जय महाकाल |अलख आदेश
-दत्तात्रेय भगवान का गुरु मंत्र स्तोत्र - Guru Mantra
- विधान -
|| जय अलख आदेश जय अलख निरंजन ||
अगर किसी साधक को जीवन में मार्ग नहीं मिल रहा साधना में सफलता नहीं मिल रही गुरु नहीं मिल रहे बहोत कष्ट झेलने पड रहे हैँ मानसिकता बिगड़ रही हैं ग्रह पीड़ा तकलीफ दे रही हैं जीवन उद्देश्य समझ नहीं आरहा निराशा बढ़ जाती हैं क्या करे क्या ना करे ऐसे में उस साधक को उक्त दिए गए दत्तात्रेय गुरु मन्त्र स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए | जंगल में या घर के एकांत स्थान में प्रातः काल में सूर्योदय के समय गोबर के कंडे के ऊपर थोड़ा सा कपूर जला कर जला ले और उस पर थोड़ी थोड़ी मात्रा में गूगल की धुनि करते करते इस गुरु मन्त्र के नित्य ११ , या २१ पाठ, ११ दिन तक शुद्ध भाव से करें तो अवश्य ही कष्टों से मुक्ति मिल कर निसंशय मार्ग मिल जाता हैं |
इसमें साधक भाव और चित्त शुद्ध होना अनिवार्य हैं भगवान दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त होती हैं
-गुरु मंत्र स्तोत्र -
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुव्य साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥४॥
चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५॥
सर्वश्रुतिशिरोरत्नसमुद्भासितमूर्तये ।
वेदान्ताम्बूजसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥
चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतोनिरञ्जनः ।
बिन्दूनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥७॥
ज्ञानशक्तिसमारूढस्तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मेन्धनविदाहिने ।
आत्मञ्जानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥९॥
शोषणं भवसिन्धोश्च प्रापणं सारसम्पदः ।
यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१०॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥११॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१२॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१३॥
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुंतं नमामि ॥१४॥
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