साबर मंत्र और नवग्रह काल दोष Shabar Mantra

जय महाकाल 


साबर मंत्र और नवग्रह काल दोष

navgraha kaal dosh


|| अवधूतेश्वर कालेश चिंतामणि साबरी प्रयोग ||


नवग्रह दोष- व्यक्ति के लिए 

  जीवन को रसातल में पंहुचाने वाले ७ दोषों का नाश किया जा सकता है .ये सात दोष निम्न प्रकार के हैं.

अधिदैविक दोष- कभी कभी साधक के कुल देवी देवता किसी कारण नाराज हो जाते हैं अर्थात यदि उनका उचित सम्मान न किया जाये या उनके पूजन क्रम में आलस्य व प्रमादवश शिथिलता कर दी जाये तो ऐसे में कुलदेवता का सुरक्षा चक्र मंद हो जाता है या भंग हो जाता है तब अभी तक उसे जो सुरक्षा व गति प्राप्त हो रही थी वो समाप्त हो जाती है,फलस्वरूप साधक दुर्भाग्य की जकड में आ जाता है.

इष्ट दोष- प्रत्येक मनुष्य किसी विशेष देवशक्ति का अंश लिए हुए होता है तथा इसी तथ्य पर उसके इष्ट का निर्धारण भी होता है किन्तु बहुधा साधक को उसके इष्ट की जानकारी नहीं होती है,और इसका ज्ञान मात्र सद्गुरु को ही होता है किन्तु जब साधक उसे जानने की कोई जिज्ञासा ही नहीं रखता है तब ऐसे में वो भ्रमवश या लालचवश किसी भी देवी देवता को अपना इष्ट बना लेता है ,और ऐसे में आवश्यक नहीं है की वो चयनित देवशक्ति उसकी मित्र ही हो,कभी कभी पूर्वजन्म के संस्कारो के फलस्वरूप शत्रु देव शक्ति भी हो सकती है क्यूंकि प्रत्येक साधक को कौन सी देवशक्ति का साहचर्य मिलेगा या किसका गुण उसके प्राणगत रूप से मेल खाता है,इसका ज्ञान साधक को हो पाना कठिन ही होता है,तब साधक अतिरंजित घटनाओं को सुनकर या अधिक पाने के लालच में कसी भी शक्ति की आराधना करने लगता है,और उसके मूल इष्ट उपेक्षित रह जाते हैं,तथा साधक उनकी कृपा से वंचित रह जाता है. ऐसे में तब उसे लाभ के बजाय हानि होने लगती है और उसे ये अज्ञात कारण समझ में ही नहीं आता है.

कर्मदोष प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में तीन प्रकार के कर्मों का परिणाम पाता है. प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण. मान लीजिए आपने इस जीवन में लगातार पुण्यकर्म किये हैं किन्तु जीवन से अभाव है की जाने का नाम ही नहीं ले रहा तब ये समझ में नहीं आता है की आखिरकार हमसे ऐसी कौन सी त्रुटी हुयी है जो जीवन में ना तो प्रसन्नता है,ना ही कोई उन्नति के चिन्ह ही. अब इसका ज्ञान उसे गुरु ही दे सकता है या फिर इसे उसकी कुंडली द्वारा भी जाना जा सकता है, ये ज्ञात किया जा सकता है की आखिरकार हम किन कर्मों का परिणाम झेल रहे हैं,क्या वे हमारे पूर्वजन्मों का परिणाम है या फिर संचित या वर्तमान के क्रियमाण कर्मों का.

