राप्ति सबंधित प्रयोग से साधक की इन सभी समस्याओ का निराकरण होता
है. साधक को धन, उसका योग्य स्त्रोत, धन की उपभोगता तथा कीर्ति और यश की
प्राप्ति का अर्थ ही यहाँ पर वैभव का अर्थ है. साधक इस प्रकार का प्रयोग
सम्प्पन कर अपनी एसी समस्याओ से मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है. ऐसे कई
प्रयोग गुरु मुखी परम्पराओ से चले आ रहे है जिसको करने पर साधक निश्चित रूप
से वैभव की प्राप्ति कर लेता है. ऐसा ही एक प्रयोग भगवान वक्रतुंड से
सबंधित है. भगवान गणेश पूर्ण रिद्धि और सिद्धि देने में समर्थ है और इनके
सभी रूप अपने आप में महत्वपूर्ण है. प्रस्तुत प्रयोग उनके वक्रतुंड स्वरुप
से सबंधित है और तीव्र है. प्रयोग को श्रद्धा और विश्वास के साथ इस प्रयोग
को सम्प्पन करने पर निश्चित रूप से पूर्ण वैभव की प्राप्ति साधक को भगवान
वक्रतुंड की कृपा से होती ही है.
यह प्रयोग ११ दिन का है. साधक इस प्रयोग को किसी भी शुभदिन से शुरू कर सकता है. साधना समय रात्रि काल में १० बजे के बाद का रहे.
इस
प्रयोग में दिशा उत्तर रहे. साधक के आसान तथा वस्त्र लाल रहे. साधक को
अपने सामने पहले भोजपत्र पर दिए हुए यन्त्र को कुमकुम की स्याही से अनार
अथवा चांदी की सलाका से बनाना चाहिए. यन्त्र बन जाने पर उसका सामान्य पूजन
करे. इसके बाद उसी यन्त्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए ११ बार ध्यान मंत्र
को करे.
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा