जय महाकाल |
-Varahi Devi Mantra-
वराही देवी मंत्र - कवच
वराही देवी मुख्यत दुर्गा देवी की सहाय्यक लड़ने वाली शक्ति रूपी सेनापति उग्र देवी हैं , इस देवी को अलग अलग देवी के रूप में जाना जाता हैं लोगों को इस देवी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। | यह देवी सर्वाधिक अनुभवी तांत्रिको द्वारा तंत्र में पूजी जाती हैं बहोत ही उग्र एवं तुरंत प्रभाव देने वाली देवी मानी जाती हैं, वाराही देवी को माँ धरती के रूप में और विष्णु पत्नी माँ लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता हैं, जो धन की देवी भी कहलाती है। माँ वाराही की पहचान असुरों के युद्ध में माँ दुर्गा देवी की सेनापती सहाय्यक रूप में कार्यरत थीं यह विशेष पहचान मानी गयी हैं माँ वाराही का स्थान उत्तराखंड में ५२ शक्तिपीठों में से एक स्थान वाराही देवी का हैं,और दूसरा स्थान वाराणसी काशी स्थित दशअश्वमेध घाट के मनमंदिर घाट से कुछ दुरी पर स्थित कुछ अंश जमींन केअंदर गुप्त रूप से माँ काशी क्षेत्रपाल के रूप में स्थापित हैं जैसे काशी के कोतवाल कालभैरव हैं ठीक वैसेही गुप्त रूप से वाराही देवी भी काशी में विराजमान है। | देवी वराही चौसठ योगिनियों में गिनी जाती हैं साथ साथ सप्त मातृका में भी इनका स्थान देखा गया हैं यह देवी माँ दुर्गा का सात्विक एवं तामसिक दोनों रूप भी पूजी गयी है। |
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अस्य श्रीवाराहीकवचस्य त्रिलोचन ऋषीः । अनुष्टुप्छन्दः ।
श्रीवाराही देवता । ॐ बीजं । ग्लौं शक्तिः । स्वाहेति कीलकं ।
मम सर्वशत्रुनाशनार्थे जपे विनियोगः ॥
ध्यानम् -
ध्यात्वेन्द्र नीलवर्णाभां चन्द्रसूर्याग्नि लोचनां ।
विधिविष्णुहरेन्द्रादि मातृभैरवसेविताम् ॥ १॥
ज्वलन्मणिगणप्रोक्त मकुटामाविलम्बितां ।
अस्त्रशस्त्राणि सर्वाणि तत्तत्कार्योचितानि च ॥ २॥
एतैस्समस्तैर्विविधं बिभ्रतीं मुसलं हलं ।
पात्वा हिंस्रान् हि कवचं भुक्तिमुक्ति फलप्रदम् ॥ ३॥
पठेत्त्रिसन्ध्यं रक्षार्थं घोरशत्रुनिवृत्तिदं ।
वार्ताली मे शिरः पातु घोराही फालमुत्तमम् ॥ ४॥
नेत्रे वराहवदना पातु कर्णौ तथाञ्जनी ।
घ्राणं मे रुन्धिनी पातु मुखं मे पातु जन्धिन् ॥ ई ५॥
पातु मे मोहिनी जिह्वां स्तम्भिनी कन्थमादरात् ।
स्कन्धौ मे पञ्चमी पातु भुजौ महिषवाहना ॥ ६॥
सिंहारूढा करौ पातु कुचौ कृष्णमृगाञ्चिता ।
नाभिं च शङ्खिनी पातु पृष्ठदेशे तु चक्रिणि ॥ ७॥
खड्गं पातु च कट्यां मे मेढ्रं पातु च खेदिनी ।
गुदं मे क्रोधिनी पातु जघनं स्तम्भिनी तथा ॥ ८॥
चण्डोच्चण्डश्चोरुयुगं जानुनी शत्रुमर्दिनी ।
जङ्घाद्वयं भद्रकाली महाकाली च गुल्फयो ॥ ९॥
पादाद्यङ्गुलिपर्यन्तं पातु चोन्मत्तभैरवी ।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालसङ्कर्षणी तथा ॥ १०॥
युक्तायुक्ता स्थितं नित्यं सर्वपापात्प्रमुच्यते ।
सर्वे समर्थ्य संयुक्तं भक्तरक्षणतत्परम् ॥ ११॥
समस्तदेवता सर्वं सव्यं विष्णोः पुरार्धने ।
सर्शशत्रुविनाशाय शूलिना निर्मितं पुरा ॥ १२॥
सर्वभक्तजनाश्रित्य सर्वविद्वेष संहतिः ।
वाराही कवचं नित्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ॥ १३॥
तथाविधं भूतगणा न स्पृशन्ति कदाचन ।
आपदश्शत्रुचोरादि ग्रहदोषाश्च सम्भवाः ॥ १४॥
मातापुत्रं यथा वत्सं धेनुः पक्ष्मेव लोचनं ।
तथाङ्गमेव वाराही रक्षा रक्षाति सर्वदा ॥ १५॥
इति श्रीवाराहीकवचं सम्पूर्णम् ।
- विधि -
इस कवच का आरम्भ किसी मंगलवार या शुक्रवार से करे वाराही देवी के विग्रह या मूर्ति या फोटो के सामने आसन पर बैठ कर तेल का दीपक प्रज्वल्लित करे यह साधना ब्रम्ह मुहूर्त में या रात्रि काल १० बजे के बाद या सोते समय इस कवच का पाठ कर सकते हैं पाठ शुरू करने से पहले अपना नाम गोत्र स्थान कुल गोत्र का संकल्प अवश्य लें और सुगन्धित धुप चमेली का इत्र का फाहा माता को अर्पण करे लाल पुष्प अथवा पिले पुष्प से पूजन करे माता को लाल मिठाई कोई मौसमी फल अर्पण करे और श्रद्धा पूर्वक ऊपर दिए गए कवच का ५१ बार पाठ २१ दिन तक करे पाठ शुरू करने से पहले अगर आप गुरु दीक्षित हो तो अच्छा हैं गुरु मंत्र की एक माला जाप कर के फिर इस कवच मंत्र का पाठ करे तो शीघ्र अनुभव होने लगेंगे इस साधना में कुछ विशेष अनुभव हो सकते हैं डरे नहीं स्वप्न में कुछ विचित्र संकेत मिल सकते हैं उसका अर्थ अपने गुरु द्वारा जान ले साधना गुप्त रखे |
इस कवच के पाठ से अपने अगल बगल की शक्तिया आपको संकेत दे सकती हैं अगर आस पास कोई नकारात्मक शक्तियां अगर घूमती हो तो वह प्रभावित हो सकती हैं यह देवी स्वप्न के माध्यम से दृष्टान्त दे सकती हैं भूत ,भविष्य ,का कथन कराने की शक्ति इस साधना से होती हैं इस देवी साधना से तीव्र बुद्धि सटीक तंत्र ज्ञान के प्रति दिमाग कार्यरत हो जाता हैं बल, बुद्धि , विद्या , आकर्षण शक्ति बढ़ती हैं और इस साधना के पूर्णतः सिद्धि होने पर धनाकर्षण बढ़ जाता हैं | अगर सच्ची भावना से साधना करोगे तो जरूर अनुभव होंगे सटीक ज्ञान जानने क लिए गुरुमार्ग दर्शन में यह साधना करनी चाहिए |
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गुरूजी - +91 9207283275