जय महाकाल -
महाकाली तंत्र साधना - Mahakaali Tantra Occult
माँ दुर्गा' कि 'संहार' रुप हे माँ काली। देवी माँ काली विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी देवी है।भक्त आपने ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त ओर विशेष रुप से सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ के माता कि पूजन, आराधना की जाती है। माँ काली की रुपरेखा भयानक है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।माँ काली भक्तों के प्रति सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजा के द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
( महाकाली रहस्य )
आज के युग में माँ महाकाली की साधना कल्पवृक्ष के समान है क्योकि ये कलयुग में शीघ्र अतिशीघ्र फल प्रदान करने वाली महाविद्याओं में से एक महा विद्या है. जो साधक महाविद्या के इस स्वरुप की साधना करता है उसका मानव योनि में जन्म लेना सार्थक हो जाता है क्योकि एक तरफ जहाँ माँ काली अपने साधक की भौतिक आवश्कताओं को पूरा करती है वहीँ दूसरी तरफ उसे सुखोपभोग करवाते हुए एक-छत्र राज प्रदान करती है.
वैसे तो जब से इस ब्रह्मांड की रचना हुई है तब से लाखों करोडों साधनाओं को हमारे ऋषियों द्वारा आत्मसात किया गया है पर इन सबमें से दस महाविद्याओं, जिन्हें की “ मात्रिक शक्ति “ की तुलना दी जाती है, की साधना को श्रेष्टतम माना गया है. जबसे इस पृथ्वी का काल आयोजन हुआ है तब से माँ महाकाली की साधना को योगियों और तांत्रिको में सर्वोच्च की संज्ञा दी जाती है. साधक को महाकाली की साधना के हर चरण को पूरा करना चाहिए क्योकि इस साधना से निश्यच ही साधक को वाक्-सिद्धि की प्राप्ति होती है. वैसे तो इस साधना के बहुतेरे गोपनीय पक्ष साधक समाज के सामने आ चुके है परन्तु आज भी हम इस महाविद्या के कई रहस्यों से परिचित नहीं है.
काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, दक्षिण काली, सिद्ध काली आदि के कई गोपनीय विधान आज भी अछूते ही रह गए साधकों के समक्ष आने से,जितना लिखा गया है ये कुछ भी नहीं उन रहस्यों की तुलना में जो की अभी तक प्रकाश में नहीं आया है और इसका महत्वपूर्ण कारण है इन विद्याओं के रहस्यों का श्रुति रूप में रहना,अर्थात ये ज्ञान सदैव सदैव से गुरु गम्य ही रहा है,मात्र गुरु ही शिष्य को प्रदान करता रहा है और इसका अंकन या तो ग्रंथों में किया ही नहीं गया या फिर उन ग्रंथों को ही लुप्त कर दिया काल के प्रवाह और हमारी असावधानी और आलस्य ने. अघोर साधनाओं का प्रारंभ शमशान से ही होता है और होता है तीव्र साधनाओं का प्रकटीकरण भी,तभी तो साधक पशुभाव से ऊपर उठकर वीर और तदुपरांत दिव्य भाव में प्रवेश कर अपने जीवन को सार्थक कर पाता है.
किसी भी शक्ति का बाह्य स्वरुप प्रतीक होता है उनकी अन्तः शक्तियों का जो की सम्बंधित साधक को उन शक्तियों का अभय प्रदान करती हैं, अष्ट मुंडों की माला पहने माँ यही तो प्रदर्शित करती है की मैं अपने हाथ में पकड़ी हुयी ज्ञान खडग से सतत साधकों के अष्ट पाशों को छिन्न-भिन्न करती रहती हूँ, उनके हाथ का खप्पर प्रदर्शित करता है ब्रह्मांडीय सम्पदा को स्वयं में समेट लेने की क्रिया का,क्यूंकि खप्पर मानव मुंड से ही तो बनता है और मानव मष्तिष्क या मुंड को तंत्र शास्त्र ब्रह्माण्ड की संज्ञा देता है,अर्थात माँ की साधना करने वाला भला माँ के आशीर्वाद से ब्रह्मांडीय रहस्यों से भला कैसे अपरिचित रह सकता है.इन्ही रूपों में माँ का एक रूप ऐसा भी है जो अभी तक प्रकाश में नहीं आया है और वह रूप है माँ काली के अद्भुत रूप “महा घोर रावा” का,जिनकी साधना से वीरभाव,ऐश्वर्य,सम्मान,वाक् सिद्धि और उच्च तंत्रों का ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होने लगता है,अद्भुत है माँ का यह रूप जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय रहस्यों को ही अपने आप में समेत हुआ है और जब साधक इनकी कृपा प्राप्त कर लेता है तो एक तरफ उसे समस्त आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से अभय प्राप्त हो जाता है वही उसे माँ काली की मूल आधार भूत शक्ति और गोपनीय तंत्रों में सफलता की कुंजी भी तो प्राप्त हो जाती है.
