जय महाकाल
महाविद्या उग्र तारा साबर महासाधना
पश्चिम बंगाल के वीर भूम में में स्थित तारापीठ की काफी मान्यता है। देवी तारा के तीन नयन थे। ऐसा माना जाता है कि यहां देवी तारा के नयन गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। तारापीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। यह स्थान तांत्रिक पीठ के लिए भी जानी जाती है। यहां बड़ी संख्या में देशभर से लोग तंत्र साधना करने पहुंचते है।
इस मंदिर में ही वामाखेपा नाम के एक साधक ने देवी तारा की साधना कर उनकी सिद्धियां हासिल की थी। वैसे सबसे बड़ा शमशान भी तारापीठ में हैं जहाँ तांत्रिक एवं अघोरियों का स्थान बना हुआ हैं
तांत्रिक विद्या के लिए जानी जाती है तारा देवी
माता तारा को तांत्रिक की देवी माना जाता है। तांत्रिक साधना करने वाले तारा माता के भक्त कहे जाते हैं। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा देवी की तंत्र साधना करना सबसे ज्यादा फलदायी माना जाता है।
कौन हैं माता तारा देवी, जिन्हें हिंदू-बौद्ध दोनों पूजते है
भगवान शिव की पत्नी मां पार्वती ने ही मां सती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। माता सती राजा दक्ष की पुत्रीं थी। उनकी बहन थी देवी तारा। तारा एक महान देवी है जिनकी पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों धर्म में होती हौ। तारने वाली कहने के कारण भी माता तारा को तारा देवी के नाम से जाना जाता है।
।। दशमहाविद्या माँ तारा मंत्र ।।
ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्
विधि - विस्तार ---
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