“नौनाथ कृपादृष्टि साधना मंत्र



- जय महाकाल ।। जय अलख आदेश - 




नौनाथ कृपादृष्टि एवं सुखी संसारिक साधना मंत्र




 अति  प्राचीन काल से चले आ रहे नवनाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथजी  ने  इस सम्प्रदाय की नीव पृथ्वी पर रखी  ..  गोरखनाथजी  ने इस सम्प्रदाय के विस्तार और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण कर उसका प्रसार भी किया..। गुरु और शिष्य परंपरा  को तिब्बती में नाथ सिद्धों को महासिद्धों के रूप में जाना जाता है।
परिव्राजक का अर्थ होता है घुमक्कड़ रमत करना  । नाथ योगी  संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं।.. हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध भी  कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे सैली कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' भी  कहते हैं।
इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं.. । नाथ योगी  अलख ( अलक्ष ) शब्द से शिव का ध्यान करते हैं.. । वे दूसरे का  परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है... । 


नवनाथ मंत्र -

ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।


संपर्क - 09207 283275



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