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गणपति दुर्लभ मंत्र |कार्य सिद्धि |Remove Nigativity

 

- गणपति दुर्लभ मंत्र -

{ कार्य सिद्धि एवं नकारात्मक का नाश करे }

Remove Nigativity

 - गणपति की पौराणिक कथा -

- जय महाकाल -



नमश्कार दोस्तों आज आपके लिए विघ्नो के नाश के लिए एवं नकारात्मक हटाने की गणेश शाबर मंत्र की साधना प्रस्तुत कर रहा हूँ | उससे पहले गणेशजी के बारे में थोड़ा सज्ञान ले 

प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में गणेश जी को "बुद्धि, विवेक, ज्ञान और विघ्नों के नाशक देवता" के रूप में पूजा जाता है। उनके अनेक पौराणिक प्रसंगों में एक अत्यंत प्रसिद्ध कथा है, जो ज्ञान की महत्ता को दर्शाती है।

एक बार देवताओं के बीच यह निर्णय लिया गया कि ब्रह्मांड की परिक्रमा कर यह साबित किया जाए कि कौन अधिक तेज, बलवान और ज्ञानी है। शिव-पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों — कार्तिकेय और गणेश को यह चुनौती दी कि जो सबसे पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर लौटेगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा।

कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल पड़े। वे विभिन्न लोकों, ग्रहों और तारों की परिक्रमा करने लगे। वहीं गणेश जी ने कुछ देर सोचकर अपने वाहन मूषक पर बैठ माता-पिता शिव और पार्वती की सात बार परिक्रमा की। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो गणेश ने उत्तर दिया — "मेरे माता-पिता ही मेरा संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। उनकी परिक्रमा करना ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के बराबर है।"

शिव और पार्वती इस उत्तर से अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश को विजेता घोषित कर दिया। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि भविष्य में सभी कार्यों के आरंभ में गणेश की पूजा की जाएगी, ताकि कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण हो।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि केवल बाह्य बल या गति ही नहीं, अपितु आंतरिक ज्ञान, श्रद्धा और विवेक भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। गणेश जी ने हमें यह सिखाया कि समस्या का समाधान बाहरी प्रयासों से नहीं, अपितु समझदारी और सही दृष्टिकोण से निकलता है।

इसलिए वे "प्रथम पूज्य" कहलाते हैं, और विद्यार्थियों व बुद्धिजीवियों के आदर्श माने जाते हैं। गणेश चतुर्थी, उनकी पूजा का विशेष पर्व, इसी ज्ञान और बुद्धि की महत्ता का उत्सव है।


-गणपति की साधना कैसे करे इस विषय की विशेष गुप्त दुर्लभ मंत्र साधना -

( गणपति शाबर मंत्र (Ganpati Shabar Mantra )

"ॐ नमो आदिदेव गणपति, नमो नमः।

भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी भाग जावें।

कार्य सिद्धि करावें, विघ्न हरावें।

ॐ गं गणपतये नमः।

श्रीं ह्रीं क्लीं, वक्रतुंडाय हुम् फट् स्वाहा॥"

-विधि -

 श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रतिदिन प्रातः स्नान कर गणेश जी के चित्र या मूर्ति के सामने बैठें।

एक आसन पर बैठकर इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

धूप, दीप, मोदक या कोई मीठा भोग अर्पित करें।

यह मंत्र विशेष रूप से नकारात्मक ऊर्जा हटाने और कार्य सिद्धि के लिए उपयोगी है।

इस मंत्र को नित्य सुबह शाम जपने से दुखो का नाश हो कर जीवन में धीरे धीरे परिवर्तन अपेक्षित हैं अपितु श्रद्धा और भाव महत्व पूर्ण हैं | 

{ गुरु द्वारा लिया हुआ और जपा हुआ मंत्र अति जल्द रूप से कार्य करता हैं }


परामर्श - + 91 9207283275 




श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए श्री गणपति -साधना



श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए  श्री गणपति -साधना












‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश की साधना की एक सरल विधि प्रस्तुत है।


वैदिक-साधनाः


यह साधना ‘श्रीगणेश चतुर्थी’ से प्रारम्भ कर ‘चतुर्दशी’ तक (१० दिन) की जाती है। ‘साधना’ हेतु “ऋद्धि-सिद्धि” को गोद में बैठाए हुए भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।


