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शाकम्भरी देवी Shakambhari Devi

 

शाकम्भरी देवी  Shakambhari Devi ||

- शाकम्भरी देवी -

 - Shakambhari Devi -

 


शाकम्भरी देवी हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें विशेष रूप से शक्ति पूजा में सम्मानित किया जाता है। शाकम्भरी देवी का नाम संस्कृत के "शाक"  सब्ज़ी, वनस्पति और "अंभरी" (  वह जो ग्रहण करती हैं ) शब्दों से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "वह देवी जो शाक ( वनस्पति ) को ग्रहण करती हैं"। उन्हें प्रकृति की देवी के रूप में पूजा जाता है, जो पृथ्वी पर जीवन के संरक्षण और उत्थान के लिए जिम्मेदार हैं। वे विशेष रूप से भूख से पीड़ित लोगों को आहार प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं और उनकी पूजा जीवन के समृद्धि और सुख-शांति के लिए की जाती है।


- शाकम्भरी देवी की उत्पत्ति और कथा -

शाकम्भरी देवी के बारे में एक प्रसिद्ध पुराणिक कथा है, जो देवी भागवतम और अन्य ग्रंथों में वर्णित है। इस कथा के अनुसार, एक समय देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध हुआ, जिससे पृथ्वी पर भारी अकाल पड़ गया। जब पृथ्वी पर बुरी स्थिति उत्पन्न हुई और सभी जीव-जंतु भूख से पीड़ित हो गए, तब भगवान शिव ने देवी शाकम्भरी को प्रकट किया। शाकम्भरी देवी ने अपनी शक्ति से धरती पर वनस्पतियाँ और खाद्य सामग्री उत्पन्न की, ताकि जीवों को आहार मिल सके और भूख का नाश हो सके।

उनकी यह कृपा और उनकी शक्ति इतनी बड़ी थी कि वे पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी की भलाई के लिए समर्पित हो गईं। इसके बाद से, शाकम्भरी देवी को अन्न, पोषण और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनके साथ जुड़ी एक और प्रसिद्ध कथा यह भी है कि वे हिमाचल प्रदेश के शाकम्भरी पर्वत पर निवास करती हैं, और यह स्थान उनके भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है।

- शाकम्भरी देवी का रूप -

शाकम्भरी देवी का रूप अत्यंत रमणीय और दिव्य है। उनका स्वरूप साधारणतः एक महिला के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनके शरीर पर वनस्पतियाँ और फल-पत्तियाँ लिपटी होती हैं। उनके हाथों में विभिन्न प्रकार के फल और शाक होते हैं, जो जीवन के पोषण और आहार का प्रतीक हैं। उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कलश होता है, जिसमें शुद्ध जल या आहार सामग्री का प्रतीक होता है। उनके मस्तक पर चंद्रमा का आकार और गहनों से सजा हुआ सिर मिलता है, जो उनके दिव्यता और सामर्थ्य को दर्शाता है।

- शाकम्भरी देवी की पूजा और महत्व -

शाकम्भरी देवी की पूजा विशेष रूप से उन स्थानों पर की जाती है, जहाँ अकाल, खाद्य संकट या किसी प्रकार की कठिनाई आई हो। उन्हें अन्न, जल, और वनस्पतियों के रूप में पूजा अर्पित की जाती है, क्योंकि वे शाकाहारी आहार की देवी हैं और इनका आशीर्वाद समृद्धि और समर्पण की ओर मार्गदर्शन करता है।

शाकम्भरी देवी के मंदिर हिमाचल प्रदेश के शाकम्भरी पर्वत पर स्थित हैं, जहां हर साल बड़ी धूमधाम से उनकी पूजा होती है। इस अवसर पर लोग विशेष रूप से उपवासी रहते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत और अनुष्ठान करते हैं। इसके अलावा, देवी के मंत्रों का जाप भी बहुत फलोंदायक माना जाता है, जो जीवन में शांति, समृद्धि और आन्नद लाता है।

- शाकम्भरी देवी का सम्बन्ध अन्य देवियों से -

शाकम्भरी देवी का संबंध अन्य प्रमुख देवी-देवताओं से भी जोड़ा जाता है। उदाहरण स्वरूप, वे दुर्गा देवी की एक अवतार मानी जाती हैं, क्योंकि वे भी जीवन के संरक्षण और बुराई के नाश के लिए ही प्रकट हुई थीं। इसके अलावा, शाकम्भरी देवी का संबंध प्रकृति की शक्ति से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे पृथ्वी को हर प्रकार के संकट से बचाती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

- शाकम्भरी देवी के महत्व का समग्र दृष्टिकोण --

शाकम्भरी देवी का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है। उनका अस्तित्व पृथ्वी के संसाधनों की रक्षा, भूखमरी के निवारण, और जीवन के आधारभूत तत्वों की सुरक्षा में दिखाई देता है। वे उन सभी प्राणियों के लिए आश्रय देने वाली हैं, जिन्हें जीवन के लिए पोषण की आवश्यकता होती है। उनके आशीर्वाद से कृषि, वन्यजीव, और पर्यावरण की रक्षा होती है, और जीवन का संतुलन बना रहता है।

शाकम्भरी देवी का पूजा और महिमा जीवन के विकास और प्रगति के प्रतीक हैं। उनकी कृपा से हर प्राणी को जीवन के हर पहलू में समृद्धि मिलती है, चाहे वह मानसिक हो या भौतिक। उनके बारे में प्रचलित कथाएँ और उनके पूजन से यह संदेश मिलता है कि हम सभी को प्रकृति के प्रति आभार और समर्पण का भाव रखना चाहिए, ताकि जीवन में खुशहाली और संतुलन बना रहे।




- श्री शाकम्भरी  कवचम् -

शक्र उवाच -

शाकम्भर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १॥

स्कन्द उवाच -

शक्र शाकम्भरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् ।
कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २॥

अस्य श्री शाकम्भरी कवचस्य स्कन्द ऋषिः ।
शाकम्भरी देवता । अनुष्टुप्छन्दः ।
चतुर्विधपुरुषार्थसिद्‍ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यानम् -

शूलं खड्गं च डमरुं दधानामभयप्रदम् ।
सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकम्भरीमहम् ॥ ३॥

अथ कवचम् -
शाकम्भरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदन्तिका ।
कर्णो रमे नन्दजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४॥

ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीश्च मे मुखम् ।
महासरस्वती जिह्वां चामुण्डाऽवतु मे रदाम् ॥ ५॥

कालकण्ठसती कण्ठं भद्रकाली करद्वयम् ।
हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६॥

नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्वे ममावतु ।
पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७॥

ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदम्बिका ।
जङ्घे मे चण्डिकां पातु पादौ मे पातु शाम्भवी ॥ ८॥

शिरःप्रभृति पादान्तं पातु मां सर्वमङ्गला ।
रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसन्ध्यं पातु मां शिवा ॥ ९॥

गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी ।
राजद्वारे च कान्तारे खड्गिनी पातु मां पथि ॥ १०॥

सङ्ग्रामे सङ्कटे वादे नद्युत्तारे महावने ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्वरी ॥ ११॥

गृहं पातु कुटुम्बं मे पशुक्षेत्रधनादिकम् ।
योगक्षैमं च सततं पातु मे बनशङ्करी ॥ १२॥

इतीदं कवचं पुण्यं शाकम्भर्याः प्रकीर्तितम् ।
यस्त्रिसन्ध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते ॥ १३॥

तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं सन्ततिं सम्पदं च शम् ।
शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४॥

शाकिनीडाकिनीभूत बालग्रहमहाग्रहाः ।
नश्यन्ति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम् ॥ १५॥

सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम् ।
विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकम्भर्याः प्रसादतः ॥ १६॥

आवर्तनसहस्रेण कवचस्यास्य वासव ।
यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७॥

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे स्कन्दप्रोक्तं शाकम्भरी कवचं सम्पूर्णम् ॥



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Mata Meldi Sadhna माता मेलडी साधना

 

- जय महाकाल -


 माता मेलडी साधना - Meldi ki siddhi


meladi mata

जय महाकाल मित्रो , माता मेलडी की ज्यादा तर पूजा गुजरात प्रान्त में की जाती हैं , माँ की उत्पत्ति कामरूप कामख्या में कार्य रत होते हुए वहां असुरों का नाश करने के लिए माँ को भेजा गया था |  प्राचीन कथा के अनुसार देवताओं पर अमरूवा नामक एक दैत्य द्वारा अत्याचार किया जा रहा था वोह परास्त नहीं हो पा रहा था अमरूवा दैत्य के अत्याचार से पिडित  देवताओं ने माँ भगवती,चामुंडा दुर्ग ,काली ,महाविद्याओं का आवाहन किया देवियों ने दैत्य के साथ घनघोर युद्ध करके उसको परेशान कर दिया, कई वर्षों तक युद्ध चला दैत्य स्वयं को पराजित होता  देख भागने लगा भागते भागते उसे एक मृत गौ का पिंजरा पड़ा हुआ दिखा उसमे छुप गया मृत गाय अशुद्ध होने के कारन उसे छुपने का मौका मिला। अब उस अशुद्ध पिंजरे में देवताओं को घुस कर उसे निकालना कुछ ठीक नहीं लगा , तब देवियां चिंतिति हो कर हाथ मलने लगी मलते हुए  जो मेल  हाथ से निकला तब देवियों ने आवाहन किया ,तब उस मेल से महाआदिशक्ति प्रगट हुई तब  वो देख दैत्य भागने लगा और एक सरोवर में किसी जिव के अंदर छुप गया माँ ने उस सरोवर में घुस कर दैत्य का संघार कर दिया  देवी कन्या के रूप में प्रगट हुई  जब देवी ने उत्पत्ति का कारन पूछा तब उनके शक्तयों का परिक्षण करने के लिए उन्हें महाशक्तियों ने कामरूप कामाख्या भेज दिया ,जहाँ पर अघोरी जादू टोना , काली मैली विद्या का प्रयोग होता हैं , अगर वोह देवी वहां से जीत कर लौटती हैं तब उनके कार्यों के अनुसार उनकी शक्तयों की परीक्षा होगी ऐसा देवताओं ने कहाँ , कामाख्या में मूल द्वार पर मसान का पहरा था माता ने उसको खाक कर दिया ,जब माता ने देखा यहाँ तो सब मैली कुचैली विद्या बसी हुई हैं तब सारी मैली विद्या को लपेट कर उसका तरल बना कर बोतल भर के बहार ले आयी तब देवताओं ने माता के जय घोष लगाए |  माता ने मैली विद्याओं का नाश कर उन्हें बंधन बना कर विजय पाया तब माता का नाम हाथ के रगड़ें मेल से उत्पन हुआ इसी लिए माता का नाम मेलडी कहा गया , इस तरह माता की उत्पत्ति हुई ,  मेलडी माता का  कोई विशेष सिद्ध पीठ नहीं हैं , जहाँ अधिक प्रमाण में माता की पूजा गुजरात , प्रान्त , कामाख्या , उज्जैन में की जाती हैं | जो तंत्र में प्रचलित हैं | 


