महादेव के महा उपासना के रहस्य
जय बम्म बम्म महाकाल-
जगदगुरु औघड़दानी महादेव। . कालो के काल महाकाल के महापूजा के रहस्य
बाबा महाकाल शिव शम्भू सबको सद्बुद्धि , सौख्य, ऐश्वर्य,सुख , शांति , प्रदान करे। .यही कामना
भगवान शिव को औघड़ दानी कहते हैं। शिव का यह नाम इसलिए है क्योंकि यह जब देने पर आते हैं तो भक्त जो भी मांग ले बिना हिचक दे देते हैं। इसलिए सकाम भावना से पूजा-पाठ करने वाले लोगों को भगवान शिव अति प्रिय हैं। भगवान विष्णु को प्रसन्न करना कठिन भी है और इनसे वरदान प्राप्त करना उससे भी कठिन क्योंकि, यह बहुत ही सोच-समझकर वरदान देते हैं।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या और भोग सामग्री की भी जरूरत होती है जबकि शिव जी थोड़ी सी भक्ति और बेलपत्र एवं जल से भी खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भक्तगण जल और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिव जी को ये दोनों चीजें क्यों पसंद हैं इसका उत्तर पुराणों में दिया गया है।
सागर मंथन के समय जब हालाहल नाम का विष निकलने लग तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे।
लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव जी के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंढ़ी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी।
बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं। शिवरात्रि की कथा में प्रसंग है कि, शिवरात्रि की रात में एक भील शाम हो जाने की वजह से घर नहीं जा सका। उस रात उसे बेल के वृक्ष पर रात बितानी पड़ी। नींद आने से वृक्ष से गिर न जाए इसलिए रात भर बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से शिव जी प्रसन्न हो गये। शिव जी भील के सामने प्रकट हुए और परिवार सहित भील को मुक्ति का वरदान दिया।
जय बम्म बम्म महाकाल
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प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मास शिवरात्रि कहा जाता है। इन शिवरात्रियों में सबसे प्रमुख है फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्री की रात में देवी पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था इसलिए यह शिवरात्रि वर्ष भर की शिवरात्रि से उत्तम है।
महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। इस दिन शिव जी की उपासना और पूजा करने से शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था।
सृष्टि में जब सात्विक तत्व का पूरी तरह अंत हो जाएगा और सिर्फ तामसिक शक्तियां ही रह जाएंगी तब महाशिवरात्रि के दिन ही प्रदोष काल में यानी संध्या के समय ताण्डव नृत्य करते हुए रूद्र प्रलय लाकर पूरी सृष्टि का अंत कर देंगे। इस तरह शास्त्र और पुराण कहते हैं कि महाशिवरात्रि की रात का सृष्टि में बड़ा महत्व है। शिवरात्रि की रात का विशेष महत्व होने की वजह से ही शिवालयों में रात के समय शिव जी की विशेष पूजा अर्चना होती है।
ज्योतिष की दृष्टि से भी महाशिवरात्रि की रात्रि का बड़ा महत्व है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा विराजमान रहता है। चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है। जिससे तामसिक शक्तियां व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगती हैं जिससे पाप प्रभाव बढ़ जाता है। भगवान शंकर की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के प्रभाव से बचाव होता है।
रात्रि से शंकर जी का विशेष स्नेह होने का एक कारण यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के अधिष्ठिता यानी स्वामी हैं। रात्रि भी जीवों की चेतना को छीन लेती है और जीव निद्रा देवी की गोद में सोने चला जा जाता है इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी देवता भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है।
जय बम्म बम्म महाकाल
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शास्त्र कहते हैं कि संसार में अनेकानेक प्रकार के व्रत, विविध तीर्थस्नान नाना प्रकारेण दान अनेक प्रकार के यज्ञ तरह-तरह के तप तथा जप आदि भी महाशिवरात्रि व्रत की समानता नहीं कर सकते। अतः अपने हित साधनार्थ सभी को इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है। इससे सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शिव रात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है एवं चारों पुरूषार्थो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। हो सके तो इस व्रत को जीवन पर्यंत करें नही तो चैदह वर्ष के बाद पूर्ण विधि विधान के साथ उद्यापन कर दें।
व्रतराज के सिद्धांत और पौराणिक शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं, परन्तु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आरंभ एवं निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिवरात्रि का व्रत होता है।
समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण पूजा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है।
इससे व्यक्ति जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है। इस लोक में सुख भोगकर व्यक्ति अन्त में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। जीवन पर्यन्त इस विधि से श्रद्धा विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोक इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं।
यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सांयकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जनों के अलावा सन्यासी लोगों के लिए महारात्रि की साधना एवं गुरूमंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है।
अपनी गुरू परम्परा के अनुसार सन्यासी जन महारात्रि में साधना करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदात्री होती है। इस समय में किए गए दान पुण्य शिवलिंग की पूजा स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है। इस सिद्ध मुहूर्त में पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल या कार्यालय में स्थापित करने से घर परिवार व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है। परमदयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। अटके हुए मंगल कार्य सम्पन्न होते है....कन्याओं की विवाह बाधा दूर होती है।
अगर आप भक्त है शिवजी के , अगर आप शिवजी के मूल मंत्र का जप करते हैं, अगर आप शिव कृपा प्राप्त करने के इच्छुक है , अगर आप शिवजी के पंचाक्षरी मंत्र को जपने की विधि जानना चाहते हैं तो ये लेख आपको जानकारी देगा.
