बगलामुखी महातंत्र साधना - Baglamukhi Tantra


|| जय महाकाल ||
 

बगलामुखी विशेष साधना -

साधक मित्रो माँ  भगवती बगलामुखी यह  १० महाविद्या की बहोत ही महत्वपूर्ण देवी शक्ति हैं , जिसका सामना करने में शत्रु भी हताहत हो जाते हैं , बगलामुखी, दो शब्दों के मेल से बना है, पहला 'बगला' तथा दूसरा 'मुखी'। बगला से अभिप्राय हैं 'विरूपण का कारण' और वक या वगुला पक्षी, जिस की क्षमता एक जगह पर अचल खड़े हो शिकार करना है, मुखी से तात्पर्य हैं मुख। देवी का सम्बन्ध मुख्यतः स्तम्भन कार्य से हैं, फिर वो मनुष्य या शत्रु हो या कोई प्राकृतिक आपदा। देवी महाप्रलय जैसे महाविनाश को भी स्तंभित करने की क्षमता रखती हैं। देवी स्तंभन कार्य की अधिष्ठात्री हैं। स्तंभन कार्य के अनुरूप देवी ही ब्रह्म अस्त्र का स्वरूप धारण कर, तीनो लोको में किसी को भी स्तंभित कर सकती हैं। देवी, पीताम्बरा नाम से भी त्रि-भुवन में प्रसिद्ध है, पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के मेल से बना है, पहला 'पीत' तथा दूसरा 'अम्बरा', अभिप्राय हैं पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली। देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिया है, देवी पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती है तथा देवी को पीले वस्त्र ही प्रिय है, पीले फूलों की माला धारण करती है, पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। पञ्च तत्वों द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ हैं, जिन में से पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पिला रंग अत्यंत प्रिय हैं। देवी की साधना दक्षिणाम्नायात्मक तथा ऊर्ध्वाम्नाय दो पद्धतिओं से कि जाती है, उर्ध्वमना स्वरुप में देवी दो भुजाओ से युक्त तथा दक्षिणाम्नायात्मक में चार भुजाये हैं।
देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक, पारलौकिक जादुई शक्तिओ से भी हैं, जिसे इंद्रजाल काहा जाता हैं। उच्चाटन, स्तम्भन, मारन जैसे घोर कृत्यों तथा इंद्रजाल विद्या, देवी की कृपा के बिना संपूर्ण नहीं हो पाते हैं। देवी ही समस्त प्रकार के ऋद्धि तथा सिद्धि प्रदान करने वाली है, विशेषकर, तीनो लोको में किसी को भी आकर्षित करने की शक्ति, वाक् शक्ति, स्तंभन शक्ति। देवी के भक्त अपने शत्रुओ को ही नहीं बल्कि तीनो लोको को वश करने में समर्थ होते हैं, विशेषकर झूठे अभियोग प्रकरणो में अपने आप को निर्दोष प्रतिपादित करने हेतु देवी की अराधना उत्तम मानी जाती हैं। किसी भी प्रकार के झूठे अभियोग (मुकदमा) में अपनी रक्षा हेतु देवी के शरणागत होना सबसे अच्छा साधन हैं। देवी ग्रह गोचर से उपस्थित समस्याओं का भी विनाश करने में समर्थ हैं। देवी का सम्बन्ध आकर्षण से भी हैं, काम वासनाओ से युक्त कार्यो में भी देवी आकर्षित करने हेतु विशेष बल प्रदान करती हैं।

व्यष्टि रूप में शत्रुओ को नष्ट करने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार करने वाली देवी हैं बगलामुखी। देवी बगलामुखी के भैरव महा मृत्युंजय हैं। देवी शत्रुओ को पथ तथा बुद्धि भ्रष्ट कर, उन्हें हर प्रकार से स्तंभित करती हैं



ma baglamukhi das mahavidya



माँ बगलामुखी यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। 

माहात्म्य -
 सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है। 

साधनाकाल की सावधानियाँ 
ब्रह्मचर्य का पालन करें।
पीले वस्त्र धारण करें। 
एक समय भोजन करें। 
बाल नहीं कटवाए। 
मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें। 
दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें। 
साधना में छत्तीस अक्षर वाला मंत्र श्रेष्‍ठ फलदायी होता है।
साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ या ( अपने गुरु के मार्गदर्शन में ) बैठकर की जानी चाहिए। 

मंत्र- सिद्ध करने की विधि 
 साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है। 
 अगर सक्षम हो तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करवाए  जाता हैं जो हमारे पास उपलब्ध हैं 
 बगलामुखी यंत्र एवं इसकी संपूर्ण साधना यहाँ देना संभव नहीं है। किंतु आवश्‍यक मंत्र को संक्षिप्त में दिया जा रहा है ताकि जब साधक मंत्र संपन्न करें तब उसे सुविधा रहे।

माँ बगलामुखी 

विनियोग - 
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि। 
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये। 
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:। 
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:। 

आवाह
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा

ध्यान 
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् 
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै 
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्। 

मंत्र 
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां 
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय 
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा। 

इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है


अगर कोई साधक माँ बगला  भगवती का सिद्ध यन्त्र और हरिद्रा की माला  प्राप्त करना चाहे तो हमसे  प्राप्त कर सकता हैं   माँ बगला भगवती की साधना गुरु के मार्गदर्शन में ही रह कर करे ,

 अगर किसी  साधक  को कोई हानि या क्षति  होती हैं तो उसके  जिम्मेदार हम , अथवा प्रकाशक नहीं हैं --   