- मेलडी माता मंत्र -

१ )  ॐ क्लीं मेलडिये नम 

  २ )  मंत्र -

 मैय्या मेलडी हाजिर होना चंडी भंगी का काम करना 

  लक्ष्मी रूठी , माया टूटी ,बधी बर्बादी  तू संभालना 

गोरख ने किया मच्छन्दर पाया तब मेलडी ने बताया 

किसी मंगलवार या रविवार को प्रातः काल उठ कर एक बाजोट पर लाल कपडा बिछा कर चावल की ढेरी  पर माता की प्रतिमा या फोटो रख दे तेल का दीपक जलाएं, धुप गूगर, अगरबत्ती धरे कुछ मकई के दाने और कुछ मीठा भोग में रखे आसन पर बैठ कर नित्य माता का दिया हुआ मंत्र यथा शक्ति जपते रहे  इससे मा मेलडी की कृपा होगी और कार्य बनने लगेंगे, माँ की साधना तामसिक या सात्विक भाव से कर सकते हैं साधना शुरू करने से पहले काले बकरे को गुड़ चना खिला सकते हैं कम से कम २१ दिन तक लगातार साधना करने से माँ मेलड़ी की क्रिपा प्राप्त होती हैं धन सम्बंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं, अगर किसी साधक ने गुरु से दीक्षा ले लिया हो तो जल्द सफलता मिलती हैं अगर नहीं ली हो तो अनुभव होने में समय भी लग जाता हैं | वैसे माँ मेलडी उग्र शक्तियो की देवी हैं तो साधना गुरु निर्देश में करे तो अधिक बेहतर होगा | 


सम्पर्क - +91 9207283275 




Kaali Tantra secret vidya || काली तंत्र ||


- जय महाकाल -


Tantra kaali Shiva shakti- गुप्त तंत्र शिव काली


Ancient mythology of the country of India and Goddess Kali- गुप्त तंत्र शिव काली


India is an ancient country where 33 crore ( 330 million ) forms of deities are worshipped ,Ancient of the country  India which is a mythological country full of magical and miraculous deities in the whole world no doubt about it, Hindu people worship Maa Kali like a mother, mainly in Hindus, Lord Shiva and Mata Kali have a prominent place.



kali mata


What does Kali mean? 

The meaning of Kali is time and the one who has the knowledge of all three tense, Maa Kali has four forms  is {Trinetri} three eyes and has many arms. Maa has three eyes which represent the knowledge of all three tense,  Maa Kali is worshiped here by the people in general worship and Tantrik people, called aghories, Kali's name is ( Dakshin Kali, Shamshan Kali, Matru Kali, and Mahakaali,) worships her in the crematorium.Aghori sadhus are those who leave their homes and spend their whole life in the crematorium, their food is made on the wood of the burning pyre of the crematorium. We will talk separately about Aghori, now we know the mother, then we will know about another topic, There is also a form of Maa Durga, but there are ten different incarnations of Maa, which are also known as Das Mahavidyas, The names of the demons who were killed are Mahishasura, Chand, Munda, Rakta Beej Shumbha, Nishumbha, are as follows 

The weapons of Mata Kali are trishul and sword.

Mahakaali is the wife of Lord Shiva and also the form of Shiva.
 The story of Mahakaali is found in different Puranas, Maa Kali is a wonderful form of Shakti,
 Her skin turned black and Narmund's long hair was washed in his neck, their tongues hanging out covered in hot blood.

How Mahakali Originated ||

There was a demon named Rakta Beej, he had the boon of Brahmaji, he used to create a lot of nuisance, no one could kill him except a woman , He also had a boon that if even a drop of his blood fell on the ground, many blood-seeded demons would be born. He used to torture the gods and Brahmin sages, used to create havoc in all the three worlds Due to this type of boon, the gods could not kill him, when the gods used to kill him in the war, many drops of his blood fell on the ground 
So many blood seeds were born. The gods had to fight with lakhs of blood seeds. The gods were upset.
Other deities were not able to win the battle with blood seeds, so the deities thought of seeking help from Lord Shiva It was not in the power of any other god to destroy the blood seed The gods together went to Shiva, then Lord Shiva was in deep meditation, 
Then the deities appealed to Mother Parvati, the wife of Lord Shiva When Mother Parvati heard the complaint of the deities, immediately the mother assumed a fierce form and and immediately set out to destroy the blood seed In this way the form of Kali took the form to destroy the blood seed.

how mata kali killed demon(rakta beej) blood seed?

Whenever the mother strikes, then again a new blood seed gets ready.
Then the mother made the size of her tongue giant, then instead of falling on the ground his blood started falling on the mother's tongue The blood seed started getting weak then the mother killed him.
After killing Raktabeej, the anger of Mahakali Mata was not calming down. Everyone started getting scared when she came in front of her extreme form, and whoever came in front of her would destroy them, she herself did not know what she was doing mother was very angry.
The worries of the deities increased as to how to pacify the anger of Maa Mahakali. Then the gods went to Mahadev and requested him to show some way to pacify the mother. Then Lord Shiva himself took many measures but the mother could not calm down.
After all, Shiv ji dropped himself between the feet of the mother and as soon as the mother got the touch of Shivji. Mother became calm, and became Parvati from Mahakali. Then all the deities started chanting 
In this way, this is the description of mother but Kali Purana and the leela of mother does not end in this.
 any one of the many forms of Maa Kali, Dakshina Kali, crematorium Kali, mother Kali and Mahakali form are considered in the count of their major forms. Tell that apart from these forms Shyama Kali, Guhya Kali, Ashta Kali and Bhadrakali etc. are also their The goddess of terrible darkness and cremation is known as Shamshana Kali in religious texts. Mainly the temple of this Kali Mata is situated in the crematorium itself. That's why they are worshiped in the same way. Please tell that they are mostly worshiped by the people of Tantrik and Aghor sect. These people worship Kali in the cremation ground to gain Tantric knowledge from her. According to the Tantriks, the goddess who resides in the crematorium itself is called the crematorium Kali.different incarnations. Astrologers tell that all their forms are worshiped in different ways. In this article, we are going to tell you about the cremation ground of Kali Mata and the powerful mantra used for her worship .It is said that as soon as one goes to the crematorium, one realizes the impermanence of the world and attains renunciation. According to the scriptures, Matangi, Siddhakali, Dhumavati, Ardrapati Chamunda, Nila, Nilsaraswati, Gharmati, Bharkati, unmukhi, and Hansi, all of them are different forms of the crematorium.