विधिः पहले ‘भगवान् गणेश’ की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। फिर अपने हाथ में एक नारियल लें और उसकी भी पूजा करें। तब अपनी मनो-कामना या समस्या को स्मरण करते हुए नारियल को भगवान् गणेश के सामने रखें। इसके बाद, निम्न-लिखित स्तोत्र का १०० बार ‘पाठ‘ करें। १० दिनों में स्तोत्र का कुल १००० ‘पाठ‘ होना चाहिए। यथा-


स्वानन्देश गणेशान्, विघ्न-राज विनायक ! ऋद्धि-सिद्धि-पते नाथ, संकटान्मां विमोचय।।१


पूर्ण योग-मय स्वामिन्, संयोगातोग-शान्तिद। ज्येष्ठ-राज गणाधीश, संकटान्मां विमोचय।।२


वैनायकी महा-मायायते ढुंढि गजानन ! लम्बोदर भाल-चन्द्र, संकटान्मां विमोचय।।३


मयूरेश एक-दन्त, भूमि-सवानन्द-दायक। पञ्चमेश वरद-श्रेष्ठ, संकटान्मां विमोचय।।४


संकट-हर विघ्नेश, शमी-मन्दार-सेवित ! दूर्वापराध-शमन, संकटान्मां विमोचय।।५


उक्त स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व अच्छा होगा, यदि निम्न-लिखित मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ किया जाए।

यथा- “ॐ श्री वर-वरद-मूर्त्तये वीर-विघ्नेशाय नमः ॐ”


गुरुआशीर्वाद लेकर साधना शुरू करे अन्यथा  लाभ नहीं होगा

साधना-काल में (१० दिन) साधना करने के बाद दिन भर उक्त मन्त्र का मन-ही-मन स्मरण करते रहें। ११ वें दिन, पहले दिन जो नारियल रखा था, उसे पधारे (फोड़कर) ‘प्रसाद’ स्वरुप अपने परिवार में बाँटे। ‘प्रसाद’ किसी दूसरे को न दें।


इस साधना से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी समस्याएँ, बाधाएँ दूर होती है।
जब आपका कार्य संपन्न हो तो हमें ..अनुभव जरूर शेयर करियेगा ...ये प्रयोग हमारा अनुभूत है।।




संपर्क - 09207 283 275




 

।। सर्व कार्य सिद्धि .. श्रीउच्छिष्ट-गणेश कवच।।



।। सर्व कार्य सिद्धि .. श्रीउच्छिष्ट-गणेश कवच।।






ऋषिर्मे गणकः पातु, शिरसि च निरन्तरम्। त्राहि मां देवी गायत्री, छन्दः ऋषिः सदा मुखे।।१


हृदये पातु मां नित्यमुच्छिष्ट-गण-देवता। गुह्ये रक्षतु तद्-बीजं, स्वाहा शक्तिश्च पादयो।।२


काम-कीलकं सर्वांगे, विनियोगश्च सर्वदा। पार्श्व-द्वये सदा पातु, स्व-शक्तिं गण-नायकः।।३


शिखायां पातु तद्-बीजं, भ्रू-मध्ये तार-बीजकं। हस्ति-वक्त्रश्च शिरसि, लम्बोदरो ललाटके।।४


उच्छिष्टो नेत्रयोः पातु, कर्णी पातु महात्मने। पाशांकुश-महा-बीजं, नासिकायां च रक्षतु।।५


भूतीश्वरः परः पातु, आस्यं जिह्वा स्वयंवपु। तद्-बीजं पातु मां नित्यं, ग्रीवायां कण्ठ-दर्शके।।६


गं बीजं च तथा रक्षेत्, तथा त्वग्रे च पृष्ठके। सर्व-कामश्च हृत्पातु, पातु मां च कर-द्वये।।७


उच्छिष्टाय च हृदये, वह्नि-बीजं तथोदरे। माया-बीजं तथा कट्यां, द्वावूरु सिद्धि-दायकः।।८


जंघायां गण-नाथश्च, पादौ पातु विनायकः। शिरसः पाद-पर्यन्तमुच्छिष्ट-गण-नायकः।।९


आपाद्-मस्तकान्तं च, उमा-पुत्रश्च पातु माम्। दिशोष्टौ च तथाऽऽकाशे, पाताले विदिशाष्टके।।१०


अहर्निशं च मां पातु, मद-चञ्चल-लोचनः। जलेऽनले च संग्रामे, दुष्ट-कारा-गृहे वने।।११


राज-द्वारे घोर-पथे, पातु मां गज-नायकः। इदं तु कवचं गुह्यं, मम वक्त्रात् विनिर्गतम्।।१२