 धन्यवाद -

जय महाकाल 


गुरूजी - 09207 283 275







धन प्रदायक पारद एवं पञ्च धातु श्री यन्त्र

जय महाकाल -

धन प्रदायक पारद एवं पञ्च धातु श्री यन्त्र



श्री यंत्र - की महिमा एवं इसका गुण  प्रभाव -








मित्रो इस कलयुग में अर्थ के बिना कुछ नहीं हैं , हर व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना ने की लिए अर्थ यानी( धन, धान्य ,रिद्धि ,सिद्धि ,सुख और शांति  की प्राप्ति की उपासना  करता हैं। फिर चाहे वो व्यापार के माध्यम से हो, नौकरी के माध्यम से हो , या दुकानदारी के  माध्यम से हो , या ज्योतिष के माध्यम से हो , बस जैसे तैसे लक्ष्मी को प्राप्त  करना हैं , इसी उद्देश्य को लक्ष्य में रखते हुए आपके लिए यह विशेष पोस्ट कर रहा हूँ।  

श्रीयंत्र इस नाम से ही प्रतीत होता है कि यह श्री अर्थात् लक्ष्मीजी का यंत्र है जो लक्ष्मी जी को सर्वाधिक प्रिय है। लक्ष्मी जी स्वयं कहती हैं कि श्रीयंत्र तो मेरा आधार है, इसमें मेरी आत्मा वास करती है। श्रीयंत्र सभी यंत्रों में श्रेष्ठ माना गया है इसलिए इसे यंत्रराज कहा गया है। इसके प्रभाव से दरिद्रता पास भी नहीं आती है। यह यंत्र महालक्ष्मी जी को इतना अधिक प्रिय है इसकी महिमा हम इस यंत्र की उत्पत्ति जानने के पश्चात् ही पूर्णतः समझ पायेंगे। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी अप्रसन्न होकर बैकुण्ठ धाम चली गईं। इससे पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की समस्याएं प्रकट हो गईं। समस्त मानव समाज, ब्राह्मण, वैश्य, व्यापारी, सेवाकर्मी आदि सभी लक्ष्मी के अभाव में दीन हीन, दुखी होकर इधर-उधर मारे-मारे घूमने लगे। तब वशिष्ठ जी ने यह निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी को प्रसन्न कर इस पृथ्वी पर वापस लाऊँगा। वशिष्ठ जी तत्काल बैकुण्ठ धाम जाकर लक्ष्मी जी से मिले, उन्हें ज्ञात हुआ कि ममतामयी मां लक्ष्मी जी अप्रसन्न हंै और वह किसी भी स्थिति में भूतल पर (पृथ्वी) आने को तैयार नहीं हैं। तब वशिष्ठ जी वहीं बैठकर आदि अनादि और अनंत भगवान विष्णु जी की आराधना करने लगे। जब श्री विष्णु जी प्रसन्न होकर प्रगट हुए तब वशिष्ठ जी ने कहा हे प्रभो, श्री लक्ष्मी के अभाव में हम सब पृथ्वीवासी पीड़ित हैं, आश्रम उजड़ गये, वणिक वर्ग दुखी है सारा व्यवसाय तहस नहस हो गया है, सबके मुख मुरझा गये हैं। आशा निराशा में बदल गई है तथा जीवन के प्रति उत्साह उमंग समाप्त हो गई है। तब श्री विष्णु जी वशिष्ठ जी को लेकर लक्ष्मी जी के पास गये और मनाने लगे। परन्तु किसी प्रकार लक्ष्मी जी को मनाने में सफल नहीं हो सके और रूठी हुई अप्रसन्न श्री लक्ष्मी जी ने दृढ़तापूर्वक कहा कि मैं किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर जाने को तैयार नहीं हँू। उदास मन एवं खिन्न अवस्था में वशिष्ठ जी पुनः पृथ्वी लोक लौट आये और लक्ष्मी जी के निर्णय से सबको अवगत करा दिया। सभी अत्यन्त दुखी थे। देवगुरु बृहस्पति जी ने कहा कि अब तो मात्र एक ही उपाय है वह है ‘‘श्रीयंत्र’’ की साधना। यदि श्रीयंत्र को स्थापित कर, प्राण प्रतिष्ठा करके पूजा की जाये तो लक्ष्मी जी को अवश्य ही आना पड़ेगा। गुरु बृहस्पति की बात से ऋषि व महर्षियों में आनन्द व्याप्त हो गया और उन्होंने बृहस्पति जी के निर्देशन में श्रीयंत्र का निर्माण किया और उसे मंत्र सिद्धि एवं प्राण प्रतिष्ठा कर सर्व पृथ्वी एवं देवगणो के लिए उपलब्ध करा दिया गया श्री यन्त्र का महापूजन  पूजन किया गया । पूजा समाप्त होते होते ही लक्ष्मी जी वहां उपस्थित हो गईंऔर  कहा कि मैं किसी भी स्थिति में यहां आने हेतु तैयार नहीं थी परन्तु आपने जो प्रयोग किया उससे मुझे आना ही पड़ा। श्रीयंत्र ही तो मेरा आधार है और इसमें मेरी आत्मा वास करती है। श्रीयंत्र सब यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिये इसे यंत्रराज भी  कहा गया है। श्री यंत्र की रचना भी अनोखी है। भी सद्बुद्धि आ जाती है तथा वह भी कामकाज करने लगता है।  इससे धन की प्राप्ति होती है। इसके गृह में स्थापन  कर ने  किसी प्रकार का भय नहीं होता व निरंतर आय में (नौकरी/व्यवसाय) उन्नति करता हैं  और उसका भाग्योदय हो जाता है एवं लक्ष्मी जी हमेशा उस पर अपना आशीर्वाद बनाये रखती हैं। । हिन्दू धर्म के सभी ज्ञानी संत, महापुरुष, धर्माचार्य, महामण्डलेश्वर, योगी, तांत्रिक, संन्यासी सभी के पूजा स्थल में इस यंत्र का प्रमुख स्थान है। इस यंत्र को यंत्रराज अथवा यंत्र शिरोमणि भी कहा गया है क्योंकि बाँकी सभी यंत्रों में मंत्रों के साथ धातुओं की शक्ति समाई हुई है  जिससे इसकी शक्तियां हजारों गुना बढ़ जाती हैं। इसे पूजा स्थान, कार्यालय, दुकान, फैक्ट्री एवं पढ़ाई के स्थान पर रखने एवं पूजा पाठ करने से धन, धान्य एवं व्यापार में लाभ तथा पढ़ाई में सफलता तथा वाहन में रखने पर दुर्घटना से बचाव होता है। पारे का श्रीयंत्र:- यह सदा  सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पारा भगवान शिव का विग्रह कहलाता है और लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा कि पारद ही मैं हंू और मेरा ही दूसरा स्वरूप पारद है। पारद श्रीयंत्र की महत्ता स्वयंसिद्ध है इसकी  यह तो जिस घर में स्थापित होती है वहां स्वयं ही आर्थिक उन्नति होने लगती है। अतः स्पष्ट है कि श्रीयंत्र एक अद्भुत यंत्र है, इसके महत्व का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाना के बराबर  होगा। इसको घर में स्थापित कर स्वयं अनुभव करें।
इस यन्त्र की विशेषता यह  यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली अष्टलक्ष्मी  महाविद्या
पुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है. कहा गया है कि 
"श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम्‌ , भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव"
अर्थात जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है. आशय यह कि श्री यंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है. इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है.
इस अद्भुत यंत्र के  अनेक लाभ हैं, इनमें प्रमुख हैं -
* श्री यंत्र के स्थापन मात्र से भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.
* कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार में विकास देता है.
* घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
* पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है.
*श्री यंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है. उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र के भेदन में सहायक माना गया है.
*यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए श्रेष्ठतम उपाय है.
विविध पदार्थों से निर्मित श्री यंत्र

