जय महाकाल -
शनि साढ़े साती ख़त्म करें वज्र पंजर कवच -
Shani saade Sati Khatm karen -
जय महाकाल मित्रो। .. वज्र पंजर क्या हैं.. ये सुनकर आप भी सोच में पड गए होंगे इसके बारे में आपको आज अवगत कराएँगे
जब किसी व्यक्ति पर शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती का दौर शुरू होने पर जो मिलने वाले कष्टों को दूर करने के बहुत से उपाय हैं जिनमें से कुछ उपायों के करने मात्र से अवश्य ही कष्टों से लाभ मिल जाता है... उनमे से कुछ प्रयोग आज हम आपको यहाँ पोस्ट में बता रहे हैं। . उनमे से एक उपाय हैं शनि वज्र पंजर
vajra kavach |
गोचर का शनि जब चंद्र राशि से एक भाव पहले भ्रमण करना शुरु करता है तब जातक की शनि की साढ़ेसाती का आरंभ होता है. साढ़ेसाती का अर्थ है – साढ़े सात साल अर्थात जन्म चंद्र से एक भाव पहले, चंद्र राशि व चंद्र राशि से एक भाव आगे तक के शनि के भ्रमण में पूरे साढ़े सात साल का समय लगता है क्योंकि शनि एक राशि में ढ़ाई साल तक रहता है. इस साढ़ेसाती में जातक को कई बार मानसिक व शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है लेकिन शनि की साढ़ेसाती सदा बुरी नहीं होती है.
शनि की साढ़ेसाती व्यक्ति को कैसे फल प्रदान करेगी यह व्यक्ति की जन्म कुंडली के योगों पर निर्भर करेगा. जन्म कुंडली के योगों के साथ दशा/अंतर्दशा किस ग्रह की चल रही है और दशानाथ कुंडली के किन भावों से संबंध बना रहा है आदि बहुत सी बातें शनि की साढ़ेसाती के परिणाम देने के लिए देखी जाती है. जन्म कुंडली में शनि महाराज स्वयं किस हालत में है, शनि कुंडली के लिए शुभफलदायक हैं अथवा अशुभ फल देने वाले हैं और शनि किन योगों में शामिल हैं अथवा नहीं है, पीड़ित है अथवा नहीं है आदि बातें शनि के लिए देखी जाती हैं. इनके अलावा और भी बहुत सी बातें हैं जिनका विश्लेषण करने के बाद ही शनि की साढ़ेसाती का फल कहना चाहिए.
जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि चौथे अथवा आठवें भाव में गोचर करता है तब शनि की ढ़ैय्या आरंभ होती है. ढ़ैय्या अर्थात ढ़ाई साल का समय. जन्म कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करने के बाद ही शनि की ढैय्या का प्रभाव बताना चाहिए. यह अच्छी अथवा बुरी तब होगी जब कुंडली में समस्याएँ होगी. शनि की साढ़ेसाती अथवा ढ़ैय़्या जब चलती हैं तब में जीवन में बदलाव अवश्य आता है और यह बदलाव अच्छा होगा या बुरा होगा ये आपकी जन्म कुंडली तय करती हैं क्योंकि अच्छी दशा के साथ शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती बुरी साबित नहीं होती है लेकिन यदि कुछ अशुभ भाव अथवा अशुभ ग्रह की दशा चल रही हो तो व्यक्ति को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
व्यक्ति को इन सब परेशानियों से बचने के लिए शनि देव को सदैव प्रसन्न रखना चाहिए जिससे शनि देव के कू दृष्टी का प्रभाव से बचा जा सके। .. . शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती के समय शनि का दान करना , मंत्र जाप, पूजन आदि करने से काफी राहत मिलती हैं... इंसान का जीवन सरलता से चलने लगता हैं। . शनि को शांत रखने के लिए शनि के बीज मंत्र की कम से कम तीन माला का जाप अवश्य कर लेना चाहिए और मंत्र जाप से पूर्व संकल्प करना जरुरी होता है. बीज मंत्र के बाद शनि स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक होता हैं। ..
बीज मंत्र – “ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिचराय नम:”
- शनि स्तोत्र –
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च
नम: कालाग्नि रुपाय कृतान्ताय च वै नम:
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदरे भयाकृते
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेsथ वै नम:
नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट्र नमोsस्तुते
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निक्ष्याय वै नम:
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोsस्तु ते
सूर्यपुत्र नमस्तेsस्तु भास्करेsभयदाय च
अधोदृष्टे: नमस्तेsस्तु संवर्तक नमोsस्तु ते
नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोsस्तुते
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेsस्तु कश्यपात्मज – सूनवे
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध – विद्याधरोरगा
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:
जब भी अमावस्या पड़े या शनिवार के दिन अमावस्या पड़ रही हो उस दिन शाम को सूर्यास्त के बाद शनि की विधिवत पूजा कर के मंत्र जाप करना चाहिए और शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
- पक्षियों को दाना डालना चाहिए और सरसों के तेल में अपनी परछाईं देखकर उसका दान करना होता हैं . शनिवार को “शनि वज्र-पंजर कवच” का पाठ अत्यधिक श्रेष्ठ माना गया है.
- शनि वज्र पञ्जर कवच –
विनियोग :-ऊँ अस्य श्रीशनैश्चर-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चर-प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।1।।
-ब्रह्मोवाच-
श्रृणुषवमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महप्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।2।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।3।।
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
नेत्रे छायात्मजः पातु, पातु कर्णौ यमानुजः।।4।।
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
स्निग्ध-कंठस्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।5।।
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा।।6।।
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटि तथा।
ऊरु ममांतकः पातु यमो जानुयुग्म तथा।।7।।
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः।।8।।
फलश्रुति
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रोतो भवति सूर्यजः।।9।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।10।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।11।।
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।12।।
।।श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारद-संवादे शनि-वज्र-पंजर-कवचं संपूर्णम्।।
https://mantraparalaukik.blogspot.in/
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संपर्क - 09207 283 275
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