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महादेवी बभूत मंत्र साबर - Mahadevi Babhut Mantra

जय महाकाल -


 पहाड़ी  महादेवी बभूत मंत्र-







नाथपंथीय  मंत्र  देवी कृपा -


ॐ नमो आदेसा , माता पिता गुरु देवता को आदेसा ,
बभूत माता , बभूत पिता को नमस्कारा,
बभूत तीन लोक निर्वाणी , सर्व दुःख निर्वाणी ,
कीने आणी ,कीने छाणी, अनंत सिद्धों का मस्तक चढ़ाणी
बभूत माता , बभूत पिता , रक्षा करे गुरु गोरख राऊ ,
चौकी करे राजपाल,
आरोग्य रखे बेताल, चौकी नरसिंग तेरी आण ,
नारी के पुत्र नारसिंग वीर तोही सुमरो ,
आधी रात के बीच आयो उदागिरी कंठो से लाल घोड़ा ,
लाल पलाण , लाल सिद्धि, लाल मेखला, फोटकी धुंवां
टिमरू का सोंटा , नेपाली पत्र , भसमो कंकण
नाद बुद्ध सेली को मुरा बाघवीर छाला
फोर मंत्र इश्वरो वाचा:

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मित्रों यह मंत्र कुमाऊं भाषा में हैं , इस  लिए  मंत्र को जैसा हैं वैसा ही पढ़े 
इसमें कोई फेर बदल करने का प्रयास ना करे अन्यथा लाभ नहीं होगा मित्रों 
किसी भी मंत्र को सिद्ध  करने के लिए अपने इष्ट गुरु का  आशीर्वाद होना आवश्यक हैं 
अन्यथा विपत्ति आ  सकती हैं 





गुर अनुमति ले कर इस मंत्र का ध्यान करे -- मंत्र उग्र प्रति का होने के

कारन झटके लगने के आसार हो सकते हैं इस लिए कृपया किसी भी मंत्र को 

सामान्य न समझे 
और अपने जिम्मेदारी पर साधना करे 




संपर्क   +91 9207 283 275 




अवधूत निरंजन नवनाथ जाप मंत्र

जय महाकाल 



अवधूत निरंजन  नवनाथ जाप मंत्र 








मित्रों नाथ सम्प्रदाय के जनक योगी मछिन्द्रनाथ और उनके गुरु श्रीदत्तनाथजी , और इन सब के गुरु योगी औघड्नाथजी  इनके आर्शीवाद से नाथों का अवतरण धरती पर हुआ
.. महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग 11वीं शताब्दी अनुमानित।।  के एक विशिष्ट महापुरुष थे... . । गोरखनाथजी  के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे.. । इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर जगभर  इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी,अथवा  अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।.. 


ॐ अवधूनाथ गोरष आवे, सिद्ध बाल गुदाई |
घोड़ा चोली आवे, आवे कन्थड़ वरदाई || १ ||
सिध कणेरी पाव आवे, आवे औलिया जालंधर |
अजै पाल गुरुदेव आवे, आवे जोगेसर मछंदर || २ ||
धूँधलीमल आवे, आवे गोपिचन्द निजततगहणा |
नौनाथ आवो सिधां सहत महाराजै !

जय अलख - आदेश आदेश आदेश ..!

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श्रीनव-नाथ साम्प्रदायिक पूजा-विधान