Place of Kali Devi and her Siddha Peethas Temple-


Kali Devi is considered to be the goddess of supernatural power, her worship is done in the crematorium because Kali resides in the crematorium. 
The main temple of Kali is located in Kolkata, West Bengal, as Kali is also worshiped in Bengal, Assam, and Odisha.

chanting mantras of maa kali -Mantras for chanting Maa Kali are as follows

* Om Hree Shreem Krim Parmeshwari Kalike Swaha

 * { ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी कालिके स्वाहा } 

 * And ( kreeng) क्रीं is the original seed mantra of Mahakali

 

If a seeker wants to do the sadhna of Mahakali, then do it under the guidance of a guru because they have the ability to handle the negativity of the mother 
Guru controls the negativity that comes on the seeker.. otherwise the mind of the seeker can be affected badly Do the worship of Kali under the guidance of the Guru , You can chant Mahakali by taking Guru Deeksha from Guru.

जय महाकाल ||  Jay Mahakaal || 


- Contact Guidance for more information and Margdasarhan -

+91 9207283275 





सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती पाठ - नवरात्री में करें

|| जय महाकाल || 


 -सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती पाठ - 

-Saptshloki Durga Saptshati Path -


Durga mata

जय महाकाल | साधक मित्रो दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ यह दुर्गा सप्तशती में से ही उत्पन्न हुआ सार हैं | जो मंत्र मयी स्तोत्र रूपी नित्य पूजा पाठ के समय किया जाने वाला सहज पाठ हैं | इस पाठ में  माँ दुर्गा के मुख्यत तीन रूपों का वर्णन किया गया हैं | जो महाकाली, महालक्ष्मी,महासरस्वति जी हैं  |  श्री दुर्गासप्तशती  माता के शक्ति के लीला का आगाध वर्णन युक्त सर्वोपरि रहस्यमयी ग्रंथ है। क्यों की इसमें देवी की माया,दया, करुणा, ममता, मातृत्व भाव आदि समस्त गुणों का वर्णन समाया हुआ  है|  सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती माता दुर्गा जी को समर्पित सात श्लोकों की श्रृंखला युक्त एक दिव्य स्तुति है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती, श्री दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ का लघु रूप है।विशेष श्री दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ माँ दुर्गा की आराधना का दिव्य मंत्र रूपी स्तोत्र है|  जो हिंदू धार्मिक पूजा पाठ में अधिक महत्व रखता हैं , देवी महात्म्य का अविभाज्य अंश माना गया है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति प्रतिदिन सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करते हैं, उन्हें सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ का लाभ व पुण्य प्राप्त होता है

। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति के ऊपर श्री दुर्गा माता की विशेष कृपा होती है तथा उसके समस्त संकटों का नाश होता है।

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सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती पाठ | 

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।

मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

विनियोगः

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टप्‌ छन्दः,

श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः,

श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥


दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।


दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या

सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥


सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥


शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥


रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥


सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।

एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥


॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥


- दुर्गा सप्तशती पाठ विधि-

सर्वप्रथम- देवी भगवती के प्रतिमा या मूर्ति अथवा यन्त्र के सामने चौकी पर कलश स्थापना करें, फिर दीप प्रज्वलित  करें।   दीप प्रज्जवलन के लिए या तो आप अखंड ज्योति को जला सकते है या देसी घी का दिया भी जलाया जा सकता है। दीप जलाने के बाद सुगन्धित धुप करे भोग के लिए गुड़ या सामान्य मिष्टान्न कुछ अंश रख सकते हैं |  सर्वप्रथम अपने गुरु का ध्यान कीजिए। पश्चात शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रहों का ध्यान करें। संकल्प चाहो तो ले सकते हैं |  स्वच्छ आसन पर पूर्व की और मुख कर के बैठ जाये सूर्योदय के समय यह पाठ विशेष लाभकारी हैं |  संध्या के समय भी इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता हैं |  इसके सप्तश्लोकी पाठ को । इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। या नित्य ७ आवृत्ति पाठ किया जा सकता हैं | विशेष लाभ के लिए नवरात्री में नौ दिन प्रातकाल और संध्या में करे तो अति प्रभावशाली अनुभव होते हैं इसमें कोई संशय नहीं | 


संपर्क - गुरूजी - +91 9207283275 



Varahi Tantra - वराही देवी मंत्र - कवच

 जय महाकाल | 


-Varahi Devi Mantra-

वराही देवी मंत्र - कवच 

Varahi Mata

जय महाकाल | साधक दोस्तों | वाराही देवी का स्थान तंत्र क्षेत्र में विशेष माना गया हैं यह देवी उत्तर और दक्षिण भारत के तंत्र प्रणाली में इसकी गुप्त रूप से आराधना की जाती हैं 

