गणपति दुर्लभ मंत्र |कार्य सिद्धि |Remove Nigativity

 

- गणपति दुर्लभ मंत्र -

{ कार्य सिद्धि एवं नकारात्मक का नाश करे }

Remove Nigativity

 - गणपति की पौराणिक कथा -

- जय महाकाल -



नमश्कार दोस्तों आज आपके लिए विघ्नो के नाश के लिए एवं नकारात्मक हटाने की गणेश शाबर मंत्र की साधना प्रस्तुत कर रहा हूँ | उससे पहले गणेशजी के बारे में थोड़ा सज्ञान ले 

प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में गणेश जी को "बुद्धि, विवेक, ज्ञान और विघ्नों के नाशक देवता" के रूप में पूजा जाता है। उनके अनेक पौराणिक प्रसंगों में एक अत्यंत प्रसिद्ध कथा है, जो ज्ञान की महत्ता को दर्शाती है।

एक बार देवताओं के बीच यह निर्णय लिया गया कि ब्रह्मांड की परिक्रमा कर यह साबित किया जाए कि कौन अधिक तेज, बलवान और ज्ञानी है। शिव-पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों — कार्तिकेय और गणेश को यह चुनौती दी कि जो सबसे पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर लौटेगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा।

कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल पड़े। वे विभिन्न लोकों, ग्रहों और तारों की परिक्रमा करने लगे। वहीं गणेश जी ने कुछ देर सोचकर अपने वाहन मूषक पर बैठ माता-पिता शिव और पार्वती की सात बार परिक्रमा की। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो गणेश ने उत्तर दिया — "मेरे माता-पिता ही मेरा संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। उनकी परिक्रमा करना ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के बराबर है।"

शिव और पार्वती इस उत्तर से अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश को विजेता घोषित कर दिया। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि भविष्य में सभी कार्यों के आरंभ में गणेश की पूजा की जाएगी, ताकि कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण हो।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि केवल बाह्य बल या गति ही नहीं, अपितु आंतरिक ज्ञान, श्रद्धा और विवेक भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। गणेश जी ने हमें यह सिखाया कि समस्या का समाधान बाहरी प्रयासों से नहीं, अपितु समझदारी और सही दृष्टिकोण से निकलता है।

इसलिए वे "प्रथम पूज्य" कहलाते हैं, और विद्यार्थियों व बुद्धिजीवियों के आदर्श माने जाते हैं। गणेश चतुर्थी, उनकी पूजा का विशेष पर्व, इसी ज्ञान और बुद्धि की महत्ता का उत्सव है।


-गणपति की साधना कैसे करे इस विषय की विशेष गुप्त दुर्लभ मंत्र साधना -

( गणपति शाबर मंत्र (Ganpati Shabar Mantra )

"ॐ नमो आदिदेव गणपति, नमो नमः।

भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी भाग जावें।

कार्य सिद्धि करावें, विघ्न हरावें।

ॐ गं गणपतये नमः।

श्रीं ह्रीं क्लीं, वक्रतुंडाय हुम् फट् स्वाहा॥"

-विधि -

 श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रतिदिन प्रातः स्नान कर गणेश जी के चित्र या मूर्ति के सामने बैठें।

एक आसन पर बैठकर इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

धूप, दीप, मोदक या कोई मीठा भोग अर्पित करें।

यह मंत्र विशेष रूप से नकारात्मक ऊर्जा हटाने और कार्य सिद्धि के लिए उपयोगी है।

इस मंत्र को नित्य सुबह शाम जपने से दुखो का नाश हो कर जीवन में धीरे धीरे परिवर्तन अपेक्षित हैं अपितु श्रद्धा और भाव महत्व पूर्ण हैं | 

{ गुरु द्वारा लिया हुआ और जपा हुआ मंत्र अति जल्द रूप से कार्य करता हैं }


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भैरव साधना का गुप्त रहस्य | shatru ka Aant

 

-भैरव साधना का गुप्त रहस्य कुछ ही दिन  में शत्रु से छुटकारा -



- जय महाकाल मित्रो  

एक ऐसा तांत्रिक प्रयोग,जिसमें न तो किसी विशेष पूजा-पाठ की ज़रूरत है, न माला की,न किसी विशेष यन्त्र की । बस... श्रद्धा चाहिए, धैर्य चाहिए और हिम्मत की आवशकता भी जरुरी हैं ।जी हां, सिर्फ एक घंटे का प्रयोग..और फिर देखिए कैसे आपका शत्रु आपकी राह छोड़ देता है,जो आपके मार्ग में कांटे बिछा रहा था, वो खुद हट जाएगा।जो आपको मानसिक रूप से परेशान कर रहा था, वो शांत हो जाएगा।यह प्रयोग है  काल भैरव जी का।  भैरव: समय के स्वामी हैं । भैरव: रक्षक भी हैं और ,संहारक भी।और जब शत्रु परेशान करने पर उतर आए, तो काल भैरव का नाम ही काफी है!