आधारदोष- कभी कभी हमारी अवनति का कारण हमारा मोह,प्रेम या कर्त्तव्य भी हो जाता है,इसका अर्थ ये है की हमारे सम्बन्ध में कोई ऐसा होता है जो की हमारा अत्यधिक स्नेही है, और वो व्यक्ति जीवन में दुःख,अभाव या दुर्भाग्य से ग्रस्त होता है और हम उसकी उन्नति के लिए पूर्ण ह्रदय से प्रार्थना करते हैं,उसके कष्टों को दूर करने का प्रयत्न भी करते हैं, किन्तु हमें ये ज्ञात नहीं होता है की कही न कही हमारे द्वारा किये जा रहे हस्तक्षेप का परिणाम हमारे दुर्भाग्य के रूप में हमारे सामने आ सकता है,अतः मोह जनित इस दोष से जो परिणाम प्राप्त होते हैं वो इतने कष्टकारी और भयावह होते हैं की हमारे साथ साथ इस चक्की में हमारा परिवार भी पिसता जाता है, और पूरे परिवार का विकास रुक जाता है तथा एक उदासी,बैचेनी का साम्राज्य परिवार में फैल जाता है. हमारे पूर्वजों के द्वारा किये गए बुरे कार्यों का परिणाम भी इसी श्रेणी में आता है ,जो की उनके प्रतिनिधि के रूप में हमें भोगना होता है,अर्थात पितृ दोष को भी हम इसी दोष के अंतर्गत रखते हैं.  
शाप दोष-  हमारे कर्मों के द्वारा किसी अन्य का ह्रदय दुखने से,उसका अहित होने से भी स्वयं के  जीवन का योग दुर्भाग्य से हो जाता है. ब्रह्माण्ड भावों की तीव्रता से अछूता नहीं है,और इसी कारण हमारे भाव साकार रूप में हमारे सामने आ जाते हैं, इसक सिद्धांत ये है की हमारे मन में चल रहे भाव का योग जैसे ही उस भाव विशेष के स्वामी काल क्षणों से होता है तो वे भाव भाव ना रहकर साकार रूप में हमारे जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं. इसी कारण किसी के द्वारा पूर्ण शांत ह्रदय से दिया गया आशीष और किसी के पीड़ित ह्रदय से निकली आह फलीभूत होती है,और याद रखिये की ब्रह्माण्ड नकारात्मक को कही तीव्रता से स्वीकार भी करता है और उसके परिणाम को उससे कही अधिक तीव्रता से प्रदान भी करता है,क्यूंकि ऐसे में मात्र ऊर्जा का विखंडन करना ही होता है जो की सहज है अपेक्षाकृत सकारात्मक भावों से प्रेरित ऊर्जा के संलयन के.अर्थात आशीर्वाद फलीभूत होने में समय ले सकते है किन्तु श्राप समय नहीं लेता है. इस दोष के अंतर्गत वास्तुदोष भी आता है अर्थात जिस भूमि पर आप रह रहे हैं,परिस्थितियों, श्राप,काल या घटनाओं के कारण उसमे विकृति आ जाती है और वो भूमि,भवन निरंतर नकारात्मक ऊर्जा छोड़ते हैं,जिससे दुर्भाग्य का साम्राज्य व्यक्ति विशेष के जीवन में समाहित हो जाता है.

sabar mantra



नवग्रह दोष- व्यक्ति के जन्मसमय में ग्रहों की आधार स्थिति कैसी थी, नक्षत्रों का उस पर क्या प्रभाव पड़ रहा था,किस ग्रह के भुक्तफल को भोगते हुए उसका जन्म हुआ है, उन्नति प्रदायक ग्रहों के कमजोर होने से तथा शत्रु ग्रहों के बलवान होने से, ग्रहों की महादशा,अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा,सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशाओं के स्वामी का उस दशा विशेष में जातक के ऊपर क्या परिणाम होगा,उसे कितनी हानि या लाभ होगा आदि तथ्य इसी प्रकार निर्धारित होते है. अतः इसका ज्ञान भी कुंडली द्वारा किया जा सकता है.


