सिद्ध शूलिनी दुर्गा-कवच मंत्र सर्व संकट निवारण,


जय महाकाल आदेश


–:सिद्ध शूलिनी दुर्गा-कवच मंत्र  सर्व संकट निवारण हेतु :–

–:शूलिनी दुर्गा – परिचय, कथा और मंत्र:–


सिद्ध शूलिनी दुर्गा कवच–शाकंभरी नवरात्रि
शूलिनी दुर्गा कवच 



सृष्टि के आरंभ में, दिव्य माता ने श्री दुर्गा का रूप धारण किया और अपनी इच्छा से छह प्रमुख रूप प्रकट किए। ये थे: अग्नि दुर्गा, महादुर्गा, जल दुर्गा, वन दुर्गा, शबरी दुर्गा और शूलिनी दुर्गा। इनमें से त्रिशूलधारिणी, उग्र और रौद्र रूप वाली दुर्गा को शूलिनी दुर्गा कहा जाता है।

शूलिनीशूलिनी दुर्गा अत्यंत उग्र और शक्तिशाली हैं। उनका स्वरूप भयभीत करने वाला है, परंतु वे अपने भक्तों को तुरंत वरदान और सुरक्षा प्रदान करती हैं। वे शिव के शरभ रूप के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती हैं। पुराणों में दुर्गा अत्यंत उग्र और शक्तिशाली हैं। उनका स्वरूप भयभीत करने वाला है, परंतु वे अपने भक्तों को तुरंत वरदान और सुरक्षा प्रदान करती हैं। वे शिव के शरभ रूप के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती हैं। पुराणों में उनके संबंध का उल्लेख इस प्रकार किया गया है कि काली दुर्गा अथर्ववेद की श्री परत्यंगिर देवी हैं और शूलिनी दुर्गा उनके पंखों के समान हैं, जो शक्ति और गति का प्रतीक हैं।

शूलिनी दुर्गा की कथा


कथा के अनुसार, जब राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों ने पृथ्वी और स्वर्ग में आतंक मचाया, तब माँ दुर्गा ने शूलिनी रूप धारण किया। उन्होंने त्रिशूल, गदा, तलवार, धनुष, बाण और पाश धारण किए और राक्षसों का संहार किया। उनके चारों ओर चार कन्याएँ तलवार और ढाल लिए राक्षस शक्तियों का नाश करती हैं। इस रूप में वे भय दूर करने और वरदान देने वाली शक्ति के रूप में प्रकट हुईं।


उनके वर्णन के अनुसार, उनका शरीर मेघश्याम रंग का, मुकुट पर अर्धचंद्र, और आभूषणों से सुसज्जित है। वे सिंह पर विराजमान हैं और त्रिशूल, गदा, धनुष और तलवार से अपने भक्तों के संकटों का नाश करती हैं।

शूलिनी दुर्गा मंत्र और उसका अर्थ:–सिद्ध शूलिनी दुर्गा-कवच मंत्र सर्व संकट निवारण,

शूलिनी दुर्गा का प्रमुख मंत्र इस प्रकार है:

“श्रीं ह्रीं क्लीं दुं ज्वला ज्वला शूलिनी दुष्टाग्रह हुं फट् स्वाहा”

इस मंत्र का अर्थ और तत्व इस प्रकार हैं:

  • श्रीं – ब्रह्म की मूल शक्ति, सृजनात्मक शक्ति।

  • ह्रीं – देवी की शक्ति, सृजन और पालन की क्षमता।

  • क्लीं – शक्ति और पृथ्वी तत्व, जीवन और कर्मों से जुड़ा।

  • दुं – भय दूर करने और वरदान देने की ऊर्जा।

  • ज्वला ज्वला – अग्नि, अज्ञान नाश और आत्मज्ञान की चेतना।

  • शूलिनी – अहंकार और पापों का नाश करने वाली देवी।

  • दुष्टाग्रह हुं – बुराई और नकारात्मक शक्तियों का नाश।

  • फट – विनाशकारी शक्ति, राक्षसी शक्तियों का संहार।

  • स्वाहा – समर्पण और दिव्य आहुति, जिससे साधक का हृदय देवी में लीन हो जाता है।

  • इस मंत्र की साधना किसी भी नवरात्रि को की जा सकती है, या शाकंभरी नवरात्री को भी उसी देवी दुर्गा के विधि विधान से की जाती है,

इस मंत्र के जाप के दौरान साधक अपने हृदय में देवी का स्वरूप कल्पना करते हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा, तलवार और पाश की प्रतिमूर्ति ध्यान में लाते हैं। चार कन्याओं को राक्षसी शक्तियों का संहार करते हुए कल्पना करना चाहिए। मंत्र के उच्चारण से मानसिक और भौतिक बाधाएँ दूर होती हैं और साधक में साहस, शक्ति और आत्म-साक्षात्कार की भावना जाग्रत होती है।

शूलिनी दुर्गा का ध्यान:–

शूलिनी देवी का ध्यान काले मेघ जैसे रंग में, मुकुट पर अर्धचंद्र, सिंह पर विराजमान और आभूषणों से सज्जित रूप में किया जाता है। ध्यान करते समय उनके त्रिशूल, गदा, धनुष, बाण और तलवार को अपने हृदय में कल्पना करें। यह ध्यान भय, शत्रुता और नकारात्मक शक्तियों के नाश का प्रतीक है। उनके चारों ओर तलवार और ढाल धारण करने वाली कन्याओं की कल्पना से साधक में दृढ़ता और साहस आता है।

शूलिनी दुर्गा की पूजा और मंत्र जाप से सांसरिक भय, नकारात्मक शक्तियाँ और मानसिक तनाव दूर होते हैं। उनका ध्यान आत्मा की रक्षा, साहस, और शक्ति के विकास के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।


कोई भी कवच या  दुर्गा की साधना गुरु निर्देश में रह कर करने से तुरंत अनुभव एवं लाभ कराती है!


गुरुजी –9207283275