श्री यंत्र का निर्माण विविध पदार्थों से किया जा सकता है. इनमें श्रेष्ठता के क्रम में प्रमुख हैं-
श्री यन्त्र की  पदार्थ विशिष्टता
* पारद श्रीयंत्र पारद को शिववीर्य कहा जाता है. पारद से निर्मित यह यंत्र सबसे दुर्लभ तथा प्रभावशाली होता 

पारद मेरु श्री यंत्र अधिकतम लाभ देता है, जो न केवल सबसे अधिक, शुभ महत्वपूर्ण और शक्तिशाली यन्त्र  में से एक है, लेकिन यह भी लगभग हर व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित होता है. यह सब सांसारिक इच्छाओं को प्राप्त करने और आंतरिक लौकिक शक्ति एवं मानसिक शक्ति के माध्यम से सभी इच्छाओं को पूरा करने का स्रोत है. "श्री यंत्र" - श्री अर्थ धन और यंत्र - मतलब "साधन" - धन के लिए पारद  श्री यंत्र सामग्री और आध्यात्मिक धन के बारे में लाताहैं . पारद श्री यंत्र हमारे सभी इच्छाओं को  बेहतर करने के लिए हमारे जीवन को परिवर्तित करने लिए कि अस्पष्टीकृत शक्ति है.पारद श्री यंत्र निश्चित रूप से हमारे जीवन में सभी समस्याओं और नकारात्मकता का जवाब है. श्री (श्री) का उपयोग कर किसी भी व्यक्ति यंत्र बहुत अधिक समृद्धि, शांति और सद्भाव को प्राप्त होता है. पारद श्री यंत्र हमारे जीवन में सभी बाधाओं को तोड़ने में मदद करता है. दोनों आध्यात्मिक और भौतिकवादी - यह यन्त्र  हमें अनिश्चित काल के लिए और आसानी से विकास की सीमा बढ़ाने में मदद करता है. श्री यंत्र की भगवान शिव की पूजा और उपासना के शुक्राणुओं से उत्पन्न होने की विश्वास  है पापों को नष्ट कर देता है. यह पारद  से शुद्ध और शुभ वहाँ कुछ भी नहीं है कि प्राचीन वेदों में उल्लेख किया है. पारद  भी उच्च रक्तचाप, दमा जैसे विभिन्न रोगों को नियंत्रित करने में बहुत उपयोगी है और सेक्स पावर बढ़ाने. पारद भी आयुर्वेद में विशेष महत्व है. पारद लाभ ज्योतिषीय से फायदेमंद है और साथ ही वैज्ञानिक साबित हो गए हैं

पारद  श्री यंत्र सर्वोच्च ऊर्जा और ऊर्जा के स्रोत लहरों और किरणों के रूप में कुछ भी नहीं है लेकिन तत्व का दूसरा रूप है. पारद श्री यंत्र बेहद संवेदनशील है और शानदार चुंबकीय शक्ति है. पारद  श्री यंत्र ग्रहों और अन्य सार्वभौमिक वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित विशेष कॉस्मिक रे लहर उठाओ और रचनात्मक कंपन में उन्हें बदलने जो ऊर्जा का एक दिव्य भंडार होने के लिए कहा है. ये तो इस प्रकार के आसपास के क्षेत्र के भीतर सभी विनाशकारी ताकतों को नष्ट करने,पारद  श्री यंत्र का  निर्माण किया  गया है जहां परिवेश को प्रेषित कर रहे हैं. पारद  श्री यंत्र एक छोटी सी अवधि में देखा जा सकता है जो सर्वोच्च छिपी शक्तियों के साथ श्रेय के साथ अपना प्रामाणिक प्रभाव  दिखाता  है. यह श्री यन्त्र - हमारे आश्रम में इस यन्त्र को तंत्रोक पद्धति  से सिद्ध किया जाता हैं।  इसके अंदर एक विशेष पावर जगायी जाती हैं ,  यन्त्र को अपने घर में स्थापित  करने से अलौकिक शक्तयों का आभास होना शुरू होजाता हैं , यह आपको इस यन्त्र को उपयोग  में लाने के पश्चात् ही अनुभव होगा। . 

