शिव ताण्डव स्तोत्र की महिमा

जय जय महाकाल 




 शिव ताण्डव स्तोत्र की महिमा 

 




 - यह स्तोत्र आपका जीवन बदल देगा -

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र



॥ अथ रावण कृत  शिव तांडव स्तोत्र ॥

जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। 

डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥



जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥


धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥


जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥


ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥



कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥


नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥



प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥



अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥


जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥



दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥





शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।




॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

 
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हर किसी के मन में एक ख्याल हमेशा आता है कि क्या कोई ऐसा मंत्र है जो आपको सारा वैभव और सिद्धियां दे सकता है। मंत्रों में बड़ी शक्ति होती है, एक मंत्र का सही जाप आपकी जिंदगी बदल सकता है। ऐसा ही एक स्तोत्र है शिवतांडव स्तोत्र, जिसके जरिए आप न केवल धन-संपत्ति पा सकते हैं बल्कि आपका व्यक्तित्व भी निखर जाएगा। शिव तांडव स्तोत्र रावण द्वारा रचा गया है, इसकी कठिन शब्दावली और अद्वितीय वाक्य रचना इसे अन्य मंत्रों से अलग बनाती है। आपके जीवन में किसी भी सिद्धि की महत्वाकांक्षा हो इस स्तोत्र के जाप से आपको आसानी से प्राप्त हो जाएगी। सबसे ज्यादा फायदा आपकी वाक सिद्धि को होगा, अगर अभी तक आप दोस्तों में या किसी ग्रुप में बोलते हुए अटकते हैं तो यह समस्या इस स्तोत्र के पाठ से दूर हो जाएगी। इसकी शब्द रचना के कारण व्यक्ति का उच्चरण साफ हो जाता है। दूसरा इस मंत्र से नृत्य, चित्रकला, लेखन, युद्धकला, समाधि, ध्यान आदि कार्यो में भी सिद्धि मिलती है। इस स्तोत्र का जो भी नित्य पाठ करता है उसके लिए सारे राजसी वैभव और अक्षय लक्ष्मी भी सुलभ होती है।



शिव ताण्डव स्तोत्र ( संस्कृत:शिवताण्डवस्तोत्रम् ) महान विद्वान एवं परम शिवभक्त लंकाधिपति रावण द्वारा विरचित भगवान शिव का स्तोत्र है। मान्यता है कि रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले चलने को उद्यत हुआ तो भोले बाबा ने अपने अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया। शिव के अनन्य भक्त रावण का हाथ दब गया और वह आर्तनाद कर उठा - "शंकर शंकर" - अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए और स्तुति करने लग गया; जो कालांतर में शिव तांडव स्त्रोत्र कहलाया।



काव्य शैली


शिवताण्डव स्तोत्र स्तोत्रकाव्य में अत्यन्त लोकप्रिय है। यह पञ्चचामर छन्द में आबद्ध है। इसकी अनुप्रास और समास बहुल भाषा संगीतमय ध्वनि और प्रवाह के कारण शिवभक्तों में प्रचलित है। सुन्दर भाषा एवं काव्य-शैली के कारण यह स्तोत्रों विशेषकर शिवस्तोत्रों में विशिष्ट स्थान रखता है।




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कडवा सत्य ....!

कडवा सत्य ....!




सत्यम शिवम् सुन्दरम ..सत्य ही शिव है ..शिव ही सुन्दर है ...

मेरे साधक मित्रो आज मैं आपको कडवे सत्य से अवगत कराने जा रहा हूँ ..

मित्रो कोई भी साधना हो , तंत्र या मंत्र ,यंत्र .ये सब शिव तत्त्व  से ही प्रेरित है ..
उनके  बगैर न कोई तंत्र चले न कोई मंत्र ..! जब तक उनको न पूजा जाये तब तक कोई भी तांत्रिक क्रिया संपन्न नहीं होती ..यह ध्यान धरे ..!

भगवन शिव के कई रूप है ..कई अवतार है .और हर अवतार का कार्य अलग अलग है .

शिव ही देवो के देव महादेव है .,महाकाल है , अघोरिनाथ।। है हर रूप अलग कार्य करता है ..
धरती यानि पञ्च तत्त्व उन्ही से चलती है .इसीलिए उन्हें पञ्चमुखी कहा गया है ...उनके पांचो मुख से अलग अलग वाणी का उत्सर्जन होता है ..जिसे हम ...(अ ..कार ),( व् कार ) ,( ऊ… कार)..( म ..कर).जिससे बनता है ..ऊंं अर्थात ॐं ..यही वाणी हर मंत्र ..को प्रेरित करती है ..तब जाके मंत्रो में विशेष लहर दौड़ती है ..और उससे मंत्र कार्य करने लगता है ...!

मगर अफ़सोस मेरे मित्रो ..आज के युग में जो आडम्बर हो रहा
है  धर्म के नाम पर वो निंदनीय है ..(क्या हो रहा है ..)?

तो मित्रो ..आज कल कुछ पाखंडी लोग 
पंडाल ठोक ठोक कर ..दीक्षा देने का काम चला रहे    है ..कुछ असामाजिक तत्त्व के लोग भगवान् की बनायीं हुई चीजो पर अर्थात उनके मंत्रो को अपनी जागीर ..बना कर उन्हें पाखंड के नाम के आश्रम बना बना कर उन्हें बेचने का काम कर रहे  है ..!
एक स्वाइन फ्लु की  बीमारी फैली हुई है उसी प्रकार  लोग एक दुसरे को संक्रमण फैला रहे हे . बिना उनके बारे में जाने ..दीक्षा लेने के लिए भेड़ बकरियों की तरह ललचा रहे हैं ..यह सोच कर की ..एक दिन में 
ही सिद्धिय मिल जाएँगी  अगर ऐसा होता तो ,,पुरानकाल में ऋषि मुनियों को कई सालो तक तस्या क्यूँ करनी पड़ी  जंगल में  इसीलिए साधक मित्रो  मेरा अप लोगो से आवाहन है ..ऐसे ठगानंद के आश्रमों से बचे और अपना कीमती वक़्त बर्बाद न करे ..ये लोग सिर्फ अपना समुदाय का प्रचार कर प्रसिद्धि पाने के लिए  खुद को ही भगवान् मानने का दावा करते है ..जो की कहीं से भी सत्य नहीं है .....!

.इन मेसे कुछ लोग ऐसे भी है ..की चार किताबे संस्कृत की पढली है ..तो अपने आप को विद्वान समझ बैठे है ..और लोगो को अपने पुराने ग्रंथो  का संस्कृत translation करके लोगो व्याख्यान ..दे कर ..अपने आप को स्वामीजी कहलाने के लिए ..प्रचार कर रहे है ..और तो और अपने नाम के आगे एक किस्म की उपाधि लगाकर जेसे के  ( स्वामिनंद , नित्यानंद , मठाधीश नन्द , देवानंद , फलानानंद , ढीमका नन्द  ) इस प्रकार के नाम रख  कर सफ़ेद धोती पेहेन कर माथे पर टिका लगा कर बड़े विद्वान बन  ..अपना प्रचार कर रहे है ..!

जो की बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है ..लोग तो बेचारे अज्ञानी है .उनके अज्ञानता का फायदा उठा कर ये लोग .दीक्षा के नाम पर पंडाल ठोक कर ..अपना बैंक बैलेंस बना रहे है .!

मेरा अनुरोध है साधक गणों से 
से ऐसे धोकेबाज समाज के ठगों से बच के रहे ...! जो सिर्फ अपने एक ठगी वाले पंडालो के माध्यम से   अध्यात्मिक का ढोंग रचाकर लोगो को गुमराह कर रहे है ..! और इन लोगो को अपने जूते पहने हुए पैरोमे लोगो से धोक खिलवाने मे आनंद आता है।। . ऐसे .नकली और मक्कार टाइप (ठगानंदजी ) और इनके आश्रमों से बच के रहे ..!
मेरे साधक मित्रो जब तक आप का ध्यान शिव साधना में नहीं लगेगा तब तक जान लीजिये की तब तक आप को दिव्यता का अनुभव नहीं होगा ..इनके बगैर कोई सिद्धि प्राप्त ही नहीं होती ..सब से पहले अपने इष्ट के प्रति सच्ची भक्ति और निष्ठा जागृत नहीं  होती तब तक ..आप किसी भी साधना में संपूर्ण नहीं हो सकते .!