जीवन को सफल बनाने के लिए एक बहुत ही अच्छा तरीका है और वो है मंत्र साधना, मंत्र तो अनेक है परन्तु भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र की महीमा अपरम्पार है, इसका जप कोई भी कभी भी बिना संकोच के कर सकता है.
भगवान् शिव जीवन और मृत्यु के भी अधिपति है अतः उनके मंत्र का जप बड़े बिमारियों से भी हमारी रक्षा करता है इसमे कोई शक नहीं.
जीवन की कई समस्याओं का समाधान है शिव पंचाक्षरी मंत्र का जप.
सिद्ध शिव पंचाक्षरी यन्त्र या फिर शिवलिंग की स्थापना के बाद अगर मंत्र अनुष्ठान किया जाए तो शीघ्र ही असर मालुम होते हैं.
अगर आप शांति और सुख की खोज में है तो अपनी इच्छाओ को पूरी करने के लिए शिव मंत्र एक अच्छा माध्यम हो सकता है.
क्या है शिव पंचाक्षरी महामंत्र ?
इस मंत्र में पांच अक्षर होते हैं इसीलिए इसे पंचाक्षरी मंत्र कहा जाता है ये ५ अक्षर है “नमः शिवाय”, इसके पहले ॐ लगा देने से पूरा मंत्र बनता है “ॐ नमः शिवाय”.
यही है शिव कृपा प्राप्त करने का महा मंत्र, यही है दुःख निवृत्ति का सरल उपाय.
आइये जानते हैं कैसे जपा जाए शिव पंचाक्षरी मंत्र को :
1. सबसे पहले साफ़ और पवित्र आसन को बिछाए और बैठ जाए सुखासन में.
2. अब आप शिवलिंग या यन्त्र की पंचोपचार पूजा कर सकते हैं.
3. इसके बाद विनियोग, अंगन्यास, करण्यास, ऋषि न्यास का पाठ करके मंत्र साधना शुरू कर सकते हैं.
१ ) आइये करते हैं शिवपंचाक्षरी मंत्र का विनियोग –
इसके अंतर्गत हम संकल्प लेते हैं की हम जप क्यों कर रहे हैं.
“ॐ अस्य श्री शिवपंचाक्षरी मंत्रस्य वामदेव ऋषिः , पंक्तिश्छन्दः शिवो देवता, मं बीजम् यं शक्तिः वां कीलकम सदाशिव कृपा प्रसदोपब्धिपूर्वकर्मखिलपुरुषार्थसिद्धये जपे विनियोगः ”
2) आइये अब करते हैं अंगन्यास :
इसको करते समय अंगो को स्पर्श करना होता है.
“ॐ ॐ हृदयाय नमः,
ॐ नं शिरसे स्वाहा,
ॐ मं शिखाये वषट,
ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट,
ॐ यं अस्त्राय फट,
इति हृदयादिषडंगन्यासः “
3) आइये अब करते हैं कर न्यास :
इसको करते समय सम्बंधित अंगुली को चुना चाहिए.
“ॐ ॐ अन्गुष्ठाभ्याम नमः,
ॐ नं तर्जिनिभ्याम नमः,
ॐ मं मध्यमाभ्याम नमः ,
ॐ शिम अनामिकाभ्याम नमः,
ॐ वां कनिष्ठ्काभ्याम नमः,
ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्याम नमः “
४ ) अब करते है ऋषि न्यास :
“ॐ वामदेवर्षये नमः शिरसि ,
पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे,
शिव देवताये नमः हृदये,
मं बीजाय नमः गुह्ये ,
यं शक्तये नमः पादयो,
वां कीलकाय नमः नाभो ,
विनियोगाय नमः सर्वांगे “
४ . अब इसके बाद आप मंत्र जप शुरू कर सकते हैं. यथा शक्ति रोज सुबह शाम असं पर बैठकर जप करे और दिनभर जब भी समय मिले मन में भी जपते रहे.
मंत्र जपते समय ऐसा सोचे की भगवान् शिव की कृपा आपके जीवन को सफल बना रही है, सारी परेशानिया ख़त्म हो रही है, आप स्वस्थ और संपन्न हो रहे है.
शिव की कृपा से बिगड़ते काम बनते है,
शिव की कृपा से जीवन सफल हो जाता है अतः शिव पूजा करके जीवन को सफल बनाए.
जय बम्म बम्म महाकाल
ईमेल - gurushiromani23@gmail.com
संपर्क - 098464 18100 / 09207 283 275
संपर्क - 098464 18100 / 09207 283 275
कृपा करके कॉपी पेस्ट करने का प्रयत्न न करे। .अन्यथा बक्शा नहीं जायेगा
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