साधना में सामग्री क्या चाहिए? लिख लीजिये ..ना मंदिर की घंटी, ना शंख, ना भव्य पूजा की ज़रूरत।बस ये कुछ सामान,  चार चीजें ले आइए:

४  काली मिर्च के दाने, ४  साबुत उड़द के दाने, लाल रंग की स्याही या कुमकुम में जल घोल के  सफेद कागज (या भोजपत्र) इसके अलावा, यदि संभव हो तो सामान्य पूजा सामग्री जैसे अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक भी रख लें  ताकि साधना को बल मिले। 

{ इस प्रयोग का सर्वोत्तम समय है }

शनिवार की रात्रि, विशेषकर १०  बजे से २  बजे के बीच  यानी महानिशा काल।और नहीं तो, संध्या के बाद किसी भी समय कर सकते हैं। पर ध्यान रहे  यदि अमावस्या का योग हो , तो उस दिन यह प्रयोग और भी ज़्यादा प्रभावशाली हो जाता है।

 दिशा कौन-सी हो? दक्षिण दिशा में मुख करके बैठना है। क्योंकि जब शत्रु नाश की बात होती है,जब किसी की बुरी नजर, बुरी सोच से मुक्ति पानी होती है,तो दक्षिण दिशा ही वह दिशा है जहाँ काल भैरव की शक्ति सबसे तीव्र होती है।

 प्रयोग की विधि:-

एक शांत, एकांत कमरे में दक्षिण की ओर मुख करके बैठें।सामने दीपक जलाएं — सरसों के तेल का।

कागज पर अपने शत्रु का नाम लाल स्याही  या सिन्दूर से  लिखें। एक से अधिक हो तो सबके नाम लिखिए।

उस कागज या भोज पत्र  पर ४  काली मिर्च और ४ उड़द के दाने रखें। ध्यान से बैठ जाइए... कुछ क्षण आँखें बंद करें...

ध्यान करें , गुरु गणेश  कुलदेवता, पितृदेव, स्थान देवता।फिर शिव-पार्वती और काल भैरव का ध्यान करें।

अब करें  - गुरु मंत्र: ध्यान   जो आपको आता  हो  या  नहीं है तो | ॐ नमः शिवाय का जाप करे 


🕉️ अब मूल मंत्र का जाप करें  एक घंटे  तक लगातार:


 मंत्र - काल भैरव 

ॐ नमः काल भैरव कालिका तीर मार तोड़, वैरी की छाती तोड़ हाथ।

काल जो काढ़े बती सी यदि यह काज न करे।नोखनी योगिनी का तीर छूटे।

मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, पुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।


 इस मंत्र को पहले याद कर लें, फिर त्राटक करते हुए लगातार आधे घंटे तक  इसका जाप करें  बिना माला के।

 जप के बाद भैरव जी को प्रणाम करें, उनसे क्षमा मांगें और विनती करें "हे भैरव देव, मेरा शत्रु शांत हो जाए, मुझे कष्ट देना बंद करे।"

जो सामग्री (कागज + दाने) आपने रखी है, उसे एक कपड़े या कागज में बांध दें।वहीं दीपक के पास छोड़ दें।

अगले दिन रविवार सुबह, उस पुड़िया को घर से बाहर ले जाकर जला दें।अगर संभव हो तो कपूर डालें या गड्ढा खोदकर अग्नि में विसर्जित करें।

इस प्रयोग को  कम से कम ५  शनिवार अधिकतम ७  शनिवार आप देखेंगे, जैसे-जैसे यह प्रयोग आगे बढ़ेगा, शत्रु की शक्ति कमज़ोर पड़ती जाएगी।बाधाएँ हटती जाएँगी।और आप आत्मबल से भरपूर हो जाएँगे।यह प्रयोग केवल न्याय के लिए करें,किसी को अनावश्यक नुकसान पहुँचाने की भावना से न करें नहीं  तो आपका ही नुक्सान होगा  इसके लिए हमारा माध्यम जिम्मेदार नहीं होगा । अपने जोखिम पर प्रयोग करे 

आपकी भावना जितनी शुद्ध होगी, प्रयोग उतना ही प्रभावशाली होगा।भैरव जी की कृपा से शत्रु नाश संभव है पर विश्वास, संयम और नियम से की गई साधना ही फल देती है।आपका जीवन शांति, विजय और सुरक्षा से भर जाएगा 

 ऐसे उग्र प्रयोग हमेशा गुरु निर्देश में करें तो ठीक रहेगा सुरक्षा बनी रहेगी | 


परामर्श -   + 91 9207283275 




शाकम्भरी देवी Shakambhari Devi

 