त्रैलोक्ये सततं पातु, द्वि-भुजश्च चतुर्भुजः। बाह्यमभ्यन्तरं पातु, सिद्धि-बुद्धि-विनायकः।।१३


सर्व-सिद्धि-प्रदं देवि ! कवचमृद्धि-सिद्धिदम्। एकान्ते प्रजपेन्मन्त्रं, कवचं युक्ति-संयुतम्।।१४


इदं रहस्यं कवचमुच्छिष्ट-गण-नायकम्। सर्व-वर्मसु देवेशि ! इदं कवच-नायकम्।।१५


एतत् कवच-माहात्म्यं, वर्णितु नैव शक्यते। धर्मार्थ-काम-मोक्षादि, नाना-फल-प्रदं नृणाम्।।१६


शिव-पुत्रः सदा पातु, पातु मां च सुरार्चितः। गजाननः सदा पातु, गण-राजश्च पातु माम्।।१७


सदा शक्ति-रतः पातु, पातु मां काम-विह्वलः। सर्वाभरण-भूषाढ्या, पातु मां सिन्दुरार्चितः।।१८


पञ्च-मोद-करः पातु, पातु मां पार्वती-सुतः। पाशांकुश-धरः पातु, पातु मां च धनेश्वरः।।१९


गदा-धरः सदा पातु, पातु मां काम-मोहितः। नग्न-नारी-रतः पातु, पातु मां च गणेश्वर।।२०


अक्षय्य-वरदः पातु, शक्ति-युक्तः सदाऽवतु। भाल-चन्द्रं सदा पातु, नाना-रत्न-विभूषितः।।२१


उच्छिष्ट-गण-नाथश्च, मद-घूर्णित-लोचनः। नारी-योनि-रसास्वादः, पातु मां गज-कर्णकः।।२२


प्रसन्न-वदनः पातु, पातु मां भग-वल्लभः। जटा-धरः सदा पातु, पातु मां च किरीट-धृक्।।२३


पद्मासन-स्थितः पातु, रक्त-वर्णश्च पातु माम्। नग्न-साम-पदोन्मतः, पातु मां गण-दैचतः।।२४


वामांगे सुन्दरी-युक्तः, पातु मां मन्मथ-प्रभुः। क्षेत्र-प्रवसितः पातु, पातु मां श्रुति-पाठकः।।२५


भूषणाढ्यस्तु मां पातु, नाना-भोग-समन्वितः। स्मिताननः सदा पातु, श्रीगणेश-कुलान्वितः।।२६


श्री-रक्त-चन्दन-मयः, सुलक्षण गणेशः। श्वेतार्क-गणनाथश्च, हरिद्रा-गण-नायकः।।२७


परिभद्र-गणेशश्च, पातु सप्त-गणेश्वरः। प्रवालक गणाध्यक्षो, गज-दन्तो गणेश्वरः।।२८


हर-बीज-गणेशश्च, भद्राक्ष-गण-नायकः। दिव्यौषधि-समुद्भूतो, गणेशश्चिन्तित-प्रदः।।२९


लवणस्य गणाध्यक्षो, मृत्तिका-गण-नायकः। तण्डुलाक्ष-गणाध्यक्षो, गो-मयस्य गणेश्वरः।।३०


स्फटिकाक्ष-गणाध्यक्षो, रुद्राक्ष-गण-दैवतः। नव-रत्न-गणेशश्च, आदि-देवो गणेश्वरः।।३१


पञ्चाननश्चतुर्वक्त्रो, षडानन-गणेश्वरः। मयूर-वाहनः पातु, पातु मां मूषकासनः।।३२


पातु मां देव-देवेशः, पातु माम् ऋषि-पूजितः। पातु मां सर्वदा देवो, देव-दानव-पूजितः।।३३


त्रैलोक्य-पूजितो देवः, पातु मां च विभुः प्रभुः। रंगस्थं च सदा पातु, सागरस्थं सदाऽवतु।।३४


भूमिस्थं च सदा पातु, पातालस्थं च पातु माम्। अन्तरिक्षे सदा पातु, आकाशस्थं सदाऽवतु।।३५


चतुष्पथे सदा पातु, त्रि-पथस्थं च पातु माम्। बिल्वस्थं च वनस्थं च, पातु मां सर्वतः स्थितम्।।३६