जब ये जागृत होने लगेगा तब आप के पास सिद्धियों के कई विकल्प अपने आप ही सामने आते जायेंगे ..ये हमारा जगता अनुभव है ..!


मित्रो सिद्धियों के लिए कई वर्षो कई महीनो तक भटकना पड़ता है यातना भोगनी पड़ती है .तब तक 
कोई योगीनाथ , अघोरिनाथ महाराज , हम पर कृपा बरसाकर एक सिद्धि दान करते है ..इसमें कई वर्ष लग जाते है ..यही असली परंपरा है ..! हमने भी कई साल गुजार दिए है  इस मार्ग में ..तब जाकर इस तीव्र विलक्षण चरम सीमा तक पहुंचे ..!
मित्रो अगर मैं अपनी सनातन धर्म के कई मंत्रो एवं तंत्रों का खुलासा जग जहीर तरीके से कर रहा हूँ तो कुछ पाखंडी आश्रम वालो के पेट में दर्द हो रहा है।। वोह नहीं चाहते की मैं इन दिव्या मंत्रो का खुलासा 
 करूँ ..क्यूँ की इनकी दूकान बंद हो जाएगी ..इसलिए उनको  तकलीफ हो रही है .. उनके पेट में दर्द हो रहा है ..हमसे कह रहे है की ..तुम इन मंत्रो का खुला सा न करे ..डायरेक्ट लोगोको   न दे ..ब्लॉग के जरिये .! क्यूँ की मैं तो निशुल्क लोगो के सामने रहस्योदघाटन कर रहा हूँ इसलिए ..इन्हे डर सत रहा है कहीं इनके पंडाल बंद न हो जाये ..! कई लोगो ने मुझे गलत सलत कॉमेंट्स तक दे दिए ...!

मगर कुछ समाज के ढोंगी आचार्य बने हुए है ..उनका हम जेसे ( अघोर पंथ के ) समुदाय के विरुद्ध में .. लोगो में गलत भावनाए भड़का रहे है ..!

..
.मैं यह मंत्रो का खुलासा अपनी मर्ज़ी से लोगो के सामने निस्वार्थ भावना से कर रहा हूँ .
.मन्त्र तंत्र शक्तिया किसी के बाप की जागीर नहीं है ..जो मुझ पर पाबन्दी लगाये ..!
मगर मेरी उन पाखंडी लोगो को हिदायत है .अगर मेरे काम में किसी
ने भी  या  किसी भी आश्रम वश्रम के ढोंगी  व्यक्ति .ने टांग अडा ने की कोशिश की तो   ... इस ( अघोरी से  ) उलझने का प्रयास करने की कोशिश करे ।। ये मेरी चेतावनी है ..उसे बक्शा नहीं जायेगा ..यहीं से बैठे बैठे उखाड़   दूंगा ..उसे चाहे वो किसी भी पंडाल का क्यूँ न  हो।।

और मुझे गलत  कॉमेंट्स लिखने वालो ध्यान में रहे ..कोई भी गलतसलत बाते कमेन्टस में नजर में आई  तो वोही जहा तू बैठा ..हे वोही पर उखाड़ के रख दूंगा ये मेरा खुला चलेंगे ..है ...!


तो मेरे साधक मित्रो सावधान आडम्बर में न पड़े ..शिव का ध्यान करे ..उनसे प्रार्थना करे की उनकी जिज्ञासा को आगे बढ़ाने का आशीर्वाद प्रदान करे ...! अगर ऐसा करेंगे तो जरुर आपको कुछ समय के अंतराल के बाद दिव्यता का अनुभव होने लागेगा ..जब ऐसा होने लगे तब समझ लेना  (बाबा महाकाल , औघरनाथ की ..कृपा दृष्टी होने लगी है ..ये आपके मनोकामनाओ के द्वार खोल देगी ,,..ये हमारा दावा है ...!



जय बम्म भोले औघड्नाथ की सदा ही जय हो ...!