शाकम्भरी देवी  Shakambhari Devi ||

- शाकम्भरी देवी -

 - Shakambhari Devi -

 


शाकम्भरी देवी हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें विशेष रूप से शक्ति पूजा में सम्मानित किया जाता है। शाकम्भरी देवी का नाम संस्कृत के "शाक"  सब्ज़ी, वनस्पति और "अंभरी" (  वह जो ग्रहण करती हैं ) शब्दों से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "वह देवी जो शाक ( वनस्पति ) को ग्रहण करती हैं"। उन्हें प्रकृति की देवी के रूप में पूजा जाता है, जो पृथ्वी पर जीवन के संरक्षण और उत्थान के लिए जिम्मेदार हैं। वे विशेष रूप से भूख से पीड़ित लोगों को आहार प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं और उनकी पूजा जीवन के समृद्धि और सुख-शांति के लिए की जाती है।


- शाकम्भरी देवी की उत्पत्ति और कथा -

शाकम्भरी देवी के बारे में एक प्रसिद्ध पुराणिक कथा है, जो देवी भागवतम और अन्य ग्रंथों में वर्णित है। इस कथा के अनुसार, एक समय देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध हुआ, जिससे पृथ्वी पर भारी अकाल पड़ गया। जब पृथ्वी पर बुरी स्थिति उत्पन्न हुई और सभी जीव-जंतु भूख से पीड़ित हो गए, तब भगवान शिव ने देवी शाकम्भरी को प्रकट किया। शाकम्भरी देवी ने अपनी शक्ति से धरती पर वनस्पतियाँ और खाद्य सामग्री उत्पन्न की, ताकि जीवों को आहार मिल सके और भूख का नाश हो सके।

उनकी यह कृपा और उनकी शक्ति इतनी बड़ी थी कि वे पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी की भलाई के लिए समर्पित हो गईं। इसके बाद से, शाकम्भरी देवी को अन्न, पोषण और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनके साथ जुड़ी एक और प्रसिद्ध कथा यह भी है कि वे हिमाचल प्रदेश के शाकम्भरी पर्वत पर निवास करती हैं, और यह स्थान उनके भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है।

- शाकम्भरी देवी का रूप -

शाकम्भरी देवी का रूप अत्यंत रमणीय और दिव्य है। उनका स्वरूप साधारणतः एक महिला के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनके शरीर पर वनस्पतियाँ और फल-पत्तियाँ लिपटी होती हैं। उनके हाथों में विभिन्न प्रकार के फल और शाक होते हैं, जो जीवन के पोषण और आहार का प्रतीक हैं। उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कलश होता है, जिसमें शुद्ध जल या आहार सामग्री का प्रतीक होता है। उनके मस्तक पर चंद्रमा का आकार और गहनों से सजा हुआ सिर मिलता है, जो उनके दिव्यता और सामर्थ्य को दर्शाता है।

- शाकम्भरी देवी की पूजा और महत्व -

शाकम्भरी देवी की पूजा विशेष रूप से उन स्थानों पर की जाती है, जहाँ अकाल, खाद्य संकट या किसी प्रकार की कठिनाई आई हो। उन्हें अन्न, जल, और वनस्पतियों के रूप में पूजा अर्पित की जाती है, क्योंकि वे शाकाहारी आहार की देवी हैं और इनका आशीर्वाद समृद्धि और समर्पण की ओर मार्गदर्शन करता है।

शाकम्भरी देवी के मंदिर हिमाचल प्रदेश के शाकम्भरी पर्वत पर स्थित हैं, जहां हर साल बड़ी धूमधाम से उनकी पूजा होती है। इस अवसर पर लोग विशेष रूप से उपवासी रहते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत और अनुष्ठान करते हैं। इसके अलावा, देवी के मंत्रों का जाप भी बहुत फलोंदायक माना जाता है, जो जीवन में शांति, समृद्धि और आन्नद लाता है।

- शाकम्भरी देवी का सम्बन्ध अन्य देवियों से -

शाकम्भरी देवी का संबंध अन्य प्रमुख देवी-देवताओं से भी जोड़ा जाता है। उदाहरण स्वरूप, वे दुर्गा देवी की एक अवतार मानी जाती हैं, क्योंकि वे भी जीवन के संरक्षण और बुराई के नाश के लिए ही प्रकट हुई थीं। इसके अलावा, शाकम्भरी देवी का संबंध प्रकृति की शक्ति से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे पृथ्वी को हर प्रकार के संकट से बचाती हैं और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