वराही देवी मुख्यत दुर्गा देवी की सहाय्यक लड़ने वाली शक्ति रूपी सेनापति उग्र देवी हैं , इस देवी को अलग अलग देवी के रूप में जाना जाता हैं लोगों को इस देवी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। | यह देवी सर्वाधिक अनुभवी तांत्रिको द्वारा  तंत्र में पूजी जाती हैं बहोत ही उग्र एवं तुरंत प्रभाव देने वाली देवी मानी जाती हैं, वाराही देवी को माँ धरती के रूप में और विष्णु पत्नी माँ लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता हैं, जो धन की देवी भी कहलाती है।  माँ वाराही की पहचान असुरों के युद्ध में माँ  दुर्गा देवी की सेनापती सहाय्यक रूप में कार्यरत थीं यह विशेष पहचान मानी गयी  हैं  माँ वाराही का स्थान उत्तराखंड में ५२ शक्तिपीठों में से एक स्थान वाराही देवी का हैं,और दूसरा स्थान वाराणसी काशी स्थित दशअश्वमेध घाट के मनमंदिर घाट से कुछ दुरी पर स्थित कुछ अंश जमींन केअंदर गुप्त रूप से माँ काशी क्षेत्रपाल के रूप में स्थापित हैं  जैसे काशी के कोतवाल  कालभैरव हैं ठीक वैसेही गुप्त रूप से वाराही देवी भी काशी  में विराजमान है। | देवी वराही चौसठ योगिनियों में गिनी जाती हैं साथ साथ सप्त मातृका में भी इनका स्थान देखा गया हैं यह देवी माँ दुर्गा का सात्विक एवं तामसिक दोनों  रूप भी पूजी गयी  है। | 

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अस्य श्रीवाराहीकवचस्य त्रिलोचन ऋषीः । अनुष्टुप्छन्दः ।

श्रीवाराही देवता । ॐ बीजं । ग्लौं शक्तिः । स्वाहेति कीलकं ।

मम सर्वशत्रुनाशनार्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यानम् -

ध्यात्वेन्द्र नीलवर्णाभां चन्द्रसूर्याग्नि लोचनां ।

विधिविष्णुहरेन्द्रादि मातृभैरवसेविताम् ॥ १॥


ज्वलन्मणिगणप्रोक्त मकुटामाविलम्बितां ।

अस्त्रशस्त्राणि सर्वाणि तत्तत्कार्योचितानि च ॥ २॥

एतैस्समस्तैर्विविधं बिभ्रतीं मुसलं हलं ।

पात्वा हिंस्रान् हि कवचं भुक्तिमुक्ति फलप्रदम् ॥ ३॥


पठेत्त्रिसन्ध्यं रक्षार्थं घोरशत्रुनिवृत्तिदं ।

वार्ताली मे शिरः पातु घोराही फालमुत्तमम् ॥ ४॥

नेत्रे वराहवदना पातु कर्णौ तथाञ्जनी ।

घ्राणं मे रुन्धिनी पातु मुखं मे पातु जन्धिन् ॥ ई  ५॥


पातु मे मोहिनी जिह्वां स्तम्भिनी कन्थमादरात् ।

स्कन्धौ मे पञ्चमी पातु भुजौ महिषवाहना ॥ ६॥

सिंहारूढा करौ पातु कुचौ कृष्णमृगाञ्चिता ।

नाभिं च शङ्खिनी पातु पृष्ठदेशे तु चक्रिणि ॥ ७॥


खड्गं पातु च कट्यां मे मेढ्रं पातु च खेदिनी ।

गुदं मे क्रोधिनी पातु जघनं स्तम्भिनी तथा ॥ ८॥

चण्डोच्चण्डश्चोरुयुगं जानुनी शत्रुमर्दिनी ।

जङ्घाद्वयं भद्रकाली महाकाली च गुल्फयो ॥ ९॥


पादाद्यङ्गुलिपर्यन्तं पातु चोन्मत्तभैरवी ।

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालसङ्कर्षणी तथा ॥ १०॥

युक्तायुक्ता स्थितं नित्यं सर्वपापात्प्रमुच्यते ।

सर्वे समर्थ्य संयुक्तं भक्तरक्षणतत्परम् ॥ ११॥


समस्तदेवता सर्वं सव्यं विष्णोः पुरार्धने ।

सर्शशत्रुविनाशाय शूलिना निर्मितं पुरा ॥ १२॥

सर्वभक्तजनाश्रित्य सर्वविद्वेष संहतिः ।

वाराही कवचं नित्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ॥ १३॥


तथाविधं भूतगणा न स्पृशन्ति कदाचन ।

आपदश्शत्रुचोरादि ग्रहदोषाश्च सम्भवाः ॥ १४॥

मातापुत्रं यथा वत्सं धेनुः पक्ष्मेव लोचनं ।

तथाङ्गमेव वाराही रक्षा रक्षाति सर्वदा ॥ १५॥


इति श्रीवाराहीकवचं सम्पूर्णम् ।


- विधि -

इस कवच का आरम्भ किसी मंगलवार या शुक्रवार से करे वाराही देवी के विग्रह या मूर्ति या फोटो  के सामने आसन पर बैठ कर तेल का दीपक प्रज्वल्लित करे यह साधना ब्रम्ह मुहूर्त में या रात्रि काल १० बजे के बाद या सोते समय इस कवच का  पाठ कर सकते हैं पाठ शुरू करने से पहले अपना नाम गोत्र स्थान कुल गोत्र का संकल्प अवश्य लें और सुगन्धित धुप चमेली का इत्र का फाहा माता को अर्पण करे लाल पुष्प अथवा पिले पुष्प से पूजन करे माता को लाल मिठाई कोई मौसमी फल अर्पण करे और श्रद्धा पूर्वक ऊपर दिए गए कवच का ५१ बार पाठ २१ दिन तक  करे पाठ शुरू करने से पहले अगर आप गुरु दीक्षित हो तो अच्छा हैं गुरु मंत्र की एक माला जाप कर के फिर इस कवच मंत्र का पाठ करे तो शीघ्र अनुभव होने लगेंगे इस साधना में कुछ विशेष अनुभव हो सकते हैं डरे नहीं स्वप्न में कुछ विचित्र संकेत मिल सकते हैं उसका अर्थ अपने गुरु द्वारा जान ले साधना गुप्त रखे | 