अगर कोई इच्छित साधक इस यन्त्र को प्राप्त करना चाहे वोह  हमारे आश्रम से  प्राप्त कर सकता हैं  इसे कूरियर माध्यम से  आपके घर तक पहुचाया जायेगा।  एक बार अवश्य अनुभव कर  के देखे। . आपका विश्वास यही हमारा समाधान हैं। . 




संपर्क  -    09207 283 275 




( एक विशेष चेतावनी ब्लॉग के आर्टिकिल्स  चोरो के लिए  ) इस ब्लॉग पर जितने भी लेख हैं वह , स्वयं निर्मित हैं , कृपया इन्हें चुराने का दुस्साहस  ना करे , अन्यथा अपने स्वयं के हानि के  जिम्मेदार खुद ही होंगे  ,...                                                                                               ||   जय महाकाल || 




शमशान जागृत करने की साधना -

जय महाकाल - 


शमशान जागृत करने की साधना -



shamsan sidhhi
shamshan sidhhi


जय  महाकाल। .. मित्रो। . आपने कई जगह सुना होगा की फलाने तांत्रिक ने मशान जगा  रखा हैं , या कोई आदमी शमशान जगाता हैं वगैरा वगैरा- प्रायः  सुनने में आता हैं मगर असल में श्मशान कैसे जागृत होता हैं , यह बहोत काम ही लोग जानते हैं , जो जानते हैं वो किस को बताते नहीं , दरसल यह शमशानी क्रिया अघोर तंत्र के तहत आती हैं। . जो की बहोत ही जोखिम भरी होती हैं   हम आपको इसकी विधि और जानकारी दे रहे हैं।  यह जानकारी देने का उद्देश्य आपके ज्ञान वर्धन के लिए दिया जा रहा हैं।  ना की किसी का अहित या किसी को क्षति पहुचाने के हेतु से दिया जा रहा हैं .... , सर्व प्रथम आप अच्छी तरह से समझ ले मसान क्या हैं। .. और उसके नियम क्या हैं।
शमशान जगाने के दस  प्रकार के होते हैं -  जो निम्न  प्रकार हैं। ... सफेदा ,यमदंड ,सुकिया ,फुलिया ,हल्दिया कमेदिया , की किचिया  ,मिचमिचिया ,सिलासिलिया ,पिलिया ,,,|ये नाम उन १० शक्तिशाली प्रेत शक्तियों के हैं जो की शमशान साधना के अधिपति होते हैं। .. उक्त  समय आपके उग्र मन्त्रों को अपनी शक्ति से जाग्रत करते हैं |इन्ही प्रेत शक्तियों के बल के माध्यम से  श्मशान की ख़ामोशी  में अभिचार कर्म ,भूत-प्रेत ,पिशाच ,बेताल ,भैरव ,आदि के मंत्र सिद्ध किये जाते हैं |इसे ही  मरघटिया मशान  भी कहा जाता है ,... ... जो मशान जगाता हे उसे मशान जोगी कहते हैं। ..... अघोरी भी कहा जाता  हैं इत्यादि। ...
शमाशान के सेनापति महिषासुर और  धूम्रलोचन को माना जाता है...और मुख्य  गण शमसान भैरव और रक्त चामुण्डा होती हे वैसे और मशान वीरों की भी सिद्धि की जाती हैं  जिनका स्वरुप घनश्याम ,भयानक ,दीर्घ देह ,बड़े बड़े केश और सघन बड़ी लोम्राशी ,,हाथ में वज्र और पाश ,नग्न पाद ,चमड़े की लंगोट धारण किये हुए है |प्रेत पिंड ,चिता अग्नि से पकता शव का मांस -मज्जा इनका भोजन  करने वाले होते  है |
शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,चतुर्दशी ,पूर्णिमा ,अमावस्या ,शनिवार ,मंगलवार ,तिथि-वार के संयोग में श्मशान साधना अधिक की जाती है ,यद्यपि अघोरी-कापालिक-सिद्ध के लिए ऐसी कोई मुहूर्त महत्व नहीं रखता |यह मुहूर्त सामान्य साधकों के लिए शीघ्र सफलतादायक माने जाते हैं |श्माशान में भोग में आमिष अथवा निरामिष दोनों का ही प्रयोग होता है जिनके विभिन्न अवयव अपनी सुविधा के अनुसार उपयोग किये जाते हैं |विशेष साधनाओं में विशेष भोग जो निश्चित होता है लगाया जाता है जिससे सफलता बढती है |श्मशान में प्रवेश करते समय गुरु ,गणेश ,बटुक ,योगिनी ,मात्रिगणों से अनुमति ली जाती है |सभी श्मशान में व्याप्त शक्तियों को नमस्कार कर साधना प्रारम्भ किया जाता है |साधक आसन पर बैठकर क्रमशः श्मशान अधिपति को पूर्व में ,भैरव को दक्षिण में ,कालभैरव को पश्चिम में ,तथा महाकाल को उत्तर में पाद्यादी देकर उनका पूजन कर भोग- बलि आदि देता है |यदि चिता का प्रयोग कर रहा हो तो कालरात्री ,काली तथा महाकाली के घोर मंत्र पढता हुआ भोग समर्पित करता है |तत्पश्चात भूतनाथ को बलि प्रदान कर वीरार्दन मंत्र से चतुर्दिक रक्षा चक्र का निर्माण करता है |इसी मंत्र के बाद ही साधक स्वयं भैरव स्वरुप हो जाता है और विघ्न आदि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते |
इसके बाद साधक अपने गुरु द्वारा निर्दिष्ट मंत्र का जाप करता है तथा अपने प्रयोजन को सिद्ध करता है |अघोर साधना ,काल भैरव साधना ,श्मशान जागरण साधना ,आसन कीलने की साधना ,उग्र काली साधना ,५२ भैरव  और ५२ वीर  और ५६ कलुवा वीरों की  साधना ,महाउग्र तारा साधना ,श्मशान काली साधना ,मरघट चंडी साधना ,तांत्रिक षट्कर्म आदि श्माशान में की जाने वाली प्रमुख साधनाएं है |इनके अतिरिक्त वीर साधन एक अति महत्वपूर्ण साधना है |यह तो नितांत सत्य है की जो साधनाएं सौम्य रूप में बहुत लम्बा समय सिद्ध होने में लगाती हैं वही शमाशान में तीव्र गति से और शीघ्र सिद्ध हो जाती है |इसका कारण यह होता है की श्मशान में अधिकतर उग्र शक्तियों की साधना की जाती है जिनकी ऊर्जा की वहां अधिकता होती है ,साथ ही साधक के  गुण भाव भी साहसी उत्तेजित  और उग्र होते हैं जिससे आसानी से सम्बंधित ऊर्जा साधक से जुड़ जाती है | और तामसिक वस्तुओं द्वारा प्रयोग में लाकर  औघड़ की ताकत  बढ़ा कर अपार शक्ति की  सफलता देती है |