- शाकम्भरी देवी के महत्व का समग्र दृष्टिकोण --

शाकम्भरी देवी का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है। उनका अस्तित्व पृथ्वी के संसाधनों की रक्षा, भूखमरी के निवारण, और जीवन के आधारभूत तत्वों की सुरक्षा में दिखाई देता है। वे उन सभी प्राणियों के लिए आश्रय देने वाली हैं, जिन्हें जीवन के लिए पोषण की आवश्यकता होती है। उनके आशीर्वाद से कृषि, वन्यजीव, और पर्यावरण की रक्षा होती है, और जीवन का संतुलन बना रहता है।

शाकम्भरी देवी का पूजा और महिमा जीवन के विकास और प्रगति के प्रतीक हैं। उनकी कृपा से हर प्राणी को जीवन के हर पहलू में समृद्धि मिलती है, चाहे वह मानसिक हो या भौतिक। उनके बारे में प्रचलित कथाएँ और उनके पूजन से यह संदेश मिलता है कि हम सभी को प्रकृति के प्रति आभार और समर्पण का भाव रखना चाहिए, ताकि जीवन में खुशहाली और संतुलन बना रहे।




- श्री शाकम्भरी  कवचम् -

शक्र उवाच -

शाकम्भर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १॥

स्कन्द उवाच -

शक्र शाकम्भरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् ।
कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २॥

अस्य श्री शाकम्भरी कवचस्य स्कन्द ऋषिः ।
शाकम्भरी देवता । अनुष्टुप्छन्दः ।
चतुर्विधपुरुषार्थसिद्‍ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यानम् -

शूलं खड्गं च डमरुं दधानामभयप्रदम् ।
सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकम्भरीमहम् ॥ ३॥

अथ कवचम् -
शाकम्भरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदन्तिका ।
कर्णो रमे नन्दजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४॥

ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीश्च मे मुखम् ।
महासरस्वती जिह्वां चामुण्डाऽवतु मे रदाम् ॥ ५॥

कालकण्ठसती कण्ठं भद्रकाली करद्वयम् ।
हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६॥

नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्वे ममावतु ।
पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७॥

ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदम्बिका ।
जङ्घे मे चण्डिकां पातु पादौ मे पातु शाम्भवी ॥ ८॥

शिरःप्रभृति पादान्तं पातु मां सर्वमङ्गला ।
रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसन्ध्यं पातु मां शिवा ॥ ९॥

गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी ।
राजद्वारे च कान्तारे खड्गिनी पातु मां पथि ॥ १०॥

सङ्ग्रामे सङ्कटे वादे नद्युत्तारे महावने ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्वरी ॥ ११॥

गृहं पातु कुटुम्बं मे पशुक्षेत्रधनादिकम् ।
योगक्षैमं च सततं पातु मे बनशङ्करी ॥ १२॥

इतीदं कवचं पुण्यं शाकम्भर्याः प्रकीर्तितम् ।
यस्त्रिसन्ध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते ॥ १३॥

तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं सन्ततिं सम्पदं च शम् ।
शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४॥

शाकिनीडाकिनीभूत बालग्रहमहाग्रहाः ।
नश्यन्ति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम् ॥ १५॥

सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम् ।
विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकम्भर्याः प्रसादतः ॥ १६॥

आवर्तनसहस्रेण कवचस्यास्य वासव ।
यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७॥

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे स्कन्दप्रोक्तं शाकम्भरी कवचं सम्पूर्णम् ॥



Guruji - +91 9207283275



सोमवती अमावस्या की विशेष साधना उपाय - Somvati Aamavasya Ki Vishesh Sadhna upaay


सोमवती अमावस्या की विशेष साधना उपाय  - Somvati Aamavasya Ki Vishesh Sadhna upaay 


जय महाकाल ।। जय अलख आदेश । 


हिन्दू धर्म शास्र के अनुसार अमावस्या  तिथि का भी बहुत बड़ा महत्व होता है। प्राय सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। अमावस्या किसी भी  महिने  के कृष्ण पक्ष की  सोमवार को जब भी पड़े तब उस योग को सोमवती अमावस्या  मनाई जाती है। इस दिन स्नान और दान करने का बहुत महत्व होता है। सोमवती अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी सरोवर  में स्नान करने और दान करने से अपने रूठे हुए पितृ अनुकूल होकर  उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही हर परेशानी एवं संकट  से छुटकारा मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि सोमवती अमावस्या के दिन किन चीजों का दान करना चाहिए।



विशेष कर सोमवती अमावस्या पर साधको द्वारा चन्द्रमा को अनुकूल किया जाता हैं अगर कोई साधक हैं तो।  वैसे सामान्य व्यक्ति सोमवती अमावस्या पर पितरों को अनुकूल करने के लिए चंद्रमा से जुड़ी चीजों का दान करना चाहिए । इस दिन दूध और चावल का दान कर सकते हैं। ऐसा करने से पितर प्रसन्न  रहते हैं  और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

* अन्य विधि - विशेष महिलाओं के लिए -

दाम्पत्य जीवन के लिए  महिलाओं द्वारा सोमवती अमावस्या का व्रत बहुत ही विशेष  माना गया है हिन्दू पंचांग के गणना अनुसार वर्ष की  पहली सोमवती अमावस्या चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में पड़ती जाती है. इस दिन विवाहित इस्रीया महिलाएं दांपत्य जीवन में खुशहाली की कामना से व्रत रखती है और भगवान शिव व पार्वती को प्रसन्न कर उनका पूजन करती हैं. मान्यता है कि यह व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के  लिए यह व्रत रखा जाता है. 

