जय महाकाल आदेश
माँ धूमावती मंत्र : स्वरूप, उत्पत्ति और साधना ,संकट से मुक्ति:–
–मंत्र –
ॐ काग दत्तो बिकोवा।धड़ित धड़ धडात।ध्यायमान भवानी दैत्यनाम।
देहनाशनाम तोड्यांती।पिशाचा त्रिहाप त्रिहाप हसंती।खड़त खद खदात।
त्रिरोष मम धूमावती ।नौ नाथ चौरासी सिद्धों के बीच बैठकर धूमावती मंत्र स्वाहा:
दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवाँ माना गया है। उनका स्वरूप अत्यंत उग्र, रहस्यमय और वैराग्य से युक्त है। वे उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अभाव,
माँ धूमावती की उत्पत्ति से जुड़ी मान्यताएँ:
माँ धूमावती की उत्पत्ति को लेकर अनेक पौराणिक और लोक मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित
कुछ अन्य कथाएँ उन्हें अलक्ष्मी या दरिद्रता की देवी भी कहती हैं, किंतु तांत्रिक परंपरा में वे केवल अभाव की नहीं, बल्कि संकटों से उबारने वाली महाशक्ति मानी जाती हैं।
नाथ संप्रदाय और माँ धूमावती
नाथ संप्रदाय में माँ धूमावती की विशेष उपासना का उल्लेख मिलता है। प्रसिद्ध योगी और सिद्ध चरपटनाथ को माँ धूमावती का उपासक माना जाता है। उन्होंने माँ धूमावती पर
शाबर धूमावती मंत्र
माँ धूमावती से संबंधित शाबर मंत्र अत्यंत प्राचीन और प्रभावी माने जाते हैं। ये मंत्र सामान्य वैदिक मंत्रों से भिन्न होते हैं और लोकभाषा व सिद्ध परंपरा से जुड़े होते हैं।
शाबर धूमावती साधना किस लिए करनी चाहिए:–
इस साधना का उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना नहीं, बल्कि साधक को नकारात्मक शक्तियों, शत्रुतापूर्ण भावनाओं और बाधाओं से सुरक्षित करना है।
शाबर धूमावती साधना की विधि:·
यह साधना ३१ दिनों तक की जाती है।
साधना विधि इस प्रकार है:
इस मंत्र को नवरात्रि, गुप्त, नवरात्रि या शाकंभरी नवरात्री में किया जा सकता है
प्रतिदिन रात 10 बजे के बाद मंत्र जप करें।मंत्र का 11 माला (रुद्राक्ष की माला से) जप करें।सरसों के तेल का दीपक जलाएँ।माँ को हलवा या कुछ मीठा का भोग अर्पित करें।
जप घर के बाहर या एकांत स्थान पर किया जाए।साधना के नियमसाधक का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।आसन के लिए काला कंबल प्रयोग करें।माला केवल
अगले ३१दिनों तक प्रतिदिन माँ धूमावती की प्रार्थना करें।यदि किसी विशेष परिस्थिति में तुरंत मानसिक शक्ति की आवश्यकता हो, तो मंत्र का 108 बार जप करके माता से संरक्षण
उद्देश्य:–
माँ धूमावती की साधना अत्यंत गंभीर और गूढ़ साधना मानी जाती है। यह केवल श्रद्धा, अनुशासन और संयम के साथ ही फलदायी होती है। यह साधना साधक को बाहरी संघर्षों के