जन्मसमय में ग्रहों की आधार स्थिति कैसी थी, नक्षत्रों का उस पर क्या प्रभाव पड़ रहा था,किस ग्रह के भुक्तफल को भोगते हुए उसका जन्म हुआ है, उन्नति प्रदायक ग्रहों के कमजोर होने से तथा शत्रु ग्रहों के बलवान होने से, ग्रहों की महादशा,अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा,सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशाओं के स्वामी का उस दशा विशेष में जातक के ऊपर क्या परिणाम होगा,उसे कितनी हानि या लाभ होगा आदि तथ्य इसी प्रकार निर्धारित होते है. अतः इसका ज्ञान भी कुंडली द्वारा किया जा सकता है.

तंत्रबाधा दोष – 
आपकी निरंतर उन्नति,परिवार में व्याप्त प्रसन्नता व आनंद को देखकर या किसी शत्रुता के कारण कई ऐसे निकृष्ट कर्म विरोधियों द्वारा आपके विरुद्ध संपन्न कर दिए जाते हैं, जिससे सौभाग्य परिवार और स्वयं से कोसों दूर हो जाता है, तंत्र की ये क्रिया करने में कोई विशेषज्ञता की आवशयकता नहीं होती है,या तो तीव्र तंत्र बल से या फिर तंत्र सामग्रियों का निकृष्ट काल और शक्तियों से योग कराकर पिशाच शक्तियों के द्वारा किसी का भी जीवन तहस नहस किया जा सकता है, क्यूंकि भवन निर्माण में कुशलता और अनुभव की प्रधानता होती है,  जहाँ अंधाधुंध विनाश की बात है वहाँ बिना किसी कुशलता के मात्र आप आंख मूँद कर भी पत्त्थर फेकोगे तो कही न कही तो नुक्सान होता ही है.
  उपरोक्त सात में से कोई भी एक कारण आपके और आपके परिवार तथा स्वजनों के दुर्भाग्य का कारण हो सकता है,आर्थिक रूप से टूटते जाना,पति या पत्नी का विपरीत हो जाना,संतान का गलत मार्ग पर बढ़ना, भ्रमित मानसिकता से गलत निर्णयों का उत्पन्न होना, गर्भपात या गर्भ का ना टिकना, अकाल दुर्घटना, शारीरक व्याधियों तथा रोगों का जन्म,साधना में असफलता, बदनामी, चिडचिडाहट,गलत राह पर अग्रसर होना, मुकदमों में फसे रहना,राज्य द्वारा निरंतर बाधा उत्पन्न करना,अवसाद ग्रस्त होना,निरंतर अवनति तथा दारिद्रय युक्त जीवन जीना आदि उपरोक्त दोषों का ही परिणाम है .
   अब ऐसे में हमें समझ में ही नहीं आता है की आखिर हम उपाय क्या करे,हमें जो जैसा बता देता है हम वैसा ही करते हैं और नतीजा ढाक के तीन पात वाला होता है. क्योंकि जब तक हमें समस्या का मूल कारण ही नहीं पाता होगा तब तक उसका उचित समाधान नहीं किया जा सकता है, क्यूंकि पेटदर्द की औषधि से गले का दर्द तो ठीक नहीं किया जा सकता है.