सोमवती अमावस्या की विशेष पूजा - 

 मित्रो जो व्यक्ति साधारण हो या कोई साधक हो अगर उनके जीवन में अनेको कष्ट आ रहे हो और वे थम ने का नाम नहीं ले रहा हो 

तब श्रद्धा पूर्वक शिव भक्ति सोमवती अमावस्या को करनी चाहिए , इस योग का इंतज़ार करते हुए इस योग में किसी पवित्र नदी में कमर जितने पानी में  स्नान कर डुबकी लगते हुए  श्वास को बंद कर के डुबकी में "हर हर महादेव हर हर गंगे " इस मंत्र का जितने देर तक पानी के अंदर रहते हुए जाप करोगे 

उतना ही शरीर के ऊपर लगा हुआ दोष एवं दुष्ट भार हल्का हो जाता हैं। ( कृपया जिनको पानी से भय लगता हो तैरना न जानते हो वे नदी तट पर ) लोटे से नदी का जल ले कर स्नान करते जप कर सकते हैं उनको पानी में नहीं जाना चाहिए    बाबा भोलेनाथ का माँ गौरी का आशीर्वाद प्राप्त होकर उस व्यक्ति को कुछ ही दिनों में व्यक्ति को परिवर्तन नजर आजाता हैं।  इसमें कोई संशय नहीं इन सर्व विधि विधान के लिए व्यक्ति को दृढ़ विश्वस और अपने इष्ट पर अटूट श्रद्धा भक्ति होनी चाहिए तभी फल अपेक्षित होता हैं।  भौतिक जीवन में आने वाली समस्याओ का निराकरण करने के लिए  गुरु सानिध्य द्वारा भी व्यक्ति  को कष्टों से निदान प्राप्त कराया जा सकता हैं | 

जय महाकाल |  आदेश | 


गुरूजी - +91 9207283 275 


 




वीरभद्र कवच मंत्र Veer Bhadra Kawach Mantra

 

                                                         जय महाकाल || जय अलख आदेश ||    


वीरभद्र कवच मंत्र  Veer Bhadra Kawach Mantra 





|| विनियोग || 

ॐ अस्यश्री वीरभद्र कवच महामंत्रस्य पशुपति ऋषि:

अनुष्टुप् छंदः, श्री भद्रकाळी समेत वीरभद्रो देवता,

ह्रां बीजं ह्रीं शक्ति: क्लीं किलकं, श्री भद्रकाली  समेत 

वीर भद्रेश्वर प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः 


 || ध्यान् || 


रुद्र रौद्रावतारं हुतवहुनयन चोर्ध्वकेशं सुदंष्ट्रं व्योमांगं भीमरुपं किणिकिणिरमसज्वालमाला वृतांगम् |

भूत प्रेताधिनाथं करकमलयुगे खड्गपात्रे वहंतं वंदे लोकैकवीरं त्रिभुवनविनुतं श्यामलं वीरभद्रम् |