https://mantraparalaukik.blogspot.in/

शमसान जगाने की संक्षिप्त विधि प्रस्तुत हैं -

विशेष चेतावनी -  ( ये साधना अति उग्र स्वरुप की हैं  जान जाने अथवा पागल होने की सम्भावना हैं कृपया मंजे हुए गुरु  मार्गदर्शन में रह कर करे अन्यथा खुद के हानि के जिम्मेदार खुद ही होंगे ) .... कहना नहीं मानोगे तो भाड़ में जाओगे। .. 

  अगर किसी नौजवान की आकस्मिक मृत्यु हो जाये  या दुर्घटना  से मरे हुए व्यक्ति जिसका post  martam  नहीं किया हो और सांप के कांटे से ना मरा  हो   ऐसे शव को उपयोग में लाना हैं ।। ऐसे शवो को या तो उसे जलाया जाता हैं या दफनाया जाता हैं , मगर  आपका काम जहाँ उसे दफनाया हो वहां पर हैं...  बशर्ते उस शव को २७ दिन से पहले उपयोग में लाना हैं ... सर्व प्रथम जिस जगह बकरा काँटा जाता हैं .. वहां से आपको एक वस्तु लानी हैं जिस दिन शमशान को जगाना हैं उसी  दिन उस वस्तु को लाना हैं इस क्रिया मे उस वस्तु को साथ में रख के अमावस या मंगल शनि को शमशान में जाना हैं उसके एक दिन पहले शमशान को आमंत्रित कर के आना हैं , फिर अगले दिन सब सामग्री ले कर शमशान जाये .. मगर एक बात ध्यान रहे की ये सब विधि गुरु के मार्गदर्शन में करे , या फिर जिसके पिछवाड़े में दम हो वो इस विधि को करे , हम यहाँ दुबारा सूचित कर रहे हैं की यह जानकारी आपके ज्ञान वर्धन के लिए दी जा रही हैं 
अगर इस विधि से किसी को हानि या नुक्सान होता हैं तो उसके जिम्मेदार हम नहीं , या ये माध्यम नहीं हे . आप स्वयं होंगे ..क्यों की यह विधि उग्र और अघोरी  क्रिया हैं । इसमें  जान का खतरा हैं अपने सूझ बुझ से काम ले , इस मशान सिद्धि के बाद कुछ शेष नहीं रहता।  आप मन चाहा कार्य मिनटों में कर सकते हो , पलक झपकते ही मन चाहा कार्य कर सकते हो...उर्वरित मार्गदर्शन के लिए।
( शमशान जगाने का मंत्र और क्रिया विधि जिज्ञासा रखने वाले साधको को दिया जायेगा  )  मेल के जरिये संपर्क करे 


shamshan jagane ki kriya





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५२ वीर सिद्धि की विशेष ऊद


|| जय महाकाल || 



- ५२  वीर सिद्धि की विशेष  ऊद -


जय महाकाल। ..मित्रो   बावन वीरों की सिद्धि विशेषत अलग अलग जगह होती हैं।  कोई वीर शमशान में जागृत करने पड़ते हैं। तो कोई वीर... विशेष पौधे के पास जाकर जागृत करने होते हैं , या फिर किसी विशेष वृक्ष के नीचे वीरों की सिद्धि की जाती हैं .इन वीरों को  अगर अति शीघ्र प्रसन्न करना चाहते हो तो। .इसके लिए एक विशेष ऊद ( यानि धुप ) का इस्तेमाल नाथ प्रणाली में सदियो से होता आ रहा हैं। इसे अवश्य इस्तेमाल में लाये इसके बारे में आपको यहाँ  जानकारी दे रहे हैं। वीर मंत्र को पढ़ते पढ़ते इस ऊद को अंगियारी पर धुंआ करते जाये . इस ऊद की खुशबू से वीर जागृत होने लगते हैं .. यह ऊद बहोत ही दुर्लभ और रेयर  हैं .. जो की विशेष जड़ी बूटियों  को खास योग में उखाड़ कर उसे सिद्ध की जाती हैं और उसे उपयोग में लाया जाता हैं इस ऊद में विशेषत  ५२ प्रकार की जड़ी और समुद्रिक वस्तुओंका मिश्रण तैयार करके इस ऊद को सिद्ध किया जाता हैं .. और फिर इसे उपयोग में लाया जाता हैं। . कुछ  वस्तुओं के  नाम यहाँ आपके जानकारी के लिए दे रहा हूँ सभी जड़ी के नाम देना संभव नहीं हैं 
 नरक्या ऊद , चिल्ट्या ऊद ,साम्ब्री ऊद , झोटिंग ऊद , खप्ल्या ऊद , म्हसन्या ऊद ,तेली ऊद ,दारू ऊद ,खवल्या ऊद ,कबरी ऊद , हमामबाद ऊद ,..  इत्यादि ऊद के नाम हैं जो इस ऊद में मिश्रित हैं इस प्रकार ५२ ऊदो को मिलाकर तैयार किया जाता हैं .. इसे ऊदनी भी कहते हैं। विशेष कर के वीर कंगन सिद्धि के लिए ये बहोत ही लाभकारी हैं .. साधक मित्रों अगर कोई वीर साधक इस ऊद को प्रयोग में लाना चाहे तो अवश्य  सकता हैं।  हमारे पास यह ऊद उपलब्ध हैं बाकायदा इस ऊद को सिद्ध करके दिया जायेगा। . अगर कोई साधक इसे प्राप्त करना चाहे तो हमसे अवश्य  प्राप्त कर सकता हैं 