श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए श्री गणपति -साधना



श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए  श्री गणपति -साधना












‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश की साधना की एक सरल विधि प्रस्तुत है।


वैदिक-साधनाः


यह साधना ‘श्रीगणेश चतुर्थी’ से प्रारम्भ कर ‘चतुर्दशी’ तक (१० दिन) की जाती है। ‘साधना’ हेतु “ऋद्धि-सिद्धि” को गोद में बैठाए हुए भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।


विधिः पहले ‘भगवान् गणेश’ की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। फिर अपने हाथ में एक नारियल लें और उसकी भी पूजा करें। तब अपनी मनो-कामना या समस्या को स्मरण करते हुए नारियल को भगवान् गणेश के सामने रखें। इसके बाद, निम्न-लिखित स्तोत्र का १०० बार ‘पाठ‘ करें। १० दिनों में स्तोत्र का कुल १००० ‘पाठ‘ होना चाहिए। यथा-


स्वानन्देश गणेशान्, विघ्न-राज विनायक ! ऋद्धि-सिद्धि-पते नाथ, संकटान्मां विमोचय।।१


पूर्ण योग-मय स्वामिन्, संयोगातोग-शान्तिद। ज्येष्ठ-राज गणाधीश, संकटान्मां विमोचय।।२


वैनायकी महा-मायायते ढुंढि गजानन ! लम्बोदर भाल-चन्द्र, संकटान्मां विमोचय।।३


मयूरेश एक-दन्त, भूमि-सवानन्द-दायक। पञ्चमेश वरद-श्रेष्ठ, संकटान्मां विमोचय।।४


संकट-हर विघ्नेश, शमी-मन्दार-सेवित ! दूर्वापराध-शमन, संकटान्मां विमोचय।।५


उक्त स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व अच्छा होगा, यदि निम्न-लिखित मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ किया जाए।

यथा- “ॐ श्री वर-वरद-मूर्त्तये वीर-विघ्नेशाय नमः ॐ”


गुरुआशीर्वाद लेकर साधना शुरू करे अन्यथा  लाभ नहीं होगा

साधना-काल में (१० दिन) साधना करने के बाद दिन भर उक्त मन्त्र का मन-ही-मन स्मरण करते रहें। ११ वें दिन, पहले दिन जो नारियल रखा था, उसे पधारे (फोड़कर) ‘प्रसाद’ स्वरुप अपने परिवार में बाँटे। ‘प्रसाद’ किसी दूसरे को न दें।


इस साधना से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी समस्याएँ, बाधाएँ दूर होती है।
जब आपका कार्य संपन्न हो तो हमें ..अनुभव जरूर शेयर करियेगा ...ये प्रयोग हमारा अनुभूत है।।




संपर्क - 09207 283 275




 

कन्या विवाह हेतु एक सरल प्रयोग

- जय महाकाल -

कन्या विवाह हेतु एक सरल प्रयोग -




प्रस्तुत ‘प्रार्थना’ माँ सीता ने भगवान् राम को पति-रुप पाने हेतु यह प्रयोग   किया था। पहले शुद्ध होकर दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठे। फिर दुर्गा का भक्ति-भाव से अधीर होकर ‘पञ्चोपचार पूजन’ करे। पूजन के बाद प्रणाम करे -


“ॐ श्रीदुर्गायै सर्व-विघ्न-विनाशिन्यै नमः।”
पुनः हाथ जोड़कर ‘प्रार्थना’ करे-
“ॐ सर्व-मंगल-मांगल्ये, सर्व-काम-प्रदे शिवे ! देहि मे वाञ्छितं नित्यं, नमस्ते शंकर-प्रिये।”
फिर, निम्न-लिखित मन्त्र का कम-से-कम २१ बार पाठ करे -
“ॐ दुर्गे शिवे अभये माये, नारायणि सनातनि ! जये मे मंगलं देहि, नमस्ते सर्व-मंगले।।”
उक्त मन्त्र का २१ बार पाठ करने के बाद गाय के घी, शहद, मिश्री, लाल चन्दन-चूरा, अर्जुन की छाल, कमल गट्टे से हवन करे। अँगीठी में 
आम की लकड़ी की अग्नि या गाय के गोबर के कण्डे की अग्नि में निम्न  लिखे देवी -मन्त्रों से ११ बार नित्य हवन करे -
१॰ ॐ श्रीदुर्गायै नमः स्वाहा, २॰ ॐ श्रीशिवायै नमः स्वाहा, ३॰ ॐ श्री अभयायै नमः स्वाहा, ४॰ ॐ श्रीमायायै नमः स्वाहा, ५॰ ॐ श्रीनारायण्यै नमः स्वाहा, ६॰ ॐ श्रीसनातन्यै नमः स्वाहा, ७॰ ॐ श्रीजयायै नमः स्वाहा, ८॰ ॐ श्रीमंगलायै नमः स्वाहा, ९॰ ॐ श्री सर्व-मंगलायै नमः स्वाहा।