|| कवच मन्त्रं || 

|ॐ ललाटं वीरभद्रों व्या – च्चक्षुषी चोर्ब्वकेशबृत् |

भ्रूमध्यं भूतनाथोव्या – न्नासिकां विरविग्रहः ||

कपाली कर्णयुगळं – कंधरं नीलकंधरः |


                                                       वदनं भद्रकाली  शो   – चुबुकं चंद्रखंडमृत् ||

करौ पाशकरः  पातु – बाहू पातु महेश्वरः |


ऊरुस्थलं चोग्रदंष्ट्र – आनंदात्मा हृदंबुजम् ||

रुद्रमूर्ति र्नाभिमध्यं – कटिं मे पातु शुलमृत् |


मूर्धानं पंचमूर्धा व्या – न्निटलं निर्मलेंदुमृत् ||

कपोलयुग्मं कापाली – जिह्वां मे जीवनायकं |


स्वसद्वयं पशुपति – लिँगं मे लिंगरूपधृत् ||

सर्वांगुलीः सर्वनाथो – नखन्मे नागभूषणः |


पार्श्व युग्मं शक्तिहस्तो – सर्वांगं देववल्लभः ||

सर्वकार्येषु मांः पायात् – भद्रकाळीमनोहरः |


ब्रह्मराक्षस पैशाच – भेताळ रण भूमिषु ||

सर्वेश्वरः सदापातु – सर्वदेवमदापहः |


शीतोष्णयो श्चांधकारे – निम्नोन्नतमुविस्थले ||

कंटकेप्वपि दुर्गेषु – पर्वते पि च दुर्गमे |


शस्त्रास्त्रमुख भल्लूक – व्याध्रचोरभयेषु च ||

राजाद्युपद्रवेचैव पायाच्छरभरूपधृत् |


य एत द्वीरभद्रस्य कवचं पठतेन्नरः |

सोडपम्बत्युभयं मुक्त्वा – सुखं प्राप्नोतिनिश्चयम् ||


मोक्षार्थी मोक्ष माप्नोति – धनार्थि लभते धनं |

विद्यार्थी लभते विद्यां – जयार्थि जय माप्नुयात् ||


देहांते शिवसायुज्य – मवाप्नोति न संशयं |

एतत्कवच मीशानि – न चेयं देयं यस्य कस्य चित् ||


सुकुलीनाय शांताय शिवभक्ती रताय च |

शिष्याय गुरुभक्ताय – दातव्यं परमेश्वरी ||


तवसस्नेहा नम्या प्रोक्त – मेत त्ते कवचं महत् |

गोपनीयं प्रयत्नेन – त्वयैवं कुलसुंदरी ||


|| इति आकाशभैरवकल्पे श्री वीरभद्र कवचं नाम चत्पारिंशत् पटलः ||


-इस कवच के पठन से -

धर्म,अर्थ,सुख समृद्धि विद्या तत्त्व 

    एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। 


गुरूजी -  +91 9207283275 




गुप्त शिव शाबर मंत्र Gupt Shiv shabar mantra


|| जय महाकाल ||  


गुप्त शिव शाबर मंत्र - Gupt Shiv shabar mantra 




Gupt shiv shabar mantra

शिव कौन हैं कहाँ से आये कैसे इनकी उत्पत्ति हुई ऐसा प्रश्न किसी किसी साधक के मन में अवश्य उपस्थित होता होगा, जो सच्चा शिव भक्त  या शिव साधक हो तो अवशय ये प्रश्न मन में आता ही होगा और आना भी चाहिए जो भगवान शिव से प्रेम करते हैं क्यों न उनमे उत्कंठा बढे आज उनके विषय में कुछ ज्ञान विचार विमर्श करते हैं मित्रो शिव एक शक्ति हैं एक सृष्टि हैं जिसे न अब तक साधारण व्यक्ति जान पाया हैं जो उनके भक्ति में लीन हुए सिद्ध हुए वे शिव तत्त्व को प्राप्त हुए वोही जान पाए परन्तु उन्होंने जानने के बाद उनका रहस्य अपने मन मस्तिष्क में ही रख कर लुप्त हो गए ऐसे सिद्ध महापुरुषों को मेरा नमन कुछ सिद्ध पुरष हमारे बिच हुए वे भी जानते हैं पर जानने के बाद रहस्य की भांति उसको गुप्त रखने में ही भलाई समझते हैं|| तो मित्रो शिव को जानना हैं तो उनके भक्ति में लीन होकर उनका आभास कीजिये दिव्य और दुर्लभ अनुभव अवश्य करेंगे ये सत्य हैं। शिव के बारे में कुछ संक्षिप्त में जानते हैं शिव यह ब्रम्हांड के आदि देव महादेव कहलाते हैं वोही आदि हैं और वोही अनादि अनंत हैं जिसका कोई छोर नहीं हैं कहाँ तक उनका विस्तार हैं स्वयं देवता गण भी नहीं जानते | शिव यानि सृष्टि का कल्याण करने वाले शिव भगवान ये स्वयंभू हैं जिन्हे किसी ने निर्माण नहीं किया उनका स्वरुप निराकार और निरामय हैं वे कई आदि अनादि काल से सृष्टि में विचरण करते हुए स्थिर हैं कितनी सादिया बीत गयी परन्तु शिव अपने योग ध्यान में व्यस्त और सृष्टि का सृजन करने में लगे हुए हैं | साधक मित्रों शिव के बारे में जानने के लिए यह मेरा लेख भी काम पद जायेगा | चलते हैं शिव के बनाये हुए दिव्या मन्त्रों के बारे में , वैसे शिव जी के कई मंत्र हैं उनमे से प्रचलित मंत्र कलयुग में जो देवताओं को दुर्लभ हैं और मानव जीवन का कल्याण करने वाला मंत्र यह इस प्रकार हैं || 

|| ॐ नमः शिवाय || 

 इस मंत्र को नित्य पूजन में रखिये कोई संख्या निश्चित न हो तब भी साधक को आत्मिक शांति  अवश्य प्राप्त होगी कोई विशेष विधि विधान न हो बस पवित्र हो कर पवित्र मन से चलते फिरते शिव  मन्त्र को रटते रहिये एक वर्ष में चमत्कार स्वयं ही देखे इस मन्त्र के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं सबके बाप गुरु शिव स्वयं ही हैं बस अंतर मन से जाप कीजिये फिर देखिये कमाल बाबा का जीवन चमत्कारों से भर जायेगा बस धैर्य और जिज्ञासा होनी चाहिए 