राज-द्वार-स्थितं पातु, पातु मां शीघ्र-सिद्धिदः। भवानी-पूजितः पातु, ब्रह्मा-विष्णु-शिवार्चितः।।३७



।।फल-श्रुति।।



इदं तु कवचं देवि ! पठनात् सर्व-सिद्धिदम्। उच्छिष्ट-गणनाथस्य, स-मन्त्रं कवचं परम्।।१


स्मरणाद् भूपतित्वं च, लभते सांगतां ध्रुवम्। वाचः-सिद्धि-करं शीघ्रं, पर-सैन्य-विदारणम्।।२


सर्व-सौभाग्यदं शीघ्रं, दारिद्रयार्णव-घातकम्। सु-दार-सु-प्रजा-सौख्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम्।।३

अपने गुरु का आशीर्वाद ले कर इस साधना की शुरुवात करे





प्रतिदिन १० बार उक्त कवच का पाठ करे। यह साधना सर्व-सिद्धि-दायक है। इससे समस्त विघ्नों का नाश होता है। आर्थिक सफलता प्राप्त करने के लिए और जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए इससे बढकर कोई कवच नहीं है। मात्र स्मरण-मात्र से बिना मन्त्र, बिना

प, बिना हवन के इस साधना से लाभ होता है।



संपर्क - 09207283275





श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु

श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु





श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु


(१) ‘संकष्टी-चतुर्थी’ को उपासना प्रारम्भ करे। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रीगणेश जी के सामने बैठे। तथा-शक्ति ‘पूजन’ करे। ‘पूजा’ में रक्त अक्षत्, रक्त पुष्प, शमी-पत्र तथा दूर्वा चढ़ाए। फिर, हृदय में ‘श्रीगणेश’ का ‘ध्यान’ करे-


“श्वेताभं शशि-शेखरं त्रिनयनं श्वेताम्बरालंकृतं।


श्रीवाणी-सहितं रमेश-वरदं पीयूष-मूर्ति प्रभुम्।।


पीयूषं निज-बाहुभिश्चदधतं पाशांकुशौ मुद्-गरं।


नागास्यं सततं सुरैश्च मुनिभिः सम्पूजितं संस्मरे।।”


‘ध्यान’ कर ‘प्रणाम’ करे। इस प्रकार २१ ‘संकष्ट-चतुर्थी करे। २१ वीं ‘संकष्ट-चतुर्थी’ के दूसरे दिन अर्थात् पञ्चमी को ‘उपासना’ की पूर्ति करे और ‘चन्द्रोदय’ के समय श्रीगणेशजी को ३, चतुर्थी देवता को ३ तथा चन्द्र-भगवान् को ७ बार ‘अर्घ्य’ प्रदान करे। बाद में, उक्त ध्यान-मन्त्र नित्य पूजा में पढ़ पूजा करता रहे।


चन्द्रमा को अर्घ्य देने का मन्त्रः-


“ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते।


नमस्ते रोहिणीकान्त गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।”


भगवान् गणेश को अर्घ्य देने का मन्त्रः-


“गौरी-सुत नमस्तेऽस्तु सततं मोदकप्रिय।


सर्वसंकटनाशाय गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।।”


चतुर्थी देवी को अर्घ्य देने का मन्त्रः-


“तिथीनामुत्तमे देवी गणेशप्रियवल्लभे।


गृहाणार्घ्यं मया दत्तं सर्वसिद्धिप्रदायिके।।”


(२) “ॐ संविघ्नं मां गणाध्यक्ष, निर्विघ्नं कुरु सर्वदा।


दासोऽहं ते विमुक्तस्य, संरक्ष विरहात् प्रभो।।”


उक्त मन्त्र का नित्य ६ माला (१०८ मनकों की) जप करे। ऐसा २१ दिन तक करे।


किसी भी शुभ दिन को भगवान् गणेश का पूजन कर उक्त ‘उपासना’ प्रारम्भ करे। विवाह आदि कार्य हो जाएँगे।


(३) “नमः श्री गणेशाय”


उक्त मन्त्र का नित्य ६००० जप २१ दिन तक करे। अच्छे अनुभव होंगे तथा विवाह आदि कार्य शीघ्र पूरे होंगे। जप के पूर्व गन्ध-पुष्प आदि से भगवान् गणेश का पूजन करे। किसी भी दिन से यह उपासना प्रारम्भ की जा सकती है।

गुरु आशीर्वाद ले कर ही  इस साधना की शुरुवात  करे अन्यथा  लाभ  नहीं होगा






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