इस कवच के पाठ से अपने अगल बगल की शक्तिया आपको संकेत दे सकती हैं अगर आस पास कोई नकारात्मक शक्तियां अगर घूमती हो तो वह प्रभावित हो सकती हैं यह देवी स्वप्न के माध्यम से दृष्टान्त दे सकती हैं भूत ,भविष्य ,का कथन कराने की शक्ति इस साधना से  होती हैं इस देवी  साधना से तीव्र बुद्धि सटीक तंत्र ज्ञान के प्रति दिमाग कार्यरत हो जाता हैं बल, बुद्धि , विद्या , आकर्षण शक्ति बढ़ती हैं और इस साधना के पूर्णतः सिद्धि होने पर धनाकर्षण बढ़ जाता हैं | अगर सच्ची भावना से साधना करोगे  तो जरूर अनुभव होंगे सटीक ज्ञान जानने क लिए गुरुमार्ग दर्शन में यह साधना करनी चाहिए | 

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लोना चमारीन की शाबर मंत्र साधना

जय महाकाल -

लोना चमारीन की  शाबर मंत्र साधना -


luna chamarin


साधक मित्रो  लूना चमारिन के बारे में कम ही लोगों को पता हैं , की वो एक अपने ज़माने की मशहूर जादुगरिन थी | हम यहां बंगाल की जादूगरनी कामख्या के इस्माईल जोगी की शिश्या की बात कर रहे हैं |  निम्न मंत्र लूना चमारिन का हैं जिससे आप जो कार्य लिखे हैं वे कर सकते हैं 
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निम्न दिए गए शाबर मंत्र द्वारा लोना चमारी को सिद्ध करने से साधक भूत-प्रेत, जादू-टोना, डाकिनी-शाकिनी,जिन्न जिन्नात बाधा, तांत्रिक क्रिया जाल , काला जादू एवं स्वरक्षा  करने हेतु, इन सभी कार्यों में सफलता प्रदान  करता है |

- लोना चमारी शाबर मंत्र -

ॐ नमो आदेश गुरु को
लूना चमारीन  जगत की बिजुरी
मोती हेल चमके
जो “अमुक” पिंड में जान करे विजान करे
तो उस रण्डी पे फिरे
दुहाई तख़्त सुलेमान पैगंबर की
फिरे मेरी भक्ति
गुरु की शक्ति
फुरो मंत्र इश्वरोवाचा ||

- मंत्र साधना विधि -

शाम के समय पूर्व दिशा की तरफ मुख करके आसन बिछाकर बैठ जाये | सामने एक तेल का दीपक जलाये | साधना के पहले दिन

दो लड्डू, एक मीठा पान,दो लौंग,दो इलाइची छोटी और सात प्रकार की मिठाई अपने सामने रखे और अगले दिन किसी उजाड़ स्थान पर जाकर रख 


 आयें |अब सबसे पहले गुरु पूजन करें फिर गणेश जी का पूजन करें | ऐसा करने के उपरांत रक्षा मंत्र द्वारा अपने चारों तरफ सुरक्षा चक्र बना ले | अब उपरोक्त शाबर मंत्र के अपने सामर्थ्य अनुसार जाप  करें | प्रतिदिन समान मात्रा में जाप  करें, किसी दिन कम या किसी दिन ज्यादा  ऐसा बिल्कुल न करें | साधना को 21 दिन तक लगातार करें | 21वें दिन फिर से साधना में – दो लड्डू, एक मीठा पान,दो लौंग,दो इलाइची छोटी और सात प्रकार की मिठाई अपने सामने रखे और इससे अगले दिन किसी उजाड़ स्थान में रख आयें |
इस प्रकार से इस लोना चमारी साधना को करने से साधना में सफलता प्राप्त होती है और साधक उपरोक्त दिए गये सभी कार्यों में सिद्धयाँ प्राप्त करता है |

मित्रो एक विशेष ध्यान की बात | जब तक आपको गुरु प्राप्ति ढंग से  नहीं होगी तब तक आप एक महान तांत्रिक बनोगे 

ये विचार सिर्फ एक विचार मात्र ही बन कर रह जायेगा | कोई किताब पढ़ कर या कोई इंटरनेट से या किसी 
यू ट्यूब की वीडियो देख कर अपने आपको तांत्रिक साधक  बना ने में लगे हो , तो निश्चित ही अपना समय और ऊर्जा  दोनों बर्बाद कर 
रहे हो | अपितु  अति शीघ्र गुरुके सानिध्य में जाने का प्रयास करे | अगर सफलता प्राप्त करनी हैं तो 



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कर्ण पिशाचिनी अघोर साधना -२

जय महाकाल -



Karna Pisachini कर्ण  पिशाचिनी अघोर साधना -


जय महाकाल -  मित्रो   आज की प्रस्तुत  साधना कर्णपिशाचिनी की हैं जो की  अघोर पद्धति की हैं | मित्रो यह साधना आप सब के समक्ष सिर्फ जानकारी हेतु दे रहे हैं | इसे करने की अनुमति सिर्फ गुरु निर्देशन में रह कर करनेकी हैं  | अन्यथा आपको अगर कोई हानि होती हैं तो उसके जिम्मेदार आप स्वयं ही होंगे |  बहोत से मित्र खोजते रहते हैं की | उन्हें भूत भविष्य वर्तमान की बात पता चले और वे उनसे काम ले | पर ऐसा नहीं होता क्यों की इस साधना के लिए बहोत कष्ट और  नियमो का पालन करना पड़ता हैं | यह एक वाम मार्गी साधना हैं उग्र हैं जान की जोखिम हैं थोड़ी सी भी गलती आपकी जान ले सकती हैं | इसीलिए कहा गया हैं के यह साधना गुरु निर्देशन में रह कर करना चाहिए | इस साधना को कदापि  घर में ना करे | अन्यथा घर का माहौल बिगड़ जायेगा | जब तक इसकी साधना करोगे तब घर का वातावरण अस्त व्यस्त हो जायेगा | इसी लिए इस साधना को किसी निर्जन स्थान , खंडर , या एकांत नदी किनारे शमसान में , अथवा वृक्ष पर चढ़ कर करे। 