दूसरा मंत्र हैं  महामृत्युंजय जिसका कोई तोड़ नहीं यह मंत्र अपने आपमें दवा हैं हर दुःख दर्द का तकलीफ का इलाज इस मंत्र में हैं बाबा स्वयं बैद्य हैं बारह ज्योतिर्लिंग में बाबा को बैद्यनाथ कहा गया हैं चार वेदों में से यजुर्वेद में उनका विशेष योगदान हैं सारी जड़ी बूटियों के निर्माता भी शिव ही हैं | 

- महामृत्युंजय मंत्र -

||  ॐ त्र्ययम्बकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम 
उर्वारुकमिव बंधनान मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ||
 

यह मंत्र साक्षात काल को हरने वाला और जीवन दान देने वाला मंत्र हैं  मृत्यु भय को काटने वाला हर भय से मुक्त कराने वाला चमत्कारी मंत्र हैं दैत्यराज शुक्राचार्य को यह मंत्र शिवजी ने प्रदान किया था जिससे दैत्य राक्षस भी इस मंत्र से पुनर्जीवित हो जाते थे ऐसे अपने भोले शिव थे जिनमे कोई भेद भाव नहीं था जो उन्हें भजता वो उनको वरदान दे देते थे ||  चाहे वो देव हो या दानव सबके प्रिय देवता हैं शिव || 

 इस मंत्र से अकाल मृत्यु ,भय,क्रुरु काल भय,ग्रह पीड़ा पितृ पीड़ा रोग दोष आधी व्याधि श्राप ताप भूत प्रेत,बाधा दुष्ट ग्रहों की पीड़ा इत्यादि क्या नहीं ठीक होता? हर चीज का इलाज इस मंत्र में हैं चौरासी लाख योनि पीड़ा से मुक्त हो कर व्यक्ति जन्म मृत्यु के फेरे से निकल कर शिवत्व को और मोक्ष को प्राप्त हो जाता हैं  बस इसे अपने जीवन में उतार लीजिये नित्य इस मंत्र का जाप पूजन में किजिए अगर आपने एक वर्ष में या उससे पहले सवा लाख जाप पूर्ण कर अनुष्ठान कर लिए तो साधक दोस्तों साधना क्षेत्र में आपको कोई पराजित नहीं कर सकता।  परन्तु चित्त शुद्ध निर्मल पवित्र  और परोपकार की भावना आप में होनी चाहिए तभी इस वर की अपेक्षा कीजिये | 

जो साधक अघोर साधना में रूचि रखते हैं वे निम्न मंत्र का जाप कीजिये यह जाप विशेष नियम के अंतर गत कीजिये अपने गुरु से आज्ञा ले कर जाप को करें || 


shiv shabar mantra

|| औघड़ शिव मंत्र || 


|| ॐ ह्रां ह्रीं हूं अघोरेभ्यो सर्व सिद्धि देहि देहि अघोरेश्वराय हूं ह्रीं ह्रां ऊँ फट्ट ||
 


-विधान -

 इस मंत्र को विशेष काली चौदस अमावस पक्ष में शमसान में या शून्य शिवालय में आसन के मध्य चिता की भस्म बिछा कर उस पर बैठ कर मध्य रात्रि में पूर्व की और मुख कर के नित्य २१०० जाप करे जाप से पूर्व अपना शरीर  बंधन अवश्य करे ऐसा अष्टमी तक करे अंत में हवन की दशांश आहुति इस मंत्र से करे साधना में काले वस्र त्रिशूल पूजन अवश्य करे||  या शमशान के शिवालय में शिवलिंग को  पंचामृत से स्नान करा के शिव को लड्डू का भोग धर के पञ्चोपचार पूजन दे कर साधना सम्पूर्ण होने का  संकल्प कहे पश्चात साधना में बैठ सकते हैं यह साधना तामसिक विधान से भी किया जा सकता हैं पर यहाँ तामसिक विधान वर्जित हैं || इस साधना से साधक के सर्व कार्य सफल होते हैं शिव की कृपा प्राप्त होती हैं || साधक जनकल्याण करे जीवन सुलभ हो जायेगा || 

यह साधना जानकारी के उद्देश्य से यहाँ दी जा रही हैं बिना गुरु निर्देश के यह साधना ना करे अन्यथा आपके हानि के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे || 

||  जय महाकाल || 


गुरूजी - + 91 9207283275 




Mata Meldi Sadhna माता मेलडी साधना

 