पुजा विधि सरल रूप से -
आदि काल से माँ काली की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।
- १। काठ निर्मित आसन पर लाल कापरे बिछाके उस पर माँ काली की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करना चिहिए, लाल वस्त्र और आसन अनिवार्य है.
- २। लाल-चन्दन, लाल-पुष्प तथा धूप, दीप, ओर फल से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए।
- ३. रात्रि का तीसरा पहर और दक्षिण दिशा की प्रधानता कही गयी है.
- ४. इसे किसी भी रविवार से प्रारम्भ किया जा सकता है.
- ५. महाकाली के चैतन्य चित्र या विग्रह के सामने बैठ कर इस मंत्र का २१ माला जप अगले रविवार तक नित्य किया जाता है.
- ६. गुरु पूजन और गुरु मंत्र तो किसी भी साधना का प्राथमिक और अनिवार्य अंग है जो अन्य साधना में सफलता के लिए हमारा आधार बनता है.
- ७. कुमकुम, तेल के दीपक, जवा पुष्प, गूगल धुप और अदरक के रस में डूबा हुआ गुड़ माँ के पूजन में प्रयुक्त होता है. रुद्राक्ष माला से इनका मंत्र जप किया जाता है.
- ८॰नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने से माँ काली प्रसन्न हो कर स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही करना चाहिए।
महा काली धयान स्तुति-
'' खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ''
जप मन्त्र-
'' ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः ''
'' ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः ''
तंत्र मंत्र -
'' ॐ क्रीं क्लीं महा घोररावयै पूर्ण घोरातिघोरा क्लीं क्रीं फट् ''
प्रार्थना-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥
महाकाली मंत्र :-
''ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं
र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं
अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं
दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा''
तंत्र मंत्र जप विधि :-
यह ऊपरी दिये हुये महाकाली का बिशेष शक्तिशाली उग्र मंत्र है। इसकी साधना घर मे नहीं करनी चाहिये ।श्मशान घाट में ईए साधना की जा सकती है,आगर नाहोसके तो घारके बाहर निर्जन देबालय इया नदी किनारे बैठे कोरने चाहिए । इस मंत्र 90 दिन मे 1100 बार तक जप करना चाहिये। दिन में महाकाली की पंचोपचार
पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है।
दक्षिणा काली -
देवी कालिका काम रुपणि है इनकी कम से कम 9,11,21 माला का जप काले हकीक की माला से किया जाना चाहिए। इनकी साधना को बीमारी नाश, दुष्ट आत्मा दुष्ट ग्रह से बचने के लिए, अकाल मृत्यु के भय से बचने के लिए, वाक सिद्धि के लिए, कवित्व के लिए किया जाता है। षटकर्म तो हर महाविद्या की देवी कर सकती है। षट कर्म मे मारण मोहन वशीकरण सम्मोहन उच्चाटन विदष्ण आदि आते है। परन्तु बुरे कार्य का अंजाम बुरा ही होता है। बुरे कार्य का परिणाम या तो समाज देता है या प्रकृति या प्रराब्ध या कानून देता ही है। इसलिए अपनी शक्ति से शुभ कार्य करने चाहिए।
मंत्र -
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः”
साधना के दौरान थोड़ी भयावह स्थिति बन सकती है, पदचाप सुनाई दे सकती है, साधना से उच्चाटन हो सकता है, तीव्र ज्वर और तीव्र दर्द का अनुभव हो सकता है परन्तु साधक यदि इन् स्थितियों को पार कर लेता है तो उसे स्वयं ही धीरे धीरे उपरोक्त लाभ प्राप्त होने लगते हैं.
महाकाली के सिद्धि की फलश्रुति
दस महाविद्याओं में मां काली का स्थान सबसे अहम है। काली शब्द काले रंग का प्रतीक है। मां काली का रंग स्याह काला है और इसी वजह से उन्हें काली कहा जाता है। यह शब्द हिन्दी के शब्द काल से आया जिसके अर्थ हैं समय, काला रंग, मृत्यु का देवता या मृत्यु।
दस महाविद्याओं में से साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं। जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती है। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। साधना के बहुत से लाभ होते हैं जो साधना पूरी होने के बाद पता चलते हैं।
साधना का सही प्रारंभ एक गुरू की मदद से ही किया जा सकता है और बाद में गुरू की अनउपस्थिति में भी महाकाली का आशीर्वाद पाया जा सकता है। महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो या पत्रिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है
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