संपर्क  +91 9207 283 275




।। सर्व कार्य सिद्धि .. श्रीउच्छिष्ट-गणेश कवच।।



।। सर्व कार्य सिद्धि .. श्रीउच्छिष्ट-गणेश कवच।।






ऋषिर्मे गणकः पातु, शिरसि च निरन्तरम्। त्राहि मां देवी गायत्री, छन्दः ऋषिः सदा मुखे।।१


हृदये पातु मां नित्यमुच्छिष्ट-गण-देवता। गुह्ये रक्षतु तद्-बीजं, स्वाहा शक्तिश्च पादयो।।२


काम-कीलकं सर्वांगे, विनियोगश्च सर्वदा। पार्श्व-द्वये सदा पातु, स्व-शक्तिं गण-नायकः।।३


शिखायां पातु तद्-बीजं, भ्रू-मध्ये तार-बीजकं। हस्ति-वक्त्रश्च शिरसि, लम्बोदरो ललाटके।।४


उच्छिष्टो नेत्रयोः पातु, कर्णी पातु महात्मने। पाशांकुश-महा-बीजं, नासिकायां च रक्षतु।।५


भूतीश्वरः परः पातु, आस्यं जिह्वा स्वयंवपु। तद्-बीजं पातु मां नित्यं, ग्रीवायां कण्ठ-दर्शके।।६


गं बीजं च तथा रक्षेत्, तथा त्वग्रे च पृष्ठके। सर्व-कामश्च हृत्पातु, पातु मां च कर-द्वये।।७


उच्छिष्टाय च हृदये, वह्नि-बीजं तथोदरे। माया-बीजं तथा कट्यां, द्वावूरु सिद्धि-दायकः।।८


जंघायां गण-नाथश्च, पादौ पातु विनायकः। शिरसः पाद-पर्यन्तमुच्छिष्ट-गण-नायकः।।९


आपाद्-मस्तकान्तं च, उमा-पुत्रश्च पातु माम्। दिशोष्टौ च तथाऽऽकाशे, पाताले विदिशाष्टके।।१०


अहर्निशं च मां पातु, मद-चञ्चल-लोचनः। जलेऽनले च संग्रामे, दुष्ट-कारा-गृहे वने।।११


राज-द्वारे घोर-पथे, पातु मां गज-नायकः। इदं तु कवचं गुह्यं, मम वक्त्रात् विनिर्गतम्।।१२


त्रैलोक्ये सततं पातु, द्वि-भुजश्च चतुर्भुजः। बाह्यमभ्यन्तरं पातु, सिद्धि-बुद्धि-विनायकः।।१३


सर्व-सिद्धि-प्रदं देवि ! कवचमृद्धि-सिद्धिदम्। एकान्ते प्रजपेन्मन्त्रं, कवचं युक्ति-संयुतम्।।१४


इदं रहस्यं कवचमुच्छिष्ट-गण-नायकम्। सर्व-वर्मसु देवेशि ! इदं कवच-नायकम्।।१५


एतत् कवच-माहात्म्यं, वर्णितु नैव शक्यते। धर्मार्थ-काम-मोक्षादि, नाना-फल-प्रदं नृणाम्।।१६


शिव-पुत्रः सदा पातु, पातु मां च सुरार्चितः। गजाननः सदा पातु, गण-राजश्च पातु माम्।।१७


सदा शक्ति-रतः पातु, पातु मां काम-विह्वलः। सर्वाभरण-भूषाढ्या, पातु मां सिन्दुरार्चितः।।१८


पञ्च-मोद-करः पातु, पातु मां पार्वती-सुतः। पाशांकुश-धरः पातु, पातु मां च धनेश्वरः।।१९