किन्तु अवधूतेश्वर कालेशचिंतामणि साबरी प्रयोग के द्वारा उपरोक्त सातो स्थितियों पर पूर्ण नियंत्रण पाया जा सकता है ,वस्तुतः ये मंत्र उन बीज मन्त्रों के द्वारा निर्मित हुआ है जिनसे सभी प्रकार के दोषों का नाश होता है,शिवरात्रि से होली तक इस प्रयोग को करने पर तीव्रता से लाभ प्राप्त किया जा सकता है अन्य दिवसों में ये साधना २१ दिन की होती है, रात्री के १०.३० से १२.४५ तक नित्य इसका जप किया जाता है ,इस साधना में कोई विनियोग या ध्यान नहीं किया जाता है,दक्षिण दिशा की और मुख करके काला आसन पर बैठ कर,काले वस्त्रों को धारण कर सामने बाजोट पर काला वस्त्र बिछाकर उसपर पारद शिवलिंग या कोई भी चैतन्य शिवलिंग की स्थापना स्टील पात्र में की जाये और सर्वप्रथम सदगुरुदेव,भगवान गणपति, भगवान भैरव और भगवान अघोर का पूजन कर उनसे इस साधना में सफलता की प्रार्थना तथा आज्ञा ली जाये, शिवलिंग के बाएं तरफ तेल का दीपक स्थान होगा तथा दाहिने तरफ ताम्रपात्र में जल का कलश स्थापित होगा.उस ताम्रपात्र में जो जल भरा जायेगा वो सभी सदस्यों के द्वारा स्पर्श किया हुआ होना चाहिए,अर्थात सभी परिवार के सदस्य उसमे पूर्ण स्वच्छ होकर थोडा थोडा जल डालेंगे तथा पूर्ण बाधा नाश की प्रार्थना करेंगे.
इसके बाद साधक शिवलिंग का पूर्ण पूजन करे,अर्थात अक्षत,पुष्प,धुप दीप,भस्म,तिल के लड्डुओं के नैवेद्य द्वारा पूजन करे ,तथा काले हकीक,रुद्राक्ष माला द्वारा ७ माला निम्न मंत्र का जप करे,प्रत्येक माला की समाप्ति पर काले तिल,कालीमिर्च,सरसों और लौंग अर्पित कर दे.

|| ॐ पिशाचि पर्णशबरि सर्वोपद्रवनाशनि स्वाहा ||


इस मंत्र के बाद पूर्ण स्थिर चित्त होकर माला को धारण कर पुनः उपरोक्त सामग्री को निम्न मंत्र के साथ धीरे धीरे बिना किसी माला के जप करते शिवलिंग पर चढाते रहे,लगभग ४५ मिनट तक ये क्रिया करनी है .   


|| ॐ ह्लौं ग्लौं क्लीं ग्लीं ॐ फट ||


इसके बाद फिर से पहले वाला मंत्र ७ माला जप करते हुए सामग्री चढाएं. नित्य यही क्रम करना है,प्रतिदिन सामग्री को अलग कर पास में एक मिटटी का पात्र रख उसमे डाल दे, जप काल में शरीर का तापमान बढ़ जाता है,सर दर्द करता है,साधना के प्रति उपेक्षा का भाव आता है,कंपकपी तथा पसीना तीव्रता से निकलता है,भय लग सकता है.ऐसा लगता है जैसे कोई और साथ में वहाँ पर है.यदि हम शिवरात्रि से ये प्रयोग करते हैं तो मात्र ७ दिन का ही ये प्रयोग है, जो भी सामग्री ७ दिनों में इकट्ठी हुयी हो उसे उसी काले कपडे में बाँध कर जप माला तथा नैवेद्य के सभी लड्डुओं समेत होली की रात्रि में होलिकाग्नी में दक्षिण की और मुह कर डाल दे, साथ ही कुछ दक्षिणा अर्पित कर दे. यदि आप अन्य दिवसों में साधना कर रहे हैं तो २१ वे दिन किसी वीरान जगह पर अग्नि प्रज्वलित कर दक्षिण मुख हो कर ये सामग्री डाल दे. जैसे ही हम सामग्री को अग्नि में अर्पित करते हैं तो चीत्कार और कोलाहल सा सुनाई देने लगता है,घर आकर स्नान करतथा कलश में जो जल है वो पूरे घर और सभी सदस्यों पर छिड़क दे,तथा अगलेदिन ३ कन्याओं तथा एक बालक को भोजन कराकर दक्षिणा देकर तृप्त कर दें. इस प्रकार ये अद्विय्तीय प्रयोग पूर्ण होता है. सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त ये प्रयोग मेरा खुद का अनुभूत है और इससे तीव्र प्रयोग मैंने अभी तक नहीं देखा है. इसका लाभ मैंने उठाया है,अतः आप सभी भी इस प्रयोग से लाभ ले सकते हैं.


गुरूजी - + 91 9207283275