-जय महाकाल -


-नवनाथ साधना -





श्रीनव-नाथ साम्प्रदायिक पूजा-विधान


यह पूजा किसी भी गुरुवार या पूर्णिमा को की जा सकती है। इसके लिए ‘वरुथिनी एकादशी, का दिन अत्यन्त शुभ है। इसी दिन भगवान् गोरखनाथ का जन्म हुआ था। पहले प्रातः शीघ्र उठकर स्नान करें। फिर बरगद, उदुम्बर व पीपल वृक्षों की उत्तर दिशा की १-१ डाली (८-९ इंच लम्बी) ले आएँ। हाथ से ही तोड़ें, शस्त्र-चाकू आदि न लगाएँ। फिर घर में लाकर उनके ६ या ८ इंच लम्बाई के टुकड़े चाकू से करें। डालियों के टुकड़ों को एक ताँबे के पात्र में रखकर दूध व पानी से स्नान कराएँ। नय वस्त्र से पोंछकर इन्हें वट-वृक्ष के ३ पर्णों पर अलग-अलग रखें। तब उन पर भस्म डालें। भस्म डालने के बाद एक डाली को दाहिने हाथ में लेकर – “ॐ चैतन्य मच्छिन्द्रनाथाय नमः” - इस मन्त्र का २१ बार जप करें तथा डाली को पर्ण पर रखें। इसी प्रकार दूसरी डाली लेकर “ॐ चैतन्य गोरक्षनाथाय नमः” मन्त्र का २१ बार जप करें। तीसरी के लिए “ॐ चैतन्य कानिफनाथाय नमः” मन्त्र का २१ बार जप करें। जप कतरते समय यह दृढ़ भावना रखें कि इन डालियों में तीनों नाथों का सञ्चार (निवास) हो गया है। इस प्रक्रिया को ‘आवाहन’ कहते हैं।


अब सभी के समक्ष गन्ध, अष्टगंध, इत्र, फूल, दक्षिणा आदि चढ़ाएँ। प्रत्येक डाली पर दाहिना हाथ रखकर ‘तीन-प्रणव-युक्य गायत्री मन्त्र’ का ११-११ बार जप करें। यथा- “ॐ भूर्भुवः स्वः। ॐ तत्सवितुर्वरेणयं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।।”
धूप, गूगल, अगर-बत्ती, शुद्ध घी का दीप आदि भक्तिभाव से अर्पित करें। नैवेद्य में मूँग-दाल की खिचड़ी, उड़द के बड़े आदि चढ़ाएँ। प्रसाद को घर में ही बाँटें। अन्य व्यक्तियों को प्रसाद न दें।
सांयकाल पूजा विसर्जित कर उक्त तीनों डालियाँ एक गेरुए (भगवा) रेशमी वस्त्र में (थैली बनाकर) रखें। थैली का मुँह सिलाई कर बन्द कर दें तथा किसी पवित्र स्थान पर रखें। घर में नित्य उक्त तीनों नाथों का ७ बार नाम-मन्त्र-जप करें। संकल्प रखें कि ‘अब तीनों नाथ घर में है, हमारा सब कुछ वे ही चलाएँगे। हमारा मंगल ही होगा।”




प्रत्येक गुरुवार को उपवास करें या एक भुक्त रहें तथा धुप-दीप दिखाएँ। पूर्णिमा के दिन गो-ग्रास दें। कुत्ते को रोटी दें।
रात को सोते समय उक्त थैली यदि सिरहाने रखकर सोएँ, तो दुःस्वप्न नहीं होंगे। अभिचार-पीड़ित व्यक्ति को इससे झाड़ने से सभी अभिचार नष्ट होते हैं। घर से बाहर जाते समय नाथों को प्रणाम करके व प्रार्थना करके जाएँ, तो सभी कार्य सु-सम्पन्न होंगे। व्यवसाय में लाभ न होता हो, तो यह पूजा-विधान करें, लाभ होने लगेगा।
विशेषः- यदि अपने कुल-देवता या इष्ट की कृपा चाहिए, तो भी उक्त विधान कर सकते हैं। केवल नाथों के स्थान पर अपने इष्ट का जप करें।





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नवनाथ स्मरण


जय महाकाल ।। जय अलख आदेश 


 नवनाथ स्मरण







 

 नवनाथ-स्तुति
आदि-नाथ ओ स्वरुप, उदय-नाथ उमा-महि-रुप। जल-रुपी ब्रह्मा सत-नाथ, रवि-रुप विष्णु सन्तोष-नाथ। हस्ती-रुप गनेश भतीजै, ताकु कन्थड-नाथ कही जै। माया-रुपी मछिन्दर-नाथ, चन्द-रुप चौरङ्गी-नाथ। शेष-रुप अचम्भे-नाथ, वायु-रुपी गुरु गोरख-नाथ। घट-घट-व्यापक घट का राव, अमी महा-रस स्त्रवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश। आदि-नाथ आदि-पुरुष, शिव गोरख आदेश। ॐ श्री नव-नाथाय नमः।।”

नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”


“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”

विशेषः-’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।







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“नौनाथ कृपादृष्टि साधना मंत्र