गदा-धरः सदा पातु, पातु मां काम-मोहितः। नग्न-नारी-रतः पातु, पातु मां च गणेश्वर।।२०


अक्षय्य-वरदः पातु, शक्ति-युक्तः सदाऽवतु। भाल-चन्द्रं सदा पातु, नाना-रत्न-विभूषितः।।२१


उच्छिष्ट-गण-नाथश्च, मद-घूर्णित-लोचनः। नारी-योनि-रसास्वादः, पातु मां गज-कर्णकः।।२२


प्रसन्न-वदनः पातु, पातु मां भग-वल्लभः। जटा-धरः सदा पातु, पातु मां च किरीट-धृक्।।२३


पद्मासन-स्थितः पातु, रक्त-वर्णश्च पातु माम्। नग्न-साम-पदोन्मतः, पातु मां गण-दैचतः।।२४


वामांगे सुन्दरी-युक्तः, पातु मां मन्मथ-प्रभुः। क्षेत्र-प्रवसितः पातु, पातु मां श्रुति-पाठकः।।२५


भूषणाढ्यस्तु मां पातु, नाना-भोग-समन्वितः। स्मिताननः सदा पातु, श्रीगणेश-कुलान्वितः।।२६


श्री-रक्त-चन्दन-मयः, सुलक्षण गणेशः। श्वेतार्क-गणनाथश्च, हरिद्रा-गण-नायकः।।२७


परिभद्र-गणेशश्च, पातु सप्त-गणेश्वरः। प्रवालक गणाध्यक्षो, गज-दन्तो गणेश्वरः।।२८


हर-बीज-गणेशश्च, भद्राक्ष-गण-नायकः। दिव्यौषधि-समुद्भूतो, गणेशश्चिन्तित-प्रदः।।२९


लवणस्य गणाध्यक्षो, मृत्तिका-गण-नायकः। तण्डुलाक्ष-गणाध्यक्षो, गो-मयस्य गणेश्वरः।।३०


स्फटिकाक्ष-गणाध्यक्षो, रुद्राक्ष-गण-दैवतः। नव-रत्न-गणेशश्च, आदि-देवो गणेश्वरः।।३१


पञ्चाननश्चतुर्वक्त्रो, षडानन-गणेश्वरः। मयूर-वाहनः पातु, पातु मां मूषकासनः।।३२


पातु मां देव-देवेशः, पातु माम् ऋषि-पूजितः। पातु मां सर्वदा देवो, देव-दानव-पूजितः।।३३


त्रैलोक्य-पूजितो देवः, पातु मां च विभुः प्रभुः। रंगस्थं च सदा पातु, सागरस्थं सदाऽवतु।।३४


भूमिस्थं च सदा पातु, पातालस्थं च पातु माम्। अन्तरिक्षे सदा पातु, आकाशस्थं सदाऽवतु।।३५


चतुष्पथे सदा पातु, त्रि-पथस्थं च पातु माम्। बिल्वस्थं च वनस्थं च, पातु मां सर्वतः स्थितम्।।३६


राज-द्वार-स्थितं पातु, पातु मां शीघ्र-सिद्धिदः। भवानी-पूजितः पातु, ब्रह्मा-विष्णु-शिवार्चितः।।३७



।।फल-श्रुति।।



इदं तु कवचं देवि ! पठनात् सर्व-सिद्धिदम्। उच्छिष्ट-गणनाथस्य, स-मन्त्रं कवचं परम्।।१


स्मरणाद् भूपतित्वं च, लभते सांगतां ध्रुवम्। वाचः-सिद्धि-करं शीघ्रं, पर-सैन्य-विदारणम्।।२


सर्व-सौभाग्यदं शीघ्रं, दारिद्रयार्णव-घातकम्। सु-दार-सु-प्रजा-सौख्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम्।।३

अपने गुरु का आशीर्वाद ले कर इस साधना की शुरुवात करे





प्रतिदिन १० बार उक्त कवच का पाठ करे। यह साधना सर्व-सिद्धि-दायक है। इससे समस्त विघ्नों का नाश होता है। आर्थिक सफलता प्राप्त करने के लिए और जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए इससे बढकर कोई कवच नहीं है। मात्र स्मरण-मात्र से बिना मन्त्र, बिना

प, बिना हवन के इस साधना से लाभ होता है।



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