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कर्ण पिशाचिनी अघोर मन्त्र -

ॐ कर्ण पिशाचिनी श्मसानवासिनी महादेव्यै रतिप्रिये काल ज्ञान ज्ञानिनी स्वप्न कामेश्वरी पद्मावती त्रैलोक्य वार्ता कथय कथय स्वाहा | 

साधना विधि - 

जिस दिन आपका चंद्र बलि हो  दिन से ही साधना शुरू करे , काले वस्र , आसन काले भेड़ के उन का आसन 
काले हकीक की माला , या  रुद्राक्ष की माला , काला वस्र , एक लकड़ी का बाजोट , एक मिटटी का बड़ा सा दिया , सरसों का तेल , अगरबत्ती , तिलक के लिए सिन्दूर , अपने समक्ष रख कर , अमावस  की रात से साधना का आरम्भ करे , नित्य ५१००  माला उक्त मन्त्र का जाप करना हैं ४१ दिन तक  | जब साधना में ना हो तब हमेशा जाप के ध्यान  रहे | साधना में स्नान आदि वर्जित हैं | खुशबु त्यागना हैं | भोजन के पश्चात् बर्तन नहीं धोना हैं | जितना हो सके हविष्यान्न और दुग्ध प्रयोग में लाये | जाप को काम भाव एवं मलिन आत्मा से करना हैं | 
अंतिम दिन दशांश का हवन करना हैं | और बिना रजस्वाला कन्या को भोजन आदि करवाकर लाल वस्र भेंट अर्पण करना हैं |  साधना के अंतिम दिन वह प्रगट होकर वर मांगने को कहेगी | 
उसे अपने वचन  करारबद्ध कर ले | 

मित्रो यह साधना बहोत ही  उग्र हैं अपने गुरु निर्देश में रहकर यह साधना करे इस साधना में पागल होने का खतरा बहोत ज्यादा हैं सावधानी बरते अन्यथा हानि की जिम्मेदर स्वयं होंगे 





Guruji - +91 9207 283 275 



काली भगवती मंत्र Kali Bhagawati mantra

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काली भगवती मंत्र Kali Bhagawati mantra -


मित्रो। ..  माँ भगवती  के सभी रूपों में से माँ काली को  सबसे शक्तिशाली स्वरुप माना गया है | भय को दूर करने वाली , बुद्धि देने वाली , शत्रुओं का विनाश  करने वाली माँ काली की उपासना से सभी कष्ट स्वतः ही दूर होने लगते है | माँ काली की आराधना कलयुग में  फल देने वाली है | पुराणोमे  में वर्णित है कि कलियुग के समय हनुमान जी , काल भैरव और माँ काली की शक्तियाँ जागृत रूप में अपने भक्तों का उद्धार कर उनको मोक्ष प्रदान करेंगी  | कुछ मान्यताओं के आधार पर माँ काली की उपासना केवल सन्यासी और तांत्रिक तंत्र सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु करते है | ये सत्य हे  किन्तु यह यह भी सत्य हे | माँ काली की उपासना साधारण व्यक्ति भी अपने इच्छाशक्ति से माँ  को प्रसन्न कर के अपने  कार्य सिद्धि कर सकते है | परन्तु  एक बात का  ध्यान रहे मंत्र उच्चारण या पूजा विधि में त्रुटी होने पर | पागल होने के आसार बढ़ जाते हैं   माँ काली शीघ्र कुपित  होकर आपको दण्डित भी कर सकती है | इसीलिए इनकी उपासना या मंत्र सिद्धि पूर्णतया विधि अनुसार और गुरु के सानिध्य में ही करें | यह आपके लिए हितकर होगा


Kali Bhagawati mantra


माँ काली का मंत्र -


१)  क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा || 

२) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा || 

३) ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा |

४)  ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं क्रीं क्रीं फट 


विधि - उपरोक्त मन्त्रों  में से किसी भी एक मंत्र का ५ लक्ष जाप करे | जाप के लिए के लिए गुरु द्वारा सिद्ध
की हुई  काली हकीक की माला से  उक्त मन्त्रों का जाप करे | शीघ्र सिद्धि के लिए पूर्ण काली की विधि विधान 
से साधना करे | साधना गुरु के मार्गदर्शन में करे तो खतरे की उम्मीद नहीं होगी | 



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धन प्राप्ति की प्राचीन गुप्त साधना

जय महाकाल - 


धन प्राप्ति की प्राचीन  गुप्त साधना - 


जय महाकाल मित्रो यह साधना धन प्राप्ति सम्बंधित समस्या को ख़त्म करती हैं और नए नए आयाम प्राप्त कराती हैं | यह साधना अति प्राचीन और गुप्त हैं।  यह साधना अपने आप में विशेष हैं। . अगर सही तरीके से करेंगे तो आपको इसकी सफलता  से कोई रोक नहीं सकता। और एक खास बात  किसी पुरातन दबे हुए धन की बात का पता चल जाता हैं |  तो चलिए मित्रो साधना की पूरी विधि विधान जान लेते हैं। . 
सर्व प्रथम  इस साधना के लिए  होली दिवाली पर्व काल का मुहूर्त ढूंढे जब महूरत पड़े तो निम्न निखित सामग्री इकठ्ठा कर ले। .
. १ ) आकाश लांगली की सिद्ध की हुई जड़।  २) भूरे सर्प की खाल।  ३)  काली बिल्ली की सिद्ध की हुई जेर। . ४ ) चांदी का सिक्का। . ५ ) एक मिटटी का घड़ा  ... ६ ) और काले घोड़े की नाल 
इन सब वस्तुओं को इकठ्ठा कर ले | 
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धन प्राप्ति प्राचीन सिद्धि 


ऊपर दिए गए महूरत पर अपने समक्ष घी का दीपक जलाकर खुशबू दार धुप जला कर    उक्त समग्री को मिटटी के घड़े में डाले और गंगा जल छिड़क कर जमीं पर आसन बिछा कर  निम्न मंत्र का - ११ माला जाप करे। .. 