- जय महाकाल -


 माता मेलडी साधना - Meldi ki siddhi


meladi mata

जय महाकाल मित्रो , माता मेलडी की ज्यादा तर पूजा गुजरात प्रान्त में की जाती हैं , माँ की उत्पत्ति कामरूप कामख्या में कार्य रत होते हुए वहां असुरों का नाश करने के लिए माँ को भेजा गया था |  प्राचीन कथा के अनुसार देवताओं पर अमरूवा नामक एक दैत्य द्वारा अत्याचार किया जा रहा था वोह परास्त नहीं हो पा रहा था अमरूवा दैत्य के अत्याचार से पिडित  देवताओं ने माँ भगवती,चामुंडा दुर्ग ,काली ,महाविद्याओं का आवाहन किया देवियों ने दैत्य के साथ घनघोर युद्ध करके उसको परेशान कर दिया, कई वर्षों तक युद्ध चला दैत्य स्वयं को पराजित होता  देख भागने लगा भागते भागते उसे एक मृत गौ का पिंजरा पड़ा हुआ दिखा उसमे छुप गया मृत गाय अशुद्ध होने के कारन उसे छुपने का मौका मिला। अब उस अशुद्ध पिंजरे में देवताओं को घुस कर उसे निकालना कुछ ठीक नहीं लगा , तब देवियां चिंतिति हो कर हाथ मलने लगी मलते हुए  जो मेल  हाथ से निकला तब देवियों ने आवाहन किया ,तब उस मेल से महाआदिशक्ति प्रगट हुई तब  वो देख दैत्य भागने लगा और एक सरोवर में किसी जिव के अंदर छुप गया माँ ने उस सरोवर में घुस कर दैत्य का संघार कर दिया  देवी कन्या के रूप में प्रगट हुई  जब देवी ने उत्पत्ति का कारन पूछा तब उनके शक्तयों का परिक्षण करने के लिए उन्हें महाशक्तियों ने कामरूप कामाख्या भेज दिया ,जहाँ पर अघोरी जादू टोना , काली मैली विद्या का प्रयोग होता हैं , अगर वोह देवी वहां से जीत कर लौटती हैं तब उनके कार्यों के अनुसार उनकी शक्तयों की परीक्षा होगी ऐसा देवताओं ने कहाँ , कामाख्या में मूल द्वार पर मसान का पहरा था माता ने उसको खाक कर दिया ,जब माता ने देखा यहाँ तो सब मैली कुचैली विद्या बसी हुई हैं तब सारी मैली विद्या को लपेट कर उसका तरल बना कर बोतल भर के बहार ले आयी तब देवताओं ने माता के जय घोष लगाए |  माता ने मैली विद्याओं का नाश कर उन्हें बंधन बना कर विजय पाया तब माता का नाम हाथ के रगड़ें मेल से उत्पन हुआ इसी लिए माता का नाम मेलडी कहा गया , इस तरह माता की उत्पत्ति हुई ,  मेलडी माता का  कोई विशेष सिद्ध पीठ नहीं हैं , जहाँ अधिक प्रमाण में माता की पूजा गुजरात , प्रान्त , कामाख्या , उज्जैन में की जाती हैं | जो तंत्र में प्रचलित हैं | 


- मेलडी माता मंत्र -

१ )  ॐ क्लीं मेलडिये नम 

  २ )  मंत्र -

 मैय्या मेलडी हाजिर होना चंडी भंगी का काम करना 

  लक्ष्मी रूठी , माया टूटी ,बधी बर्बादी  तू संभालना 

गोरख ने किया मच्छन्दर पाया तब मेलडी ने बताया 

किसी मंगलवार या रविवार को प्रातः काल उठ कर एक बाजोट पर लाल कपडा बिछा कर चावल की ढेरी  पर माता की प्रतिमा या फोटो रख दे तेल का दीपक जलाएं, धुप गूगर, अगरबत्ती धरे कुछ मकई के दाने और कुछ मीठा भोग में रखे आसन पर बैठ कर नित्य माता का दिया हुआ मंत्र यथा शक्ति जपते रहे  इससे मा मेलडी की कृपा होगी और कार्य बनने लगेंगे, माँ की साधना तामसिक या सात्विक भाव से कर सकते हैं साधना शुरू करने से पहले काले बकरे को गुड़ चना खिला सकते हैं कम से कम २१ दिन तक लगातार साधना करने से माँ मेलड़ी की क्रिपा प्राप्त होती हैं धन सम्बंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं, अगर किसी साधक ने गुरु से दीक्षा ले लिया हो तो जल्द सफलता मिलती हैं अगर नहीं ली हो तो अनुभव होने में समय भी लग जाता हैं | वैसे माँ मेलडी उग्र शक्तियो की देवी हैं तो साधना गुरु निर्देश में करे तो अधिक बेहतर होगा | 


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