- जय महाकाल ।। जय अलख आदेश - 




नौनाथ कृपादृष्टि एवं सुखी संसारिक साधना मंत्र




 अति  प्राचीन काल से चले आ रहे नवनाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथजी  ने  इस सम्प्रदाय की नीव पृथ्वी पर रखी  ..  गोरखनाथजी  ने इस सम्प्रदाय के विस्तार और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण कर उसका प्रसार भी किया..। गुरु और शिष्य परंपरा  को तिब्बती में नाथ सिद्धों को महासिद्धों के रूप में जाना जाता है।
परिव्राजक का अर्थ होता है घुमक्कड़ रमत करना  । नाथ योगी  संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं।.. हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध भी  कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे सैली कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' भी  कहते हैं।
इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं.. । नाथ योगी  अलख ( अलक्ष ) शब्द से शिव का ध्यान करते हैं.. । वे दूसरे का  परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है... । 


नवनाथ मंत्र -

ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।


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दारिद्र्य नाशनं गणपति स्तोत्र नवनाथ प्रथम ज्ञान सिद्धि



- जय महाकाल -


- दारिद्र्य नाशनं गणपति स्तोत्र नवनाथ प्रथम ज्ञान सिद्धि -







- नवनाथ प्रथम ज्ञान सिद्धि -



मंत्र विशेष नवनाथ  घ्यान साधना और प्राप्ति




मेरे साधक मित्रो यह मैं आपको खास  नाथ पंथ के साधक भक्तोके लिए ये ज्ञात करवाना चाहता हूँ की मंत्र और तंत्रों के महान बादशाह और कोई नहीं सिवा महान योगी गुरु नवनाथ सिद्ध ही थे ..इसमें कोई दो राय नहीं है
हमने कई वर्षो महीने और दिन ऐसे अलग अलग पन्थो के महान विद्वान् और तंत्र के उद्भभट्ट विद्वानों संग रहने के बाद में हमारा  जो भी ज्ञान का भंडार , अर्थात तंत्र मंत्र और विशेष शक्तियो के गुप्त ज्ञान आप के सामने हमारे महान गुरु जनो के कृपा आशीर्वाद से आप के समक्ष रखने का प्रयास किया हैं। .......  , मेरे साधक मित्रो आप  को मंत्र और तंत्र सिद्धि के ज्ञान के लिए आप को गुरु सानिध्य लेना ही अनिवार्य  हैं अन्यथा आप मंत्रो के सिद्धि के चरमसीमा तक नहीं पहुँच सकते ये सत्य है ....
और किसी भी नाथ भक्त जनो के लिए हमारा मार्गदर्शनउपलब्ध है ..जय बम्म भोले आदेश गुरूजी को ..!

वरदविनायक दारिद्र्य नाशनं गणपति स्तोत्र

ॐनमो विघ्नराजाय सर्वसौख्य प्रदायिने
दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम
अर्धचंद्रधरम देवं विघ्नव्यूहविनाशनम
 
ॐ र्हां र्र्हिं र्हुं र्हे र्र्है र्हे हेरम्बाय नमो नमः
सर्वसिद्धिप्रदो s सि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव
चिन्तितार्थ प्रदस्त्यम हि सततं मोदकप्रिय :
सिन्दुरारुण वस्त्रैच्य पूजितो वरदायक :
इदं गणपतितोत्रं य: पठेदभक्तिमान नर :
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मिर्न मुन्चती:


विधि -

पोर्णिमेला रात्रि स्नान करूँन धूत वस्र नेसून स्थिर लग्नावर
एक चौरंगावर नवे कोरे लाल वस्र पसरून त्यावर तम्ब्याच्या
ताम्हनात गणपतीची मूर्ति किवं तस्बीर ठेउन तिची षोडशोपचाराणे
पूजा करावी नंतर साजुक तुपाचे निरंजन लाउन उपरोक्त स्तोत्र पठन
करावे मग गणपतीला नमस्कार करून मिष्ठान्नाचा नैवेद्य दाखवावा
रोज दिवा लावताना स्तोत्ररुपी मंत्राचा एक पाठ अवश्य करावा .
अवघ्या सहा महिन्यात आपल्या घरी लक्ष्मीचा वावर सुरु होइल यात
तील मात्र शंका नहीं ..



                                                                     || जय  महाकाल  ||




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