मन्त्र -

सागर की बेटी शंख की भैण | चन्द्र की स. .... .... विष्णु की। ..... 
पानी का खाना पानी का पीना अन्न धन की जो हैं मीना | 
बिल्ली उल्लू जिसका घोडा। .. ... ...  माई हमको थोड़ा ||| 


इस प्रकार २१ दिन तक नित्य समय पर इस प्राचीन मंत्र का जाप करना हैं | ध्यान रहे जाप बिच में खंडित न हो | मित्रों इस साधना से अपार धन की प्राप्ति के योग बनते हैं काम धंदे में बरकत रहती हैं | अखंड लक्ष्मी घर में वास करती हैं | इसमें कोई शंका नहीं | मित्रों ब्लॉग से साधना पोस्ट चोर   चोरी कर कॉपी पेस्ट करते हैं उनके कारन   इस मन्त्र के कुछ शब्द सुरक्षित रखे गए हैं | 

( नोट - इस साधना में दी गयी समाग्री के आभाव में ये साधना अधूरी मानी जाती हैं | अगर किसी साधक को सामग्री न उपलब्ध हो पाए तो हमारे यहाँसे साधक को सामग्री उपलब्ध करा दी जाएगी - धन्यवाद )



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होली  की साधना 



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लक्ष्मी बंधन की काट

जय महाकाल -



लक्ष्मी बंधन की काट 



मित्रो अक्सर ऐसे देखा गया हैं। . के बहोत मेहनत करने के बावजूद भी धन का संचय नहीं हो  पाता |  अच्छा व्यापार चलने के बावजूद भी धन इकठ्ठा नहीं होता। .. लक्ष्मी आने के बजाय। . जाने लग जाती हैं। ... ऐसा दिखयी देता हैं। . जैसे मनो किसी ने लक्ष्मी को बंदिश में बांध दिया हैं। .. मित्रों अगर आपको ऐसा प्रतीत होता हो। .. तो आप निम्न प्रकार की साधना कर लक्ष्मी को बंधन मुक्त करने का प्रयास कर सकते हो। .. 
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लक्ष्मी बंधन की काट 
विधि -
सर्व प्रथम शुक्ल पक्ष के अष्टमी के रात्रि  में   शुचिर्भूत हो कर  अपने पूजा स्थान पर एक बाजोट लगाए उस  पर गेरुआ वस्र बिछा कर  सिद्ध किया हुआ काली विग्रह की स्थापना करे। .. अपने समक्ष देसी गाय के घी का दिया जलाये। .. सुगन्धित अगरबत्ती धुप जलाये। .. और वातावरण शुद्धि कर ले। .. 


बाजोट के चारो और  उड़द की एक एक ढेरियां बना कर रख दे उन ढेरियों पर एक - एक लघु नारियल भी स्थापित करे। . और चौकी के चारों और। .. चावल और उड़द की ढेरियां बना कर उन पर प्रत्येकी  ३-३ काली हल्दी की गांठे , और २ -२  असली गोमती चक्र रखे। . 
काली विग्रह के सामने  ३ मुठ्ठी अक्षत एवं सवा मुठ्ठी उड़द की ढेरी रखे। .. चावल वाली ढेरी पर सियार सिंगी का जोड़ा।, और उड़द की  ढेरी पर हथ्थाजोड़ि की स्थापना करे। ..| सब वस्तुओं का ठीक से आयोजन कर ने के पश्चात्  गुरु ,गणेश , अपने इष्ट का ध्यान कर  साधना को शुरू करे। . शुरू करने से पहले साधना सफलता की कामना करे - पूजन में खीर का भोग अर्पित करे। .... अगर हो सके तो चन्दन की लकड़ी की धुनि का प्रयोग करे। .. और उक्त मंत्र का जाप आरम्भ करे 

मंत्र - 
" ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं फट स्वाहा। ॐ किली किली स्वाहा। "

उक्त मन्त्र का २१ दिन तक जाप करे नित्य ७ माला का जाप करना हैं बिना नागा किये। .. शुद्धि पूर्वक साधना करनी हैं। ..साधना के  अंतिम दिन हवन करे और खीर का भोग लगाए। .. साधना  समाप्ति के पश्चात्  उस पूजन सामग्री में से। . सियार सिंगी ,हथ्था जोड़ी , काली हल्दी , और प्रत्येक धेरी में से एक एक गोमती चक्र को निकाल कर एक चांदी के डिब्बी में भर कर उसमे अच्छा खासा सिन्दूर भर कर उसे तिजोरी या गल्ले में वोही लाल वस्र बिछा कर उसमे कुछ रूपये रख कर पोटली में बांध कर रख दे। .. और बाकी बची सामग्री लघु नारियल के साथ काले कपडे में बाँध कर। .. अपने दुकान या घर की तिजोरी से ३१ बार उल्टा घुमा कर उतार ले । और  .. बहते नदी में प्रवाहित कर दे। .. 

विशेष ध्यान - 
( साधना में बताई गयी सामग्री अगर कोई साधक प्राप्त करना चाहे तो साधक को उपलब्ध करा दी  जाएगी निम्न लिखे नंबर पर संपर्क करे। ...  धन्यवाद )


ई-मेल - gurushiromani23@gmail.com
संपर्क  -    09207 283 275 / 098464 18100