|| जय महाकाल ||
-सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती पाठ -
-Saptshloki Durga Saptshati Path -
जय महाकाल | साधक मित्रो दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ यह दुर्गा सप्तशती में से ही उत्पन्न हुआ सार हैं | जो मंत्र मयी स्तोत्र रूपी नित्य पूजा पाठ के समय किया जाने वाला सहज पाठ हैं | इस पाठ में माँ दुर्गा के मुख्यत तीन रूपों का वर्णन किया गया हैं | जो महाकाली, महालक्ष्मी,महासरस्वति जी हैं | श्री दुर्गासप्तशती माता के शक्ति के लीला का आगाध वर्णन युक्त सर्वोपरि रहस्यमयी ग्रंथ है। क्यों की इसमें देवी की माया,दया, करुणा, ममता, मातृत्व भाव आदि समस्त गुणों का वर्णन समाया हुआ है| सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती माता दुर्गा जी को समर्पित सात श्लोकों की श्रृंखला युक्त एक दिव्य स्तुति है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती, श्री दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ का लघु रूप है।विशेष श्री दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ माँ दुर्गा की आराधना का दिव्य मंत्र रूपी स्तोत्र है| जो हिंदू धार्मिक पूजा पाठ में अधिक महत्व रखता हैं , देवी महात्म्य का अविभाज्य अंश माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति प्रतिदिन सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करते हैं, उन्हें सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ का लाभ व पुण्य प्राप्त होता है
। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति के ऊपर श्री दुर्गा माता की विशेष कृपा होती है तथा उसके समस्त संकटों का नाश होता है।
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सप्तश्लोकी दुर्गा सप्तशती पाठ |
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टप् छन्दः,
श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः,
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्॥
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्॥
- दुर्गा सप्तशती पाठ विधि-
सर्वप्रथम- देवी भगवती के प्रतिमा या मूर्ति अथवा यन्त्र के सामने चौकी पर कलश स्थापना करें, फिर दीप प्रज्वलित करें। दीप प्रज्जवलन के लिए या तो आप अखंड ज्योति को जला सकते है या देसी घी का दिया भी जलाया जा सकता है। दीप जलाने के बाद सुगन्धित धुप करे भोग के लिए गुड़ या सामान्य मिष्टान्न कुछ अंश रख सकते हैं | सर्वप्रथम अपने गुरु का ध्यान कीजिए। पश्चात शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रहों का ध्यान करें। संकल्प चाहो तो ले सकते हैं | स्वच्छ आसन पर पूर्व की और मुख कर के बैठ जाये सूर्योदय के समय यह पाठ विशेष लाभकारी हैं | संध्या के समय भी इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता हैं | इसके सप्तश्लोकी पाठ को । इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। या नित्य ७ आवृत्ति पाठ किया जा सकता हैं | विशेष लाभ के लिए नवरात्री में नौ दिन प्रातकाल और संध्या में करे तो अति प्रभावशाली अनुभव होते हैं इसमें कोई संशय नहीं |
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