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तंत्र सुरक्षा कवच - ताबीज -

- जय महाकाल -


तंत्र सुरक्षा कवच - ताबीज -



मित्रो आज के दौर में साधना करना  इतना सरल नहीं रहा , क्यों की साधना करते वक्त कुछ ऐसी अदृश्य शक्तिया , साधक के साधना  में बाधा और विघ्न।  डालना शुरू कर देती हैं इसका पता नहीं चल पाता , इसके मुख्य दो कारण हैं।  एक तो कुछ जिज्ञासु साधक हैं जो की गुरु के  मार्गदर्शन से वंचित हैं ,एक  वो साधक हैं जो  अपनी सुरक्षा किये बगेर साधना में जोखिम उठा कर साधना करने का असफल प्रयास करते हैं .. किसी भी साधना में   सुरक्षा कवच जरुरी हैं। . चाहे वो किसी तांत्रिक द्वारा हमले का विषय हो , या भूत , प्रेत, जीन, जिन्नातो का हमला  हो , कुछ साधक बिना गुरु के मार्गदर्शन के , भूत साधना , परी साधना , जीन साधना , या  किसी

शक्ति की साधना करने का जोखिम उठा लेते हैं।  मगर साधक मित्रो इन सब  साधनाओ में सुरक्षा कवच होना  बहोत जरुरी हैं। . अन्यथा आप अपने जान से हाथ धो सकते हैं। . तो जो जिज्ञासु साधक हैं उन बंधुओ के लिए हम अपने ब्लॉग के माध्यम से आपके लिए सुरक्षा ताबीज आपको सूचित करते हैं ..जो की त्रिलोह के धातुसे विशेष तांत्रिक प्रक्रिया से सिद्ध कर के आपके लिए उपलब्ध हैं। .जिससे आपके साधना में आनेवाली हर बाधा विघ्न  का शमन कर आपकी हिफाजत करेगी। और बहोत से दिव्यता का अनुभव होगा ये आपको इस ताबीज को उपयोग में लाने के बाद ही पता चलेगा। . इस ताबीज का मूल्य बहोत ही सामान्य रखा गया हैं। . जो की हर साधक को आसानी से उपलब्ध हो। . अगर कोई साधक बंधू इस तांत्रिक सुरक्षा ताबीज को प्राप्त करना चाहे वो हमसे संपर्क कर प्राप्त कर सकता हैं।


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तंत्र रक्षा कवच 

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तांत्रिक इंद्रजाल वनस्पती

जय महाकाल -



तांत्रिक  इंद्रजाल वनस्पती 








 


मित्रो यह इंद्रजाल  एक दिव्य वनस्पति हैं जो बहोत ही कम  पायी जाती हैं , मित्रों यह वनस्पति जिसके  पास होती हैं उसे तो वारेन्यारे हो जाते हैं , सुख शांति , और बरकत के मार्ग खुल जाते हैं इस वनस्पति को विशेष तंत्र प्रणाली से सिद्ध कर के घर की दिवार पर लगा दिया जाये तो भूतो प्रेतों के हमले से बचा जा सकता हैं , किसी की मुठ करनी , बाधा तंत्र मंत्र असर नहीं करता , ऊपरी परायी बला नहीं सताती  एवं वास्तु दोषो का शमन करती हैं  मगर वो वनस्पति सिद्ध की  होनी चाहिए अन्यथा  इसका इस्तेमाल एक आम लकड़ी के सामान हैं , और ज्यादा क्या लिखू इस वनपस्ति के बारे में ये वनस्पति अपने आप में दिव्यता समेटे हुए हैं। .. जब आप इसे उपयोग में लाएंगे तब आपको यकीं हो जायेगा के वाकई कुछ चीज पायी हैं हमने। .हमारे यहाँ इस वनस्पति को पूर्णतः तंत्र प्रणाली से साधक के नाम से सिद्ध कर के दिया जाता हैं  । ..
 

 ( एक विशेष चेतावनी कुछ लोग मार्किट में नकली वनस्पति भी बेच रहे हैं इंद्रजाल के नाम पर सावधान रहिएगा )

अगर कोई मित्र बंधू इस वनस्पति को  प्राप्त करना चाहे वो  हमसे  अवश्य प्राप्त कर सकता हैं। ..


