गुरु मंत्र तंत्र मंत्र साधना के लिए विशेष। Guru mantra

जय महाकाल-


जय अलख आदेश







गुरु ज्ञान से गुरु मंत्र तक -

प्रथम अवस्था गुरु के साथ एकनिष्ठ रहे , गुरु से झूट न बोले , क्यों की गुरु ही मार्गदर्शक होता हैं , अगर गुरु के प्रति सच्ची  भक्ति और निष्ठां हो तो वो दिन दूर नहीं , के एक दिन एक परिपक्व साधक बन सकते हो ,गुरु से कभी जबान न लड़ाए, कभी गुरु को नाराज न करे , क्यों की गुरु की अवस्था उच्च कोटि की होती हैं , आपके सोच पे भी निर्भर करता हैं के आप गुरु का कितना आदर करते हों , सिद्धि आपको तभी प्राप्त होसकती हैं जब गुरु सेवा में आप लीन हो। क्यों की काफी तपिश के बाद एक गुरु की निर्मिति होती हैं। .

गुरुज्ञान -

1. गुरु से कपट और मित्र से चोरी कभी नहीं करना वरना निर्धन या कोढ़ी होते है

2. कभी किसीका दिल नहीं दुखाना चाहिए वरना वह व्यक्ति जीवन में कभी सुख नहीं पाता |
3. बिना स्नान किये पूजन करना या उसकी तैयारी करने से पूजन का फल नहीं मिलता
4. रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए |
5. कभी किसी से सन्धया की बेला में उधार नहीं लेना चाहिए वरना कभी कर्ज मुक्त नहीं होते
6. मंदिर जी में कभी किसी की बुराई ना करे अन्यथा उसका अपयश होता है |
7. भगवान के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नही चाहिए |
8. पूजन के समय शारीर के अंगो को बार बार स्पर्स ना करे अन्यथा चर्म रोग होता है
9. जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता |
10. तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करें |
11. पूजा करते समय यदि गुरुदेव ,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें |
12. मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है | जोकि सनातन धर्म में किया जाता है
13. कमल को पांच रात ,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है |
14. पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से अभिषेक करने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है |

15. सूर्य गृह शांति हेतु लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है |
16. हाथ में धारण किये पुष्प , तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल भी अपवित्र हो जाते हैं |
17. पिघला हुआ घृत और पतला चन्दन नही चढ़ाना चाहिए |
18. दीपक से दीपक को जलाने से प्राणी दरिद्र और रोगी होता है | दक्षिणाभिमुख दीपक को न रखे | देवी के बाएं और दाहिने दीपक रखें | दीपक से अगरबत्ती जलाना भी दरिद्रता का कारक होता है |
19. द्वादशी , संक्रांति , रविवार , पक्षान्त और संध्याकाळ में पुष्प ना चढ़ाये।
20. प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढाएं |
21. आसन , शयन , दान , भोजन , वस्त्र संग्रह , ,विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गयी है |
22. जो मलिन वस्त्र पहनकर , मूषक आदि के काटे वस्त्र , केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो, जप आदि करता है वह हमेशा दरिद्र रहता है
23. मिट्टी , गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को एकत्रित न करें |
24. मूर्ती स्नान में मूर्ती को अंगूठे से न रगड़े ।
25.प्रातः बेला में कभी घर में लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए ऐसा करने से घर में कभी लछमी नहीं आते
26. जहाँ अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है , उस स्थान पर दुर्भिक्ष , मरण , और भय उत्पन्न होता है |
27. पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि , चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें |
28. कृष्णपक्ष में , रिक्तिका तिथि में , श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें |
29. अपराह्नकाल में , रात्रि में , कृष्ण पक्ष में , द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें |
30. मंडप के नव भाग होते हैं , वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है | अर्थात् टेढ़ा नही होता |
31. जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नही होती वह यजमान का नाश करता है ।



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