धन्यवाद-



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दुर्लभ गौरी शंकर रुद्राक्ष-

 

-जय महाकाल -

अति दुर्लभ   गौरी शंकर रुद्राक्ष 





साधक मित्रों गौरी शंकर रुद्राक्ष यह भाग्यवंत को ही प्राप्त  होता हैं।  जिन पर भगवन महादेव की कृपा हो वो अति शीघ्र ही इसका लाभ कर पाते हैं।  यह मिलना बहोत ही दुर्लभ होता हैं जो आसानी से नहीं प्राप्त होता 
यह शिव पार्वती का स्वरूप है। घर, पूजा ग्रह अथवा तिजोरी में मंगल कामना सिद्धि के लिये रखना लाभदायक है। इसे उपयोग में लाने से परिवार में सुख-शांति की वृद्धि होती है वातावरण शुद्ध बना रहता है। गले में धारण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
शव उवाच - श्रृणु षणमुख तत्त्वेन वक्त्रे वक्त्रे तथा फलम्।
एकवक्त्रः शिवः साक्षाद्ब्रह्राहत्यां व्यपोहति।।
शिवजी स्वयं कार्तिकस्वामी से कह रहे हैं-हे षड़मुख ! कितने मुख वाला रुद्राक्ष किस प्रकार के फल को देने वाला है उसे ध्यान से सुनो ! एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात् मेरा ही स्वरूप है तथा यह ब्रह्महत्या व पाप को दूर करने वाला है। गौरीशकर रुद्राख सर्वसिद्धि प्रदाता रुद्राक्ष कहा गया है। यह सात्त्विक शक्ति में वृद्धि करने वाला, मोक्ष प्रदाता रुद्राक्ष है। जिसके घर में यह रुद्राक्ष होता है वहां लक्ष्मी का स्थाई वास हो जाता है तथा उसका घर धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा से भर जाता है। संक्षेप में यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला चतुर्वर्ग प्रदाता रुद्राक्ष है।
गौरीशंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष के दानें परस्पर जुड़े होते हैं इन्हें गौरीशंकर रुद्राक्ष कहते हैं। गौरीशकर रुद्राक्ष सभी लग्न के जातकों के लिए शुभ माना गया है इसे धारण करने से अनेक लाभ होता है।
उपयोग से लाभ
गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से अभक्ष्य-भक्षण और पर स्त्री गमन जैसे- जघंन्य अपराध भी भगवान शिव द्वारा नष्ट होता है।
इसे धारण करने से अनेक विपरीत लिंग के लोग आकर्षित होते हैं तथा उनका सुख प्राप्त होता है।
यह रुद्राक्ष धनागमन एवं व्यापार उन्नति में अत्यन्त सहायक माना गया है
गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से पुरुषों को स्त्री सुख प्राप्त होता है तथा परस्पर सहयोग एवं सम्मान तथा प्रेम की वृद्धि होती है।
यह रुद्राक्ष शिवभक्ति के लिए अधिक उपयोगी माना गया है भगवान शिव और मां शक्ति इस रुद्राक्ष में निवास करती हैं।
निर्देष
प्रत्येक रुद्राख में अंतर्गभित विद्युत तरंगे होती हैं तथा इन अंतर्गर्भित विद्वुत तरंग शक्ति का पता उसकी धारियों की संख्या के अनुसार चलता है। अलग-अलग मुख अलग-अलग परिणाम के देने वाले होते हैं तथा उनको एक विशिष्ट नाम से भी संबोधित किया जाता है। रुद्राक्ष सामान्यतः इक्कीस मुख तक पाए जाते हैं परंतु पंद्रह से इक्कीस मुख के दाने प्रायः दुर्लभ होते हैं।
कुछ चालाक व्यक्ति दो रुद्राक्षों को काटकर सफाई से वापस जोड़कर उनके कई मुख बना देते हैं इसी प्रकार से कई लोग गौरीशंकर रुद्राक्ष भी बना डालते हैं। शास्त्रकारों ने चैदह मुख तक के रुद्राक्ष का ही वर्णन किया है। शिवपुराण एवं रुद्राक्षजाबालोपनिषद् रुद्राक्ष के फल महत्त्व एवं उपासना हेतु प्रमाणिक ग्रंथ माने जाते हैं।
गौरी शंकर रुद्राक्ष भगवान शिव एवं माँ पार्वती का प्रत्यक्ष स्वरूप है | इसके धारण करता  को शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्राप्त होती है | यह रुद्राक्ष गृहस्थ सुख के लिए अति शुभ माना गया है क्योंकि जिन भगवान शिव और माँ पार्वती के 36 गुण मिलते थे यह रुद्राक्ष उन्हीं का स्वरुप है इसलिए जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा है, बहुत प्रयास करने के बाद भी अच्छा रिश्ता ना मिल रहा हो उन कन्याओं को यह रुद्राक्ष अति शीघ्र धारण करना चाहिए और जिन कन्याओं का विवाह तो हो चुका है लेकिन गृहस्थ सुख की किसी भी रूप में कमी हो रही है तो उन स्त्रियों के लिए भी गौरी शंकर रुद्राक्ष अति उत्तम फल प्रदायक माना गया है | जिन स्त्रियों को गर्भ से सम्बंधित कोई समस्या हो उनके लिए भी यह लाभकारी हो सकता है | पारिवारिक शांति और वंश वृद्धि में भी यह रुद्राक्ष सहायक माना गया है | गौरी शंकर रुद्राक्ष बाज़ार में नकली भी बनाए जाते हैं इसलिए विश्वसनीय स्थान से ही खरीद के धारण करने चाहिए | पुरुषों को इस रुद्राक्ष को चांदी की कटोरी में स्थापित करके केमिकल रहित सुगन्धित द्रव्य से अभिमंत्रित करना चाहिए | पुरुषों को सभी रुद्राक्ष का कंठा धारण करने के अतिरिक्त इस रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिए | यह रुद्राक्ष शिव पार्वती के आशीर्वाद से अर्धनारीश्वर का स्वरुप है इसलिए सभी उम्र की स्त्रियों को इसे धारण करना चाहिए ताकि जीवन में हर प्रकार की सुख शान्ति प्राप्त की जा सके |

इस रुद्राक्ष को धारण  करने के पश्चात एक माला नित्य  “ॐ अर्ध्नारिश्वराए नमः” की जाए तो अति उत्तम फल की प्राप्ति अति शीघ्र कराने में इस रुद्राक्ष का कोई मुकाबला नहीं है |

अगर कोई साधक इस रुद्राक्ष को प्राप्त करने इच्छुक हो वो हमसे अवश्य प्राप्त कर सकता हैं। ..

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तांत्रिक बाधा नष्ट करने के लिए विशेष धुप

जय महाकाल -



तांत्रिक बाधा नष्ट करने के लिए विशेष धुप-







मित्रो आज के इस युग में भी तांत्रिक क्रियाओं का  खौफ ,जहाँ तहाँ प्राय देखने को  मिलता हैं।  इसके मुख्य कारन हैं    व्यक्तिगत दुश्मनी और दूसरी वजह हैं ईर्ष्या। व्यक्ति इस हद तक पहोच जाते है की किसी की जान तक ले लेने से नहीं चूकते , किसी तांत्रिक द्वारा किसी के घर परिवार को इस कदर बर्बाद कर देते हैं की उसे बीमार कर देना , बार बार बुखार आना , घबराहट होना , घर का हर सदस्य ,एक के बाद एक बीमार गिरना डॉक्टरों का इलाज नाकाम होना। ये सब तान्त्रिक क्रियाओं के लक्षण हैं ये उसे    कई सालो तक पता नहीं चल पाता की उसके घर में ये उपद्रव क्यों  हो रहा हैं ,वह व्यक्ति बिचारा अपना bad luck चल रहा हैं ये सोच कर उसे अनदेखा कर देता हैं। . मगर सावधान अगर आप ये सोच कर अनदेखा क्र रहे हो तो गलत दिशा में जा रहे हो। .
इसके लिए हम आपको हमारे यहाँ के विशेष दुर्लभ  जड़ी बूटी से निर्मित   तांत्रिक प्रणाली से सिद्ध की हुई धुप के बारे में सूचित कर  रहे हैं । इस धुप की नित्य धूनी देने से आपके घर की तांत्रिक बाधा ,गृह पीड़ा ,ग्रहों की पीड़ा का धीरे धीरे शमन होता जायेगा

हिंदू धर्म में धूप देने और दीप जलाने का बहुत ज्यादा महत्व है। 

धूप देने के नियम : 

धूप देने के पूर्व घर की सफाई कर दें। पवित्र होकर-रहकर ही धूप दें। धूप घर के हर कोने कोने में दें । घर के सभी कमरों में धूप की सुगंध फैल जाना चाहिए। धूप देने और धूप का असर रहे तब तक किसी भी प्रकार का संगीत नहीं बजाना चाहिए। हो सके तो कम से कम बात करना चाहिए।

लाभ : धूप देने से तांत्रिक बाधाओं का शमन होता हैं  मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। रोग और शोक मिट जाते हैं। गृहकलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। श्राद्धपक्ष में 16 दिन ही दी जाने वाली धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान होकर पितृयज्ञ भी पूर्ण होता है।


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अगर कोई साधक मित्र किसी क्रिया द्वारा गृह पीड़ा से  बाधित हो तो वोह अवश्य हमसे यह तांत्रिक धुप मंगवा  सकते हैं। 



ईमेल - gurushiromani23@gmail.com 

संपर्क  -  09207 283 275


तंत्र साधना के गुप्त रहस्य


तंत्र साधना के गुप्त रहस्य -








इस कलयुग में तंत्र साधना अपने आप में एक अलग पहचान बन चुकी हैं , लेकिन दुःख की बात ये हैं , के कुछ धर्म के ठेकेदारो ने इसे अपन धंदा बना रक्खा हैं।  कोई तंत्र  साधना  का शिबिर लगा के लोगों को गुमराह कर  रहा हैं तो कोई बंगाली बाबा बन के आम इंसानो  को लूट रहा हैं तो कोई , सूफी खान बनके एक घंटे में गारंटी देने की मूर्खतापूर्ण बात कर के लोगो को बेवकूफ बना रहे हैं। .मेरे  साधक मित्रों से निवेदन हैं की आप अपने सूझ बुझ से काम ले। .और अपने साधना के चरम सिमा तक पहुचे अपना और अपने समाज का कल्याण करे।।।।।।।।।।।।।।।।  आइये जाने कुछ तंत्र के पुरातन सार। ..!



तंत्र- शास्त्र से तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है । तंत्र साधना के समय उच्चारित मंत्र, विभिन्न मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं ।  तंत्र में श्मशान, उजाड़ स्थान आदि को इसलिए चुना जाता है जिससे कि साधक का जीवन के अंतिम सत्य से साक्षात्कार हो सके तथा उसे ईश्वर की सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास हो। यह एक तरह की ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है।
एक बार “माता पार्वतीजी” ने “परमपिता महादेव शिव” से प्रश्न किया की*** ” हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा ” ?
उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं।
योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के समान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा ।
महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर “शिव जी” ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा।परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए।
तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है। मंत्र एक सिद्धांत को कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है । मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है।
जैसे “क्रिंग ह्रंग स्वाहा” एक सिद्ध मंत्र है। श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं।
मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। “आसन”, इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार की आकृति को भी यन्त्र मन गया है,, जैसे “श्री यन्त्र”, “काली यन्त्र”, “महामृतुन्जय यन्त्र” इत्यादि ।
“यन्त्र” शब्द “यं” तथा “त्र” के मिलाप से बना है। “यं” को पुर्व में “यम” अर्थात “काल” कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है।
तंत्र के प्रणेताओं में प्रमुख है
शिव ,आदिनाथ , नौनाथ ८४ सिद्ध
दत्तात्रेय, दैत्यराज ,  शुक्राचार्य    
परशुराम
देवर्षि नारद
वशिष्ठ
शुक
सनक
सनंदन , इत्यादि |
इसी से समझा जा सकता है कि तंत्र को प्राचीनकाल के सिद्ध योगियों ने  कितने शोध के बाद आम आदमी के लिए इसका निर्माण  किया हैं  |
